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सुसि ग़ाफ़िल
मेरी मोहब्बत को मैंने संभाल के रखा था , वही जिस्म अब होटलों में मदहोश फिरता है। मेरी मोहब्बत को मैंने संभाल के रखा था , वही जिस्म अब होटलों में मदहोश फिरता है।
Chaurasiya4386
शादी की नियत वाले घर लेके जाते हैं____ OYO के कमरों में नहीं_____ 😭😭💔😭😭 ©Rahul Chaurasiya 🔻 शादी की नियत वाले घर लेके जाते हैं_____” होटलों के कमरों में नहीं______” 🔺 𝗕𝘆 ➸ @rahul chaurasiya #chaurassiya
Vivek Singh
ये जो होटलों, दुकानों पर छोटू होते हैं ना साहब, असल में ये ही अपने घर के सबसे बड़े होते हैं.........😑 #Nojoto#Quotes #Life#Happiness #Zindgi
Anant Nag Chandan
नहीं आता किसी पर दिल हमारा, वो ही कश्ती वो ही साहिल हमारा, तेरे दर पर करेंगे नौकरी हम, तेरी गलियां हैं मुस्तकबिल हमारा, कभी मिलता था कोई होटलों में, कभी भरता था कोई बिल हमारा। नहीं आता किसी पर दिल हमारा, वो ही कश्ती वो ही साहिल हमारा, तेरे दर पर करेंगे नौकरी हम, तेरी गलियां हैं मुस्तकबिल हमारा, कभी मिलता था कोई हो
Parul Sharma
गरीब की थाली खाली रह जाती है हर वार सितारे सजते है होटलों के नाम पर और चाँद तो सितारों का दीवाना है अकेला आता नहीं । पारुल शर्मा #गरीब की #थाली #खाली रह जाती है हर वार #सितारे सजते है #होटलों के नाम पर और #चाँद तो सितारों का #दीवाना है #अकेला आता नहीं ।
Parul Sharma
गरीब की थाली खाली रह जाती है हर वार सितारे सजते है होटलों के नाम पर और चाँद तो सितारों का दीवाना है अकेला आता नहीं । पारुल शर्मा #गरीब की #थाली #खाली रह जाती है हर वार #सितारे सजते है #होटलों के नाम पर और #चाँद तो सितारों का #दीवाना है #अकेला आता नहीं । पारुल शर्मा
Harsh Singh
सब शहर हो गया है साहब अब याहा बच्चों का शोर नहीं होता, जूगनुए रात भर जलती है इसलिए यहाँ भोर नहीं होता, इंसान यहाँ इंसान को पेहचानना भुल चुका है, अब तो घरों में ही अनाथआलय खुल चुका है, खुशियों के बिना जिन्दगी अधुरा होता है, पर चाँद भी कहा हमेशा पूरा होता है, मैंने खुद का चैहरा सीसे के बोतलो में देखा है, लोगों की खुशियाँ घरों से ज्यादा होटलों में देखा है, #gif #sahar सब शहर हो गया है साहब अब याहा बच्चों का शोर नहीं होता, जूगनुए रात भर जलती है इसलिए यहाँ भोर नहीं होता, इंसान यहाँ इंसान को पेहचानना भ
Saya
हुई सुबह , चली रिक्शा!! मुर्गे की बांग, तिरंगे की शान!! निकला सुरज, उठा समाज!! चहकती चिड़ीया, बहता दरिया!! खुला आसमा, बढ़ता तापमान!! चल
saurabh
मिट्टी के घरोंदों को तोड़ के चला गया वो आज कंकड़ों की छत फिर से बनाता है मातृभाषा भूल देश भक्ति गीत भूल कर अंग्रेजी गीत दिन रात गुनगुनाता है जिसको मिला आहार मां की स्तनों से यार आज मां की चरणों को हाथ ना लगाता है हेलो हाय बाय बाय कहता है दिन रात यारों वाली यारी अब दूर से निभाता है मां की हाथों वाले दाल चावल को छोड़कर जाके होटलों में चाउमीन मंगवाता है कितना बदल सा गया है इंसान यहाँ खुशियां खरीदने को खुशियां गंवाता है झूठी झूठी बातों से खड़ा किया है जो महल टूटता है तब इनसान टूट जाता है मिट्टी के घरोंदों को तोड़ के चला गया वो आज कंकड़ों की छत फिर से बनाता है "धन्यवाद " मनहरण घनाक्षरी छंद मिट्टी के घरोंदों को तोड़ के चला गया वो आज कंकड़ों की छत फिर से बनाता है मातृभाषा भूल देश भक्ति गीत भूल कर अंग्रेजी गी
दि कु पां
गुजारिश है दोस्तों.. थाली में भोजन उतना ही ले जितना खा सकें.. ना जाने कितने मासूम एक निवाले को भी तरसते हैं.. इनकी मदद खाने की बरबादी को कम कर के भी की जा सकती है.. एक सुझाव.. हम सब होटलों में रेस्तराओं में खाना खाते हैं प्लेट में या कुछ खाना बच जाता है वही छोड़ चले आते हैं वह खाना इन मासूमों की भूख मिटा सकता है.. यदि आप बचे हुए खाने को पैक करा इनको दे सकें तो.. गुजारिश है दोस्तों.. थाली में भोजन उतना ही ले जितना खा सकें.. ना जाने कितने मासूम एक निवाले को भी तरसते हैं.. इनकी मदद खाने की बरबादी को