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HP
मानसिक अशान्ति का कारण क्या है? मनुष्य चाहते हैं कि संसार के सब पदार्थ अपने अपने स्वभाव को छोड़ कर उन्हीं की इच्छानुकूल बर्ताव करने लग जायें, परन्तु पदार्थ ऐसा करने से लाचार हैं। वे जिन प्राकृतिक नियमों से बँधे हैं उनका उल्लंघन नहीं कर सकते। इसलिये जब वे मनुष्य की इच्छा पूर्ति नहीं करते तभी वह दुःखी होने लगता है। भलाई तो इसमें थी कि वह वस्तुओं के यथार्थ स्वरूप को देखकर अपनी आवश्यकताओं को उनके अनुकूल बनाने का प्रयत्न करता। परन्तु यह तभी सम्भव है जब अपनी मानसिक वृत्तियों का नियंत्रण किया जाय और उन्हें स्थिति की परिधि से बाहर ने होने दिया जाये। इच्छायें, आकाँक्षायें बढ़ें, इसमें हर्ज नहीं पर वे साधनों के घेरे को तोड़कर बाहर न फैलने पावें, इतना ध्यान बना रहे तो कोई भी प्रगति अनर्थकारक न होगी। सम्पन्नता, शक्ति और समृद्धि हमारी शान तो हैं किन्तु वे यथार्थ होनी चाहिये। केवल प्रदर्शन मात्र न होना चाहिए। बाहरी और भीतरी साधन और विस्तार में पारस्परिक मेल−मिलाप बना रहे तो वह उन्नति सर्वांगीण की जायेगी। अशान्ति
SILENTKNIGHT
बेशक ईद मुबारक हो .... पर अपनी ही कुछ दुवाओ में उनके लिए भी अल्लाह से मन्नतें करना जिन मुल्कों में अशान्ति है। ईद में कम से कम शांति हो..... ©SILENTKNIGHT बेशक ईद मुबारक हो .... पर अपनी ही कुछ दुवाओ में उनके लिए भी अल्लाह से मन्नतें करना जिन मुल्कों में अशान्ति है।
Juhi Grover
चुप हो गये वो राह में ही यों चलते चलते, घुट रही हूँ मैं बस अब अन्दर ही अन्दर, थक गई हूँ खामोशी की वजह ढूँढते ढूँढते, कभी तो शान्त करते अन्दर का ये समन्दर। बहुत जान लिया तुम्हें अब, बहुत समझ लिया, फिर भी छौर न मिला तेरा कहीं से भी कोई, अभी भी अन्जान हूँ, अपना चाहे बना लिया, राह तकते तकते हार गई, बस नज़रें भिगोईं। दिल की ये अशान्ति और उन की वो खामोशी, पता नहीं कब तक साथ चुप-चाप निभायेगी, हर बार मेरी नज़रें खुद को ही पा रही दोषी, पता नहीं कब तक आँखें मेरी सज़ा ये पायेंगी। चलते चलते ज़िन्दगी का कैंसा ये मोड़ आया, जीते जी जो ज़िन्दगी को मौत बस बना गया, कितने ही पहरे रूह पर हम ने हर बार लगाये, मग़र फिर भी तेरी रूह को वो उड़ा कर ले गया। चुप हो गये वो राह में ही यों चलते चलते, घुट रही हूँ मैं यों बस अब अन्दर ही अन्दर, थक गई हूँ खामोशी की वजह ढूँढते ढूँढते, कभी तो शान्त करते अन्दर का ये समन्दर। चुप हो गये वो राह में ही यों चलते चलते, घुट रही हूँ मैं बस अब अन्दर ही अन्दर, थक गई हूँ खामोशी की वजह ढूँढते ढूँढते, क
Juhi Grover
ऐसे भी लोग होते हैं, सोचते हैं,स्त्री का तो बस चरित्र ही नही। (Read in CAPTION) ऐसे भी लोग होते हैं, अपनी माँ को देख कर भी, दूसरों की बहनों का सम्मान नहीं करते, बस अपनी बहन की कीमत जानते हैं, दूसरों का तो बस चरित्र ही नह
Anil Ray
साम्प्रदायिक तुफान में किनारे पर अडिग स्तंभ बनने से समाधान कहाँ? अरे! नाविक उतर सागर में फिर सुंदर मोती चुन और सदा गीत प्रेम के गाता रहे। पराधीन होकर स्वयं में उलझा हुआ आदमी नहीं जानता धर्म क्या है? बस खोजता स्वयं जैसे बना लेता है एक मंच ताकि धर्म नही धंधा यह निर्बाध चलता रहे। स्वयं जले प्रेममशाल सा फिर नफरत के अँधेरे में भी रोशन जहां रहे। सम्प्रदाय चाहे जितने भी निर्मित करते जाये हम पर अनन्त: प्रकाश सिर्फ और सिर्फ......... मानवता से ही रहे। अच्छा रहेगा अनिल हम धर्म के लिए नही धर्म हमारे लिए रहे। ©Anil Ray 🌺 मानवता परमो धर्म: 🌺 विचारार्थ लेखन.............. ✍🏻 🟠संसार का प्रत्येक मानव अपनी मौलिक शारीरिक रचनानुसार समान है अर्थात
Anil Siwach
Divyanshu Pathak
एक समै मुरली धुनि में,रसखानि लियो कहूँ नाम हमारौ ! ता दिनसे परि बैरी विसासिनी, झांकन देत नहीं है दुआरो !! होंठ चबाब बचाओ सु क्यों करि, आनेहुँ भेंटीयें प्राननि प्यारौ ! दृष्टि परी तबाही अटकौ,चटकौ हियरौ पियरौ पटवारौ !! : क्रमशः----03😊☺🍫🍵🐦🐇 🐦🍫#शिक्षा🍵😍#संस्कार🍀🍀#ज्ञान🐰🍀💕#अध्यात्म😙😙🐿#बृजधाम☕🌧😙😀#कर्म😍🍫🍵🐦🐇#धर्म☕🐿🐿🍵🐦 : क्या प्रत्येक व्यक्ति को जीवन का यह सार शिक्षा में नहीं दिया जान
Durga Bangari
..................... #political-love मेरा उसका रिश्ता बड़ा लोकतांत्रिक था। वो दक्षिणपंथी सी,मैं वामपंथी था। कई बैठकों के बाद वक्त के बदलते समीकरणों के साथ-साथ