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मनोज कुमार झा "मनु"

सनातन हिन्दू वैदिक संस्कृति में सभी मत पंथों का समान रूप से आदर है। यद्यपि नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा है, तथापि आंग्ल नववर्ष की हार्दिक श

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New Year 2024-25 सनातन हिन्दू वैदिक संस्कृति में सभी मत पंथों का समान रूप से आदर है। 
यद्यपि नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा है, 
तथापि आंग्ल नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ । 

नव-उल्लास ! नव-विचार ! 
नवोत्साह ! नव-उमंग ! 
नव-ऊर्जा ! नववर्षम् शुभम् भवतु !! 

"नूतनवर्षस्य शुभाशयाः।
ईश्वरः सर्वेभ्यः सुखं, स्वास्थ्यं, सौख्यं च ददातु।
सर्वेषां जीवनं सफलं, समृद्धं च भवतु ।
नववर्षं मंगलमयम् अस्तु।

©मनोज कुमार झा "मनु" सनातन हिन्दू वैदिक संस्कृति में सभी मत पंथों का समान रूप से आदर है। 
यद्यपि नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा है, 
तथापि आंग्ल नववर्ष की हार्दिक श

Sunita Pathania

neelu

#sad_quotes #yesterday I #Saw a few episodes of the #Mahabharat series and today all I can say is विजय भव .....कल्याण हो.. Thank God...

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White Yesterday I saw a few episodes 
of the Mahabharat series 
and today all I can say is
विजय भव .....कल्याण हो..
Thank God...

©neelu #sad_quotes #Yesterday I #saw a few episodes 
of the #Mahabharat series 
and today all I can say is
विजय भव .....कल्याण हो..
Thank God...

संस्कृत लेखिका तरुणा शर्मा तरु

स्वलिखित हिन्दी रचना संस्कृत अनुवाद सहित अनुवाद सहित शीर्षक विचित्रः प्रतिद्वन्द्वी . . विधा गहन विचार भाव वास्तविक

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Avinash Jha

कुरुक्षेत्र की धरा पर, रण का उन्माद था,
दोनों ओर खड़े, अपनों का संवाद था।
धनुष उठाए वीर अर्जुन, किंतु व्याकुल मन,
सामने खड़ा कुल-परिवार, और प्रियजन।

व्यूह में थे गुरु द्रोण, आशीष जिनसे पाया,
भीष्म पितामह खड़े, जिन्होंने धर्म सिखाया।
मातुल शकुनि, सखा दुर्योधन का दंभ,
किंतु कौरवों के संग, सत्य का कहाँ था पंथ?

पांडवों के साथ थे, धर्म का साथ निभाना,
पर अपनों को हानि पहुँचा, क्या धर्म कहलाना?
जिनसे बचपन के सुखद क्षण बिताए,
आज उन्हीं पर बाण चलाने को उठाए।

"हे कृष्ण! यह कैसी विकट घड़ी आई,
जब अपनों को मारने की आज्ञा मुझे दिलाई।
क्या सत्य-असत्य का भेद इतना गहरा,
जो मुझे अपनों का ही रक्त बहाए कह रहा?"

अर्जुन के मन में यह विषाद का सवाल,
धर्म और कर्तव्य का बना था जंजाल।
कृष्ण मुस्काए, बोले प्रेम और करुणा से,
"जो सत्य का संग दे, वही विजय का आस है।

हे पार्थ, कर्म करो, न फल की सोच रखो,
धर्म की रेखा पर, अपना मनोबल सखो।
यह युद्ध नहीं, यह धर्म का निर्णय है,
तुम्हारा उद्देश्य बस सत्य का उद्गम है।

©Avinash Jha #संशय
#Mythology  #aeastheticthoughtes #Mahabharat #gita #Krishna #arjun

संस्कृत लेखिका तरुणा शर्मा तरु

स्वलिखित संस्कृत लेख भाग१ अद्यत्वे अपि अग्निप्रवेशम अद्यत्वे अपि स्थितिः प्रत्येकस्य महिलायाः अग्निप्रवेशम अस्ति। प्रतिक्षणं ददाति, जीवनस

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