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Bharmal GaRg
तुम कभी थे सूर्य लेकिन अब दियों तक आ गये। थे कभी मुख्पृष्ठ पर अब हाशियों तक आ गये॥ वक्त का पहिया किसे कुचले कहाँ कब क्या पता। थे कभी रथवान अब बैसाखियों तक आ गये॥ देख ली सत्ता किसी वारांगना से कम नहीं। जो कि अध्यादेश थे खुद अर्जियों तक आ गये॥ • पंक्तियां : भारमल गर्ग "साहित्य" 🌻 तुम कभी थे सूर्य लेकिन अब दियों तक आ गये। थे कभी मुख्पृष्ठ पर अब हाशियों तक आ गये॥ वक्त का पहिया किसे कुचले कहाँ कब क्या पता। थे कभी रथवान
Tera Sukhi
मर चुकी जो हुई अमर सच्चाई जिंदा रहती है ये दुनिया है फरेब की बस्ती सब पर हंसती है बे रहम है वख्त बड़ा रहम की कोई उम्मीद न बोटी बोटी ज़िमेदारियाँ सपनों की करती है * सच्चाई * मर चुकी जो हुई अमर सच्चाई जिंदा रहती है ये दुनिया है फरेब की बस्ती सब पर हंसती है बे रहम है वख्त बड़ा रहम की कोई उम्मीद न बोटी
Juhi Grover
ज़िन्दगी में सब कुछ आसान हो, अगर हम सब में स्वीकार भाव हो। (अनुर्शीषक में पढ़ें) कारवाँ की तलाश में भटकना जायज़ है, मंज़िल तो पानी है सब ने अपने लिए भीड़ के साथ तो मगर सब चलते हैं, अपने ही हाशियों पर नहीं चल प