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ಅಂಬಿಕಾ ಬಿಕೆ

Raj Kishor Roy

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Banarasi..

Event hai! Poetry #Event #Life

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Emiwon Villger

full music video on YouTube channel - mafia ev #Videos

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Rashi

शाम का दामन थाम #Sunrise #evening #eveningquotes Shayari #Shaayari #RakeshShinde #Poetry

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Abhishek Yadav

◆◆ चाय और यादें ◆◆

आज सुबह चाय पीते वक्त तुम्हारी याद आयी। याद क्या आयी? मैं चाय बनाते वक्त एक गीत गुनगुना रहा था। उस गीत में नायिका अपने नायक को कहती है कि शायद अब इस जन्म में तुमसे मुलाकात हो न हो। तभी चाय पर उबाल आ गया मैंने उबाल को फूँक से नीचे धकेलना चाहता था। मगर! ठीक उस वक्त मुझे तुम्हारी इतनी गहरी याद आई कि मैंने पैन को बर्नर से उतार दिया। चाय का उफान उतर चुका था। मगर! मेरे मन में बरबस एक उफान उठ खड़ा हुआ। चाय छानते हुए मैंने सोचा चाय छानते समय तुम्हारी हड़बड़ी क्या अब भी पहले के जैसे होगी? या अब तुमने खुद की साँसों का अनुशासन साध लिया होगा? सुबह की चाय की हर घूँट पर मैंने तुम्हारी न बदलनें वाली आदतों को बड़ी शिद्दत से याद किया। यादों की एक सबसे खराब बात यह होती है कि ये अपनी सुविधा से आती है। भले ही हम उसके लिए तैयार हों या न हों। यादें आकर हमें हद दर्जे तक अस्त-व्यस्त करने की जुर्रत रखतीं हैं। आज चाय में थोडा मीठा कम रह गया। हालांकि! मैं कम मीठी चाय ही पीता हूँ। मगर आज उतनी मिठास नही थी जितनी मुझे चाहिए। फिर मैंने किसी सिद्ध मान्त्रिक की तरह चाय में फूँक मारते हुए तुम्हारी चंद मीठी बातों को चाय के अंदर फूँक दिया। ऐसा करने के लिए मुझे अपनी याद्दाश्त पर थोड़ा जोर जरुर देना पड़ा। क्योंकि! तल्खियों की स्मृतियाँ हमेशा अधिक जीवंत रहती है। मगर एक बार तुम्हारी मीठी बातें जब याद आई तो फिर चाय की मिठास खुद ब खुद बढ़ गई। मैंने अपने होंठो पर जबान फेरी तो याद आया कि कुछ अक्षर वहाँ अकेले टहल रहें थे। मैं उनके निर्वासन में हस्तक्षेप का अधिकार खो बैठा हूँ, यह सोचकर मेरा जी थोड़ा उदास जरुर हो गया। इन दिनों मैं चाय के बहाने किसी को भी याद नही करता हूँ। मुझे लगता है, याद के लिए किसी बहाने की जरूरत नही होती है। बीते कुछ दिनों से मैंने चाय मौन के इर्द-गिर्द और लगभग निर्विचार होकर पी है। अधिकतम मैं यह करता हूँ कि छत पर चला जाता हूँ। फिर वहाँ से शहर को देखता हूँ। रोचक बात यह है कि शहर को देखते हुए मैं केवल शहर को देखता हूँ। मुझे गलियाँ और मकान दिखने बंद हो जाते हैं। कभी लगता है शहर ऊँघ रहा है। तो कभी मुझे शहर भागता दिखायी देता है। कुल जमा दो–चार-छह दृश्यों में चाय खत्म हो जाती है। आज सुबह चाय पीने के बाद मैंने सोचा कि आज तुम्हें फोन करूंगा। मगर! दिन चढ़ते-चढ़ते यह विचार भी निस्तेज होकर मन के पतनाले से बह गया। मैं देर तक सोचता रहा कि याद आने और बात करने में कोई सह-सम्बन्ध है नही इसलिए किसी की याद आने पर उसे क्या फोन करना? हो सकता है मैं तुम्हें उस दिन फोन करूँ। जिस दिन मुझे तुम्हारी बिलकुल याद न आई हो। फोन शायद एक जरूरत से जुडी क्रिया और यादें किसी जरूरत की मोहताज नही हैं। शाम को तुम्हारी याद मुझे खुद से बेदखल न कर दें, इसलिए मैंने तय किया है कि आज शाम कॉफी पियूँगा। वो इसलिए क्योंकि! कॉफी तुम्हें पसंद थी, और मुझे नापसंद। मगर! इसका यह मतलब बिलकुल भी नही है कि तुम्हारी यादें मुझे अकेला छोड़ देंगी। वो कॉफी के बहाने से भी जरुर आएँगी। इस बार फर्क बस इतना होगा वो मुझसे कोई सवाल नही करेंगी। और सवालों से बचता-बचाता मैं जीवन के उस दौर में पहुंच गया हूँ। जहाँ अब मुझे एकांत में कॉफी और भीड़ में चाय दोनों की ही जरूरत महसूस नही होती है। हालांकि! यह एक खराब बात है, खराब क्यों है? तुम बेहतर जानती हो। हमारी आखिरी चाय इसी बात के कारण आज स्थगित पड़ी है।।
             -✍️ अभिषेक यादव

©Abhishek Yadav #eveningtea

gopi kiran

#eveningtea

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Sangeetha N

ashita pandey बेबाक़

लाख बिखरुं
लेकिन 
संभलना , ज़रूर होता हैं
यू भी,
कभी कभी 
खुद पे, ग़ुरूर होता हैं....

#पगली लड़की की क़लम से
#मैं अकेले संभल जाने का हुनर जानती हूँ
#दुखता हैं मेरी जान,मग़र दिखेगा नहीं

©ashita pandey  बेबाक़ #EveningBlush

Rahul Panghal

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