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Devesh Dixit
किवाड़ों से झाँकती रौशनी एक जगह थी जो सुनसान, दिखा वहीं पर घर अनजान। घर के आगे खुला इलाका, दिखता था पूरा शमशान। यहाँ सन्नाटा सब ओर था, घर पर नहीं कोई और था। किवाड़ों से झाँकती रौशनी, जिसका नहीं कोई छोर था। धूल - मिट्टी से भरा हुआ था, जालों का भण्डार लगा था। टूटते से किवाड़ थे उसके, कबूतरों का वो घर बना था। फर फर कर उसमें मंडराते, वो गुटर गूँ से शोर मचाते। खाने को नहीं मिले वहाँ कुछ, भोजन लाने को उड़ जाते। कर जतन भोजन को लाते, बड़े मगन से फिर वो खाते। हो जाता जब घर में अँधेरा, बेखौफ हो कर वो सो जाते। क्या आगे मैं हाल बताऊँ, वीराने का दृश्य दिखाऊँ। जाता नहीं कोई वहाँ पर, यही तुमको मैं समझाऊँ। ............................................. देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #किवाड़ों_से_झाँकती_रौशनी #nojotohindi #nojotohindipoetry किवाड़ों से झाँकती रौशनी एक जगह थी जो सुनसान, दिखा वहीं पर घर अनजान। घर के आगे खु
Devanand Jadhav
.......... ©Devanand Jadhav #MahavirJayanti अहिंसा परमो धर्म: ...जगाला शांती, अहिंसा व सत्य यांचा मार्ग दाखविणारे भगवान महावीर हे जैन धर्माचे 24 वे तिर्थकार आहेत...त्य
Yogi Sonu
White आज एकादशी है । आज के दिन हमारे शरीर को भोजन की जरूरत नहीं होती और शरीर अपने आप को पुन व्यवस्थित करने के लिए अपने आप को ही सफाई करता है इससे शरीर शुद्धि होती है इसी को कहते है उपवासना के क्षण लागे जैसे अमृत के क्षण।। उपासना का यही अर्थ है यही इसका विज्ञान है ।। ©Yogi Sonu आज एकादशी है । आज के दिन हमारे शरीर को भोजन की जरूरत नहीं होती और शरीर अपने आप को पुन व्यवस्थित करने के लिए अपने आप को ही सफाई करता है इससे
Ankit Singh
क्या आप जानते हैं कि नरसंहार में जीवित बचे अधिकांश लोग शाकाहारी क्यों हैं? ऐसा इसलिए है क्योंकि वे जानते हैं कि एक जानवर की तरह व्यवहार करना कैसा होता है। ©Ankit Singh क्या आप जानते हैं कि नरसंहार में जीवित बचे अधिकांश लोग शाकाहारी क्यों हैं? ऐसा इसलिए है क्योंकि वे जानते हैं कि एक जानवर की तरह व्यवहार करना
Ankit Singh
एक मनुष्य भोजन के लिए जानवरों को मारे बिना जीवित और स्वस्थ रह सकता है, इसलिए, यदि वह मांस खाता है, तो वह केवल अपनी भूख के लिए पशु जीवन लेने में भाग लेता है। ©Ankit Singh एक मनुष्य भोजन के लिए जानवरों को मारे बिना जीवित और स्वस्थ रह सकता है, इसलिए, यदि वह मांस खाता है, तो वह केवल अपनी भूख के लिए पशु जीवन लेने
Ravendra
Ravendra
Ravendra
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
दोहा जब भी तुम आहार लो , ले लो राधा नाम । रोम-रोम फिर धन्य हो , पाकर राधेश्याम ।। कभी रसोई में नहीं ,करना गलत विचार । भोजन दूषित बन पके , उपजे हृदय विकार ।। प्रभु का चिंतन जो करे , सुखी रखे परिवार । आपस में सदभाव हो , सदा बढ़े मनुहार ।। प्रभु चिंतन में व्याधि जो , बनते सदा कपूत । त्याग उसे आगे बढ़े , वह है रावण दूत ।। प्रभु की महिमा देखिए , हर जीव विद्यमान् । मानव की मति है मरी , चखता उसे जुबान ।। पारण करना छोडिए , विषमय मान पदार्थ । उससे बस उत्पन्न हो , मन में अनुचित अर्थ ।। २९/०२/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा जब भी तुम आहार लो , ले लो राधा नाम । रोम-रोम फिर धन्य हो , पाकर राधेश्याम ।। कभी रसोई में नहीं ,करना गलत विचार । भोजन दूषित बन पके ,