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परवाज़ हाज़िर ........
" शरणार्थी वह है जो बच गया और जो भविष्य बना सकता है। " ©G0V!ND DHAkAD #worldrePuGeeDaY विश्व शरणार्थी दिवस 2021 की थीम एक साथ हम चंगा करते हैं, सीखते हैं और चमकते हैं। दिन के बारे में आपको जो कुछ भी जानने की
Sachin Ratnaparkhe
ग़ज़ल अगर यहीं के हो ,तो इतना "डर" कैसे, मगर चोरी से घुसे हो तो ये तुम्हारा "घर" कैसे?? अगर तुम "अमनपसंद" हो तो इतनी "गदर" कैसे? जिसे खुद "खाक" कर रहे हो,वो तुम्हारा "शहर" कैसे?? कल तक सिर्फ कोहरा था,मेरे शहर की फ़िज़ा में, आज़ नफरत का धुआं है तो सुहानी "सहर" कैसे? इज़हार ए नाराज़ी करो आईन(constitution)की ज़द में, मगर गली कूंचों में, इतनी "मज़हबी लहर" कैसे? सिर्फ लहज़ा सख्त होता, तो हम चुप भी रह लेते, मगर तुम्हारे लफ़्ज़ों और नारों में, "जिहादी ज़हर" कैसे? सियासत से ख़िलाफ़त करो, हमे कोई गिला नही है, रियासत (Nation)से दग़ा होगी, तो हम करें "सबर" कैसे? अगर यहीँ के हो तो इतना "डर" कैसे? मगर चोरी से घुसे हो, तो ये तुम्हारा "घर" कैसे?? 🇮🇳🇮🇳🇮🇳 :- अज्ञात यह ग़ज़ल मेरे द्वारा नहीं रची गई है मगर जिसने भी रची है उसका साभार। यह ग़ज़ल किसी एक धर्म विशेष के खिलाफ नहीं है बल्कि हर उस व्यक्ति पर कुठ
Priyanka Singh
Sumit Singh #NojotoQuote सॉरी – “गुस्से को” दुख – “जिंदगी को” गुस्सा – “रिस्ते को” जूठा – “विस्वास को” साथ – “गम को” धोखा – “प्यार को” Facebook – “लाइफ को” Apps – “स
SAAJAN KUMAR The Technical Guru
आदत तेरी आदतों को मैंने कुछ इस तरह पाला आदतों की खातिर तेरी मैंने खुद की आदतों को बदल डाला आदतों में तू मेरी अब कुछ इस तरह समाया खो चुका हूं अब खुद को मैं मेरी रूह में भी मैंने तुझे ही पाया साजन कुमार आदतों को को दिया
azma khan
खुद को खोने का पता नहीं चला, किसी को पाने की यूं इंतहा कर दी मैंने ©azma khan को दिया खुद को
MIVAN GANDHI
दरिया को मत पूछो तुम कहा तक जाओगे वो भी इन्सान की तरह भटक रहा है। दरिया भी क्या करे उसे समंदर का पता नही किधर है। अनजान से रास्ते मे भटकते जा रहा है। ©MIVAN GANDHI दरिया को को बताए #sagarkinare
Vivek
देखो यूँ ही गुजरे न हर लम्हा यूँ ही तन्हा न तड़पो तुम जो ख़त कबसे खोला नहीं है सिर्फ़ उसी को पढ़ लो तुम मगरूर इश्क़ में ठीक नहीं है बिन मगरूर ही मर लो तुम खुद या मुझ में जो चुनना है क्यों न मुझ को चुन लो तुम...!!! ©Vivek # खुद को या मुझ को
Meenakshi Sharma
शायरी आज फिर बारिश की बूंदें इस तरह बरसी है, जैसे आकाश में धरती से मिलने को तरसी है, प्यार बफा सब धोखा है बारिश की बूंदों ने भी, क्या किसी को रोका है। Meenakshi Sharma धरती को मिलने को तरसी है