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Rajendrakumar Jagannath Bhosale
अभंग 127 श्रद्धा वाढे अविवेका, तर्क ज्ञानाचा आवाका नतमस्तक पावका, विज्ञानयुगी ll धृ ll यश अर्थ वृध्दी साठी, घेऊनी अज्ञान काठी धावतो मृतात्म्या पाठी, संसारात ll 1ll भौतिक सूखे गुंतला, नीजस्वार्थ बोकाळला स्वदेव वर्म विसरला, राजे म्हणे ll 2ll ©Rajendrakumar Jagannath Bhosale अभंग 127
अभंग 127
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White मन अपनी धुन में क्यूँ भागे है, चिंतन में मन क्यूँ लागे है? छेड़ रण अब ख़ुद के मन से, भजन कीर्तन कैसे न रागे है? जग झूठे सुख में अभियोग है, जो लिप्त हुआ, सुख न पाया है। जब अंतःमन प्रभु पुकारा है, हर हृदय ने प्रभु को पाया है। शरण में सर्वत्र न्यौछार दिया, प्रभु ने उस जीवन को तार दिया। जो नित ध्यान प्रभु में धारिता, उसके जीवन का सार किया। जीवन के सारे सुख निरर्थक हैं, बिन प्रभु के कुछ भी सार्थक नहीं है। जीवन का कोई राह दिखे न, तो फिर प्रभु शरण ही उपाय है। ©theABHAYSINGH_BIPIN #good_night मन अपनी धुन में क्यूँ भागे है, चिंतन में मन क्यूँ लागे है? छेड़ रण अब ख़ुद के मन से, भजन कीर्तन कैसे न रागे है? जग झूठे सुख म
#good_night मन अपनी धुन में क्यूँ भागे है, चिंतन में मन क्यूँ लागे है? छेड़ रण अब ख़ुद के मन से, भजन कीर्तन कैसे न रागे है? जग झूठे सुख म
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