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Rani Ashish Thakur
सहन शक्ति की भी अपनी एक सीमा होती है,, रबर की तरह,, रबर को आवश्यकता से अधिक खिचने पर टूट जाता है,, उसी प्रकार से सहन शक्ति भी कुछ समय पश्चात टूट जाती हैं।। इसलिए स्वयं में झाँकना सिखिए।। स्वरचित (रानी आशिष ठाकुर ) ©Rani Ashish Thakur शब्दार्थ।।।
somnath gawade
भांडणातले 'शब्द' जरी माझे असले; तरी त्या शब्दांना 'अर्थ' तुला हवे तसे होते. #शब्दार्थ
Dayal "दीप, Goswami..
कुछ शब्दों की समझ का फेर था,जी का जंजाल बन गया जिंदगी में बहुत कुछ हासिल किया कैसे कंगाल बन गया खोजा शकून गली गली ,ना जाने कैसे बवाल मच गया, जिंदगी की तलाश में, जिंदगी का ही ये सवाल बन गया।******************* अपने ही शब्दों की खातिर हम ने खुद को रोक लिया जिंदगी के एक अध्याय को हमने यहीं खत्म, किया अधूरी ख्वाइश,जिंदगी की अधूरी कहानी बनकर रह गई लफ्ज़ खामोश ,शब्द खामोश, यहीं अब जिंदगी बन गई। ,,दीप,, , #शब्दार्थ का फेर@@
Asheesh indian
न किसी के लिए शेष, न किसी के लिए विशेष इस मोह भरी दुनिया में बनकर रहो आशीष ©Asheesh indian शब्दार्थ, आशीष :-(यानी जैसे को तैसा) #Foggy
Nasamajh
वो सख़ी है तो किसी रोज़ बुला कर ले जाएं और मुझे वस्ल के आदाब सिखा कर ले जाएं !! मेरे अंदर किसी अफ़सोस की तारीकी हैं इस अँधेरे में कोई आग जला कर लें जाएं !! यें मेरी रूह में निंद की थकन कैसी हैं वो समंदर की तरह आए बहा कर ले जाएं !! हिज्र में जिस्म के इसरार कहाँ खुलते हैं अब वहींं सहर करें प्यार से आ कर लें जाएं !! ख़ाक आँखों में है वो ख़्वाब कहाँ मिलता है जो मुझे क़ैद-ए-मनाज़िर से रिहा कर लें जाए ।। शब्दार्थ :- तारिकी - अंधेरा इसरार - आग्रह , हठ सहर - सुबह
निश्चय सिंह "समग्र"
शब्दार्थ~ अलि- भवँरा, आली- सखी/तुम #सुनसान_रात #तेरी_चंचलता
Death_Lover
कुछ बेहतर हालात न थे मेरे, कभी भी कहीं पर भी साथ न थे मेरे, कैसे कह देता किसी को भी बेगाना खुद से, कमबख्त ऐसे कहने के लिए भी शब्दार्थ न थे मेरे॥ "हिमांश" कुछ बेहतर हालात न थे मेरे... (एक वो जो रह गया) ©Himanshu Tomar #साथ #हालात #शब्दार्थ #अकेला #तन्हाई #अल्फाज़ो_का_शोर #हिमांशु_तोमर #हिमांश #Darknight
Nasamajh
सोचता हूँ कि उसे अपनी रज़ा के लिए छोड़ दूँ वो जो कहती है उसको ख़ुदा के लिए छोड़ दूँ !! चूमने के लिए थाम कर रखूँ कोई दामन.. वो हाथ और वो पाँव रंग-ए-हिना के लिए छोड़ दूँ !! शहर को सारे लोगों में तक़्सीम कर दूँ मगर , चंद गलियाँ मैं अपनी सदा के लिए छोड़ दूँ !! ख़्वाहिशें तंग हैं दिल के अंदर अगर तुम कहों तों यें कबूतर तुम्हारी फ़ज़ा के लिए छोड़ दूँ !! कार-ए-मुश्किल तो है हीं मगर मैं भी मजबूर हूँ इब्तिदा को अगर इंतिहा के लिए छोड़ दूँ !! मेरा हरगिज़ भी कोई भरोसा नहीं है अगर मैं रवा ,को यहाँ ना-रवा के लिए छोड़ दूँ !! यें भी मुमकिन है ख़ुद से किसी दिन गुज़रते हुए अपने टुकड़े कहीं जा-ब-जा के लिए छोड़ दूँ !! अब यें सोचा है मुट्ठी में उम्र-ए-बक़ाया मेरी जो भी है एक देर-आश्ना के लिए छोड़ दूँ !! ख़ुद से बाहर निकल जाऊँ मैं और ख़ुद को 'यारों' कोई दिन जंगलों की हवा के लिए छोड़ दूँ ।। शब्दार्थ :- तक़्सीम - बांटना इब्तिदा - शुरुआत जा-ब-जा - जगह-जगह रवा - कण फज़ा - मौसम
Rajesh Jha
बंद दरवाज़ा आँखे खुली हुई वहाँ सितारों की छांव में बैठी कुर्सी मैं, ये बिस्तर और रातें आराम भरी ख्वाब तुम्हारा और उनमें मुलाकात हमारी सोऊ या जागू इस कशमकश में जिंदगी मेरी एक पानी से भरा गिलास और उससे मेरी पूछाताछी क्या आगे, क्या पीछे, क्या से क्या की चल रही बहस मेरी तुम सामने हो इज़हार करू या नही बताऊ तुम्हे कितनी चाहत से भरी तुमसे जिंदगी हर्फ़ मेरे शब्दों को सहारा दे तो तुम हो मेरी हंसी, मुस्कुराहट और तुम्हारी लालिमा आँखों में वो शरारतें मानो राजेश के हो राजेश के लिए ही आफत अदाए या तुम्हारी हसीन दिल्लगी मैं, बंद दरवाज़ा और दरवाज़े के बाहर की जिंदगी सोच में मैं राजेश और संग बैठी कुर्सी हम से हमारी नज़दीकियों में भी ये कैसी दूरी सब साँचे में एक आयाम की कमी सब्र, आरजू, तुम और ये राते उनमें ख्वाब जामीन सितारे इसका रफ्त महताब संग मैं, बंद दरवाज़ा आंखें खुली हुई तन्हा ही बीत गई एक और रात । ख्वाब और मैं 😊 . . . . . . शब्दार्थ:-😊😊