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Shashi Bhushan Mishra
ज़िन्दगी बदहाल, रह गया मलाल, अधूरे सब स्वप्न, ख़्वाब और ख़्याल, मिल नहीं पाये, गाल और गुलाल, बीज का रहबर, खेत और कुदाल, शुष्क धरती पर, फसल थी बेहाल, घर में किलकारी, मच गया धमाल, प्रेम की बारिश, गुंजन हुआ निहाल, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज ©Shashi Bhushan Mishra #रह गया मलाल#
Arora PR
White तु नमाजी हैं या शाराबी हैं. मुझे कोई एतराज नहीं हैं मुझे फर्क पड़ता तब ज़ब तेरी इंसानियत हवानियत में बदल जाती हैं ©Arora PR नमाज़ी या शराबी
Rameshkumar Mehra Mehra
है ना कमाल.... ©Rameshkumar Mehra Mehra !# किया तो इश्क था,करनी पड रही है शायरी,है ना कमाल..
Arora PR
White दूर चला गया हैं वो मेरा दामन छिटक कर जिसे हमने जिंदगी के सफर के लिए हमसफर समझा था उसकी तलाश मे मैंने गली मोहल्लो की खाक छान ली हैं....बस्ती का हर दरवाज़ा भी बजा कर देख लिया हैं पर पतानहीं वो किस तरफ क़ो निकल गया हैं ©Arora PR दूर चला गया गया हैं वो
Ganesh Joshi
White वादा था मुकर गया... नशा था उतर गया... दिल था भर गया... इंसान था बदल गया.. ©Ganesh Joshi वादा था मुकर गया... नशा था उतर गया... दिल था भर गया... इंसान था बदल गया.#.SAD #
Mohit Gupta
Autumn दिल को अंदर तक तोड देते है जब आंखो से बूंदे गिरती तब इन्सान अंदर से पूरी तरह टूट जाता हैं। बाहर से मिलने वाली खुशी उससे हंसा सकती है ,पर अंदर से तो खत्म हो चुका है।। ©Mohit Gupta टूट गया हू।
Kiran Chaudhary
ये भी शायद ज़िंदगी की इक अदा है दोस्तों, जिसको कोई मिल गया वो और तन्हा हो गया। ©Kiran Chaudhary जिसको कोई मिल गया वो और तन्हा हो गया।
Shashi Bhushan Mishra
अरसा बीत गया घर छोड़े, गाँव गली सबसे मुँह मोड़े, निकल पड़ा रोजी तलाशने, पग-पग खाते संघर्ष थपेड़े, कठिन समस्या ने आ घेरा, बादल बन घिर आए घनेरे, वक़्त पे साथ न देता कोई, मिल जाते साथी बहुतेरे, याद बहुत आते हैं अपने, परदेशी मन शाम सवेरे, सफर में कट जाती हैं रातें, भूल गये सब रैन बसेरे, पीड़ा कोई न समझे 'गुंजन', विरह में मन को साँप डँसे रे, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #अरसा बीत गया#
Shashi Bhushan Mishra
रूठ गया जब मन का सपना, नींद ख़राब करूँ क्यों अपना, प्यास हृदय की मिट जायेगी, राम नाम की माला जपना, मुफ़्त मिले तो मूल्य न समझे, सुख पाने को पड़ता तपना, बुरा वक़्त पहचान कराये, कौन पराया कौन है अपना, कोई नहीं बचा है जग में, समय चक्र है सबका नपना, जगह दिलों में बने तो बेहतर, अख़बारों में क्योंकर छपना, सदुपयोग सीख ले 'गुंजन', पड़ता है सबको ही खपना, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #रूठ गया जब#