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Sunita Shanoo

ये छिछली मानसिकता के लोग

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एक दूसरे पर कीचड़ उछालती यह एक भीड़ है जिसे खत्म करना या कम कर पाना नामुमकिन है, यहाँ हर एक शराबी दूसरे को बेवड़ा कह हिकारत की नज़र से देखता है, हर कोई जानता है अपनी कमियों को मगर झांकता दूसरे के गिरेबान में ही है, कहने को हम पढ़ेलिखे सभ्य समाज के नागरिक हैं, दुनिया को बदलकर रख देने का हुनर रखते हैं, हमारी औलादें आजादी के पंख लगाए हमारी और तकती है लेकिन हम उन्हें सौंप रहे हैं कुंठा और गंवारपन। ये छिछली मानसिकता के लोग

Rajiv R Srivastava

कहने को तो दुनिया भर की बातें हैं। कहनेकोतो collab yqdidi YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi rasi कहने को तो बात बहुत

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कहने को तो बात बहुत है, पर यहाँ सुनेगा कौन।
सुन भी गर ले कोई तो,बातों को समझेगा कौन॥
✍🏻@raj_sri

#RasiNama

⤵️ कहने को तो दुनिया भर की बातें हैं।
#कहनेकोतो #collab #yqdidi  #YourQuoteAndMine
Collaborating with YourQuote Didi
#rasi

कहने को तो बात बहुत

CalmKazi

Click on #ishfaq for more musings on Love. Full Poetry - समुंदर में छिछली बूंद सी, बारिश से बनी ओस की बूंद सी, खिड़की पर खिसकती छींटों की ल #Hindi #मोहब्बत #yqbaba #ज़िन्दगी #हिंदी #कविता #yqdidi #NAPOWRIMO #glopowrimo #calmkaziwrites

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समुंदर में छिछली बूंद सी,
बारिश से बनी ओस की बूंद सी,
खिड़की पर खिसकती छींटों की लड़ी सी,
सूखी ज़मीन पर टपके बूंदों के दाग सी,
आंखों से गिरे, हाथों में सिमटे, आँसू के लिहाज सी
पिचकारी के रंगों की फुहार सी,
बारिश में घूमते छपकों की खुशी सी,
छतों पर रखे दोनों में बुझी प्यास सी,
ठंड से उमस में आते, चश्मे पर भाप सी,
दूरी से भीगे, तकिये के गिलाफ सी,
मेरी माँ की खुशी से सनी,
क्षणभंगुर ही सही, हर तरफ समान सी,
हँसी में भी वैसी, दुखों से पुख्ता हुई,
यह ज़िंदगी, मोहब्बत भरी ।। Click on #IshFAQ for more musings on Love.

Full Poetry -

समुंदर में छिछली बूंद सी,
बारिश से बनी ओस की बूंद सी,
खिड़की पर खिसकती छींटों की ल

रजनीश "स्वच्छंद"

एक सत्य।। सूरज भी हुए तो क्या, ढलना फिर भी पड़ता है। मुश्किल जो रहीं राहें, चलना फिर भी पड़ता है। गहरे जो समंदर हो, नदी छिछली रही फिर भी, सा #Poetry #Life #kavita

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Abhishek 'रैबारि' Gairola

सुनो! सुनो ! याद है तुम्हे वो समय, वो पहाड़ों के बीच की छोटी, छिछली झील? वो, जिसकी सतह पर हम दोनों तैरा करते थे, जहाँ बरगद के डाल की बेल

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रजनीश "स्वच्छंद"

छद्मावरण।। उपवन में पुष्प बन मुदित हुआ, तने में दंश छुपाया था। बना शिखंडी छद्मावरण को, मन मे तंज छुपाया था। वाणी रही मधुर मेरी, पर, #Poetry #Quotes #Life #kavita

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छद्मावरण।।

उपवन में पुष्प बन मुदित हुआ,
तने में दंश छुपाया था।
बना शिखंडी छद्मावरण को,
मन मे तंज छुपाया था।

वाणी रही मधुर मेरी, पर,
मुख में राम बगल में छुरी थी।
हर बात मुखर मैं कहता गया,
मन मे पलती पर दूरी थी।
बन चंद्रमा चक्कर काटूँ,
अंतर्मन में स्वार्थ की धूरी थी।
चुरा रौशनी सूरज की,
क्या क्षणिक चमक जरूरी थी।
जीवन को कहता पानी था,
कृत्यों में रंग छुपाया था।
बना शिखंडी छद्मावरण को,
मन मे तंज छुपाया था।

घर का तानाबाना बुना,
पर था परिवार कोई नहीं।
कुशलक्षेम पूछा बस मुख से,
पर था सरोकार कोई नहीं।
सम्मान बसा है कृत्यों में,
बिन दिए सत्कार कोई नहीं।
एक हाथ न ताली बज पाती,
बिन मिले झंकार कोई नहीं।
एक हाथ उठा हवा में अपने,
बाकी का अंग छुपाया था।
बना शिखंडी छद्मावरण को,
मन मे तंज छुपाया था।

अहं रहा जीवन मे इतना कि,
हर राह मैं अपनी गढ़ता हूँ।
निपट अनाड़ी दुनिया सारी,
बस मैं नयनों को पढ़ता हूं।
पांव तले दबा अपनों को,
सफल मैं सीढ़ी चढ़ता हूँ।
जो मैं से हम मैं हो न सका,
इस मृत्यलोक मे तरता हूँ।
मुस्कान सजा होंठों पे अपने,
मन का दम्भ छुपाया था।
बना शिखंडी छद्मावरण को,
मन मे तंज छुपाया था।

कहो कहाँ बंजर में कभी,
जलधारा कहाँ संचित होगी।
मैंभाव प्रहार करे गहरा,
मानवता रक्त से रंजित होगी।
स्वार्थधिन जो बढ़े कदम,
वो आंसू कंधों से वंचित होगी।
जीवनधारा मलीन हुई जो,
नदितीर छिछली पंकित होगी।
पग पग जो बेड़ी जड़ी कदमों में,
चलने का ढंग छुपाया था।
बना शिखंडी छद्मावरण को,
मन मे तंज छुपाया था।

©रजनीश "स्वछंद" छद्मावरण।।

उपवन में पुष्प बन मुदित हुआ,
तने में दंश छुपाया था।
बना शिखंडी छद्मावरण को,
मन मे तंज छुपाया था।

वाणी रही मधुर मेरी, पर,

Deepak Kanoujia

बुद्ध से मैं सबसे पहले मिला कक्षा 7 में जब मैंने पढ़ी कहानी महात्मा बुद्ध और डाकू अंगुलिमाल...उनका वो कथन " मैं तो ठहर गया, तू कब ठहरेगा" मेर #buddha #buddhism #osho #nirvaana #modishtro #deepakkanoujia #lovebuddha #angulimala

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बुद्ध एक छिछली नदी हैं
जो तुम्हें गहरे में उतारते हैं
पर तुम्हें डूबने नहीं देते... बुद्ध से मैं सबसे पहले मिला कक्षा 7 में जब मैंने पढ़ी कहानी महात्मा बुद्ध और डाकू अंगुलिमाल...उनका वो कथन " मैं तो ठहर गया, तू कब ठहरेगा" मेर
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