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Sangeeta Kalbhor

#happyteddyday आमचंही आहे हे घर.. नका येऊ कोणी माझ्या मदतीला पण निदान बोला तरी किती काम करशील... थोडा आराम पण कर... तुझी आहे आम्हाला काळजी #कविता

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

उडियाना छन्द :- स्वाद में सब जन बहे , जीव हत्या करें । और देते ज्ञान हैं , पाप क्यों सिर धरे ।। जानते है सब यहीं , पाप है ये बड़ा । देखता ह #कविता

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उडियाना छन्द :-
स्वाद में सब जन बहे , जीव हत्या करें ।
और देते ज्ञान हैं , पाप क्यों सिर धरे ।।
जानते है सब यहीं , पाप है ये बड़ा ।
देखता हूँ फिर वहाँ , घेरकर सब खड़ा ।।

मारकर सब डुबकियां ,  पाप धोने चले ।
मातु गंगा सोचती , तनय कैसे पले ।।
पीर इनकी सब मिटे,  और आगे बढ़े ।
राह जीवन की सभी , स्वयं चलकर गढ़े ।।

कष्ट सारे झेलकर , चक्षु  जिनके खुले ।
राम-सिय जपते रहे , श्वास जब तक चले ।।
लौट जायें वो सभी, सुगम पथ पर कहीं ।
विनय करता यह प्रखर , आप ठहरे वहीं ।।
महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR 

उडियाना छन्द :-
स्वाद में सब जन बहे , जीव हत्या करें ।
और देते ज्ञान हैं , पाप क्यों सिर धरे ।।
जानते है सब यहीं , पाप है ये बड़ा ।
देखता ह

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#mothers_day माँ को मत पाये समझ, सुत हैं अब नादान । पूँजी जाती बेटियाँ , है ये प्रथा महान ।। बहन बेटियाँ पूज्य है , समझ उसे मत धातु । #कविता

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White माँ को मत पाएं समझ, सुत हैं अब नादान ।
पूँजी जाती बेटियाँ , है ये प्रथा महान ।।

बहन बेटियाँ पूज्य है , समझ उसे मत धातु ।
सुन उसके हर रूप में , छुपी एक है मातु ।।

वह तन क्यूँ मैला करो , जो दे जीवन दान ।
मान उसे इंसान तू् , अपना अब भगवान ।।

जिस तन को मैला किया , बनकर तू इंसान ।
जन्म वही तुमको दिया , समझ तुम्हें संतान ।।

तन उसका मैला सही , मन उसका है पाक ।
जैसे वन में हो उगा , वृक्ष एक अब आक ।।

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR #mothers_day 

माँ को मत पाये समझ, सुत हैं अब नादान ।

पूँजी जाती बेटियाँ , है ये प्रथा महान ।।


बहन बेटियाँ पूज्य है , समझ उसे मत धातु ।

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

दोहा :- जितने जीवन पल मिले , उतने पल कर प्यार । टूट नहीं जाएँ कहीं ,  साँसों के फिर तार ।।१ #कविता

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White दोहा :-

जितने जीवन पल मिले , उतने पल कर प्यार ।
टूट नहीं जाएँ कहीं ,  साँसों के फिर तार ।।१
                  बच्चे तो हम बन गये , रहा न वह पर ठाठ ।
             अब तो कुछ बाकी नहीं, आयु हो गई साठ ।।२
अपने जीवन का नहीं, सुन ले कोई मोल ।
दिन भर बच्चे डाँटते , सोच समझ के बोल ।।३
               मातु-पिता हम थे कभी, जाओ अब तो भूल।
           काँटा बन अब सुत चुभे , कल तक थे जो फूल ।।४
ऐसी बातें सोचकर , हम तो थे आबाद ।
बच्चों से ही सुख मिले , क्या करते फरियाद ।।५
                    जीवन की इस सोच ने , किया हमें नाशाद ।
                     आयेंगे दिन लौट फिर , देख हुए बरबाद ।।६

०२/०५/२०२४   -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा :-


जितने जीवन पल मिले , उतने पल कर प्यार ।

टूट नहीं जाएँ कहीं ,  साँसों के फिर तार ।।१

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

दोहा :- अनपढ़ ही वे ठीक थे , पढ़े लिखे बेकार । पड़कर माया जाल में , भूल गये व्यवहार  ।।१ मातु-पिता में भय यही , हुआ आज उत्पन्न । #कविता

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दोहा :-
अनपढ़ ही वे ठीक थे , पढ़े लिखे बेकार ।
पड़कर माया जाल में , भूल गये व्यवहार  ।।१
मातु-पिता में भय यही , हुआ आज उत्पन्न ।
खाना सुत का अन्न तो , होना बिल्कुल सन्न ।।२
वृद्ध देख माँ बाप को , कर लो बचपन याद ।
ऐसे ही कल तुम चले , ऐसे होगे बाद ।।३
तीखे-तीखे बैन से , करो नहीं संवाद ।
छोड़े होते हाथ तो , होते तुम बरबाद ।।४
बच्चों पर अहसान क्या, आज किए माँ बाप ।
अपने-अपने कर्म का , करते पश्चाताप ।।५
मातु-पिता के मान में , कैसे ये संवाद ।
हुई कहीं तो चूक है , जो ऐसी औलाद ।।६
मातु-पिता के प्रेम का , न करना दुरुपयोग ।
उनके आज प्रताप से , सफल तुम्हारे जोग ।।७
हृदयघात कैसे हुआ , पूछे जाकर कौन ।
सुत के तीखे बैन से, मातु-पिता है मौन ।।८
खाना सुत का अन्न है , रहना होगा मौन ।
सब माया से हैं बँधें , पूछे हमको कौन ।।९
टोका-टाकी कम करो , आओ अब तुम होश ।
वृद्ध और लाचार हम , अधर रखो खामोश ।।१०
अधर तुम्हारे देखकर , कब से थे हम मौन ।
भय से कुछ बोले नही , पूछ न लो तुम कौन ।।११
थर-थर थर-थर काँपते , अधर हमारे आज ।
कहना चाहूँ आपसे , दिल का अपने राज ।।१२
मातु-पिता के मान का , रखना सदा ख्याल ।
तुम ही उनकी आस हो , तुम ही उनके लाल ।।१३
२५/०४/२०२४     -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा :-

अनपढ़ ही वे ठीक थे , पढ़े लिखे बेकार ।

पड़कर माया जाल में , भूल गये व्यवहार  ।।१


मातु-पिता में भय यही , हुआ आज उत्पन्न ।

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

कुण्डलिया :-  नवदुर्गा माता के नव रूप का , दर्शन का सौभाग्य । पाया जो वागीश ये , लिखने बैठा काव्य ।। लिखने बैठा काव्य , जगत जननी की गाथा । #कविता

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कुण्डलिया :-  नवदुर्गा

माता के नव रूप का , दर्शन का सौभाग्य ।
पाया जो वागीश ये , लिखने बैठा काव्य ।।
लिखने बैठा काव्य , जगत जननी की गाथा ।
देख शारदे मातु , झुका चरणों में माथा ।।
माँ अम्बें की आज , आरती जन-जन गाता ।
होकर खुश वरदान , दिए भक्तों को माता ।।
१२/०४/२०२४    -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR कुण्डलिया :-  नवदुर्गा

माता के नव रूप का , दर्शन का सौभाग्य ।
पाया जो वागीश ये , लिखने बैठा काव्य ।।
लिखने बैठा काव्य , जगत जननी की गाथा ।

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

दोहा :- माता तेरे नाम का , रखता हूँ उपवास । सुत मेरा भी हो सही , बस इतनी है आस ।।१ बदलो मेरे भाग्य की , माता जी अब रेख । हँसते हैं सब लोग अ #शायरी

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Beautiful Moon Night दोहा :-

माता तेरे नाम का , रखता हूँ उपवास ।
सुत मेरा भी हो सही , बस इतनी है आस ।।१
बदलो मेरे भाग्य की , माता जी अब रेख ।
हँसते हैं सब लोग अब , कष्ट हमारे देख ।।२
जीवन से मैं हार कर , होता नही निराश ।
करता रहता कर्म हूँ , होगा क्यों न प्रकाश ।।३
इस दुनिया में मातु पर , रखना नित विश्वास ।
वे ही अपने लाल के , रहती हैं निज पास ।।४
कहकर उसको क्यों बुरा , बुरे बने हम आज ।
ये तो विधि का लेख है , करता वह जो काज ।।५
कभी किसी के कष्ट को , देख हँसे मत आप ।
वह भी माँ का लाल है , हँसकर मत लो श्राप ।।६
मदद नही जब कर सको , रहना उनसे दूर ।
कल उनके जैसे कहीं , आप न हों मजबूर ।।७
करने उसकी ही मदद , भेजे हैं रघुवीर ।
ज्यादा मत कुछ कर सको ,बँधा उसे फिर धीर ।।८
जग में सबकी मातु है, जीव-जन्तु इंसान ।
कर ले उनकी वंदना , मिल जाये भगवान ।।९
माँ की सेवा से कभी , मुख मत लेना मोड़ ।
उनकी सेवा से जुड़े , हैं जीवन के जोड़ ।।१०

११/०४/२०२४       -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा :-

माता तेरे नाम का , रखता हूँ उपवास ।
सुत मेरा भी हो सही , बस इतनी है आस ।।१
बदलो मेरे भाग्य की , माता जी अब रेख ।
हँसते हैं सब लोग अ

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

गीत :- आ गया नवरात्रि का त्यौहार है । देख लो माँ का सजा दरबार है ।। आ गया नवरात्रि का त्यौहार है ... #कविता

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गीत :-
आ गया नवरात्रि का त्यौहार है ।
देख लो माँ का सजा दरबार है ।।
आ गया नवरात्रि का त्यौहार है ...

लोग माँ की कर रहे हैं अर्चना ।
सुन रही हैं मातु सबकी वंदना ।।
और हठ बैठे किए कुछ भक्त हैं ।
मातु पे सुत का सदा अधिकार है ।
आ गया नवरात्रि का त्यौहार है.....

मातु सेवा में लगा दी पीढियाँ ।
चढ़ रहे हम भक्त सारे सीढियाँ ।।
उन पहाड़ों पे करे माँ वास है ।
सुन रही वो भक्त की दरकार है ।
आ गया नवरात्रि का त्यौहार है....

गीत गाकर आज बंदनवार कर ।
मातु का अब भोग भी तैयार कर ।।
आ गई हैं कर सवारी सिंह की ।
अब उन्हीं की हर तरफ जयकार है ।।
आ गया नवरात्रि का त्यौहार है....

मोह माया छोड़ माँ के द्वार चल ।
फिर न मौका ही मिलेगा सोच कल ।।
भूल तेरी आज हो जाये क्षमा ।
कष्ट से होते वही उद्धार है ।
आ गया नवरात्रि का त्यौहार है ।।

आ गया नवरात्रि का त्यौहार है ।
देख लो माँ का सजा दरबार है ।।
१०/०४/२०२४    -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत :-

आ गया नवरात्रि का त्यौहार है ।

देख लो माँ का सजा दरबार है ।।

आ गया नवरात्रि का त्यौहार है ...

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

चौपई /जयकारी छन्द १ मातु-पिता को करूँ प्रणाम । वो ही रघुवर है घनश्याम ।। थाम चले वह मेरा हाथ । और न देता जग में साथ ।। २ #कविता

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चौपई /जयकारी छन्द
१
मातु-पिता को करूँ प्रणाम ।
वो ही रघुवर है घनश्याम ।।
थाम चले वह मेरा हाथ ।
और न देता जग में साथ ।।
२
जीवन की बस इतनी चाह ।
पिता दिखाए हमको राह ।।
पाकर गुरुवर से मैं ज्ञान ।
बन जाऊँ मैं भी इंसान ।।
३
जीवन साथी है अनमोल ।
मीठे प्यारे उसके बोल ।।
घर उसके ले गया बरात ।
पूर्ण किया फिर फेरे सात ।।
४
मानूँ उसकी सारी बात ।
कभी न मिलता मुझको घात ।।
कहती दुनिया मुझे गुलाम ।
लेकिन जग में होता नाम ।।

०३/०४/२०२४    -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR चौपई /जयकारी छन्द

१
मातु-पिता को करूँ प्रणाम ।
वो ही रघुवर है घनश्याम ।।
थाम चले वह मेरा हाथ ।
और न देता जग में साथ ।।
२

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

घर से निकली गोपियाँ , लेकर हाथ गुलाल । छुपते फिरते हैं इधर , देख नगर के ग्वाल ।। लेकर हाथ गुलाल से , छूना चाहो गाल । आज तुम्हारी चाल का #कविता

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घर से निकली गोपियाँ , लेकर हाथ गुलाल ।
छुपते फिरते हैं इधर , देख नगर के ग्वाल ।।

लेकर हाथ गुलाल से , छूना चाहो गाल ।
आज तुम्हारी चाल का , पूरा रखूँ खयाल ।।

आये कितनी दूर से , देखो है ये ग्वाल ।
हे राधा छू लेन दो , यही  नन्द के लाल ।।

हर कोई मोहन बना , लेकर आज गुलाल ।
मैं कोई नादान हूँ ,  सब समझूँ मैं चाल ।।

भर पिचकारी मारते , हम भी तुझे गुलाल ।
तुम बिन तो अपनी यहाँ , रहती आँखें लाल ।।
रिश्ता :-
रिश्ता अपना भी यहाँ , देखो एक मिसाल ।
छुपा किसी से है नही ,  हम दोनो का हाल ।।

रिश्ते की बुनियाद है ,  अटल हमारी प्रीति ।
क्या तोड़ेगा जग इसे , जिसकी उलटी रीति ।।

रिश्ते में हम आप हैं , पति पत्नी का रूप ।
मातु-पिता को मानते , हैं हम अपने भूप ।।

रिश्तों की बगिया खिली , तनय उसी के फूल ।
लेकिन उनमें आज कुछ ,  बनकर चुभते शूल ।।

एक रंग है रक्त का , जीव जन्तु इंसान ।
जिनका रिश्ता ये जगत  , जोड़ गया भगवान ।।

रिश्ता छोटा हो गया , पति पत्नी आधार ।
मातु-पिता बैरी बने , साला है परिवार ।।

०७/०३/२०२४     -     महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR घर से निकली गोपियाँ , लेकर हाथ गुलाल ।

छुपते फिरते हैं इधर , देख नगर के ग्वाल ।।


लेकर हाथ गुलाल से , छूना चाहो गाल ।

आज तुम्हारी चाल का
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