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Shivam Tandon
“ आध्यात्मिक परिचर्चा उस काल पर विचारणीय है, जब प्रचारक के जीवन का आधार स्वाध्यात्म अनुभव हो! अन्यथा अनुचित स्थानों पर ऐसी चर्चाएं सदैव अंधभक्ति और आडंबरमयी विश्वास में कठोरता उत्पन्न करती है। ” ©Shivam Tandon “ आध्यात्मिक परिचर्चा उस काल पर विचारणीय है, जब प्रचारक के जीवन का आधार स्वाध्यात्म अनुभव हो! अन्यथा अनुचित स्थानों पर ऐसी चर्चाएं सदै
Vibhor VashishthaVs
Meri Diary #Vs❤❤ प्रखर राष्ट्रवादी, लोकप्रिय जननेता, भारतीय राजनीति में अपने आचरण से लोकतांत्रिक मूल्यों की पुनर्स्थापना करने वाले राजर्षि, पूर्व प्रधानमंत्री, 'भारत रत्न' श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी जी को उनकी पुण्यतिथि पर अश्रुपूरित विनम्र श्रद्धांजलि...।। 🙏🌺🙏🌺🙏🌺🙏🌺🙏🌺🙏 आपका त्यागमय जीवन हम सभी के लिए एक महान प्रेरणा है...। ✍️Vibhor vashishtha Vs Meri Diary #Vs❤❤ भारत जमीन का टुकड़ा नहीं, जीता जागता राष्ट्रपुरुष है। हिमालय मस्तक है, कश्मीर किरीट है, पंजाब और बंगाल दो विशाल कंधे हैं। प
Ravendra
Anil Siwach
N S Yadav GoldMine
श्री भगवान बोले- गान्धारी। उठो, शोक में मन को न डुबाओ पढ़िए महाभारत !! 🌅🌅 महाभारत: स्त्री पर्व षड़र्विंष अध्याय: श्लोक 1-18 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📜 श्री भगवान बोले- गान्धारी। उठो, उठो। शोक में मन को न डुबाओ। तुम्हारे ही अपराध से कौरवों का विनाश हुआ है। तुम्हारा पुत्र दुर्योधन दुरात्मा, दूसरों से ईष्र्या एवं जलन रखने वाला और अत्यन्त अभिमानी था। दुष्कर्म परायण, निष्ठुर, वैर का मूर्तिमान स्वरूप और बड़े-बूढों की आज्ञा का उल्लंघन करने बाला था। 📜 तुमने उसको अगुआ बनाकर जो अपराध किया है, उसे क्या तुम अच्छा समझती हो? अपने ही किये हुए दोषों को यहां मुझ पर कैसे लादना चाहती हो? यदि कोई मनुष्य किसी मरे हुए सम्बन्धी, नष्ठ हुई वस्तु अथवा बीती हुई बात के लिये शोक करता है तो वह एक दु:ख से दूसरे दु:ख का भागी होता है, इसी प्रकार वह दो अनर्थों को प्राप्त होता है। 📜 ब्राहम्मणी तप के लिये, गाय बोझ ढाने के लिये, घोड़ी वेग से दौड़ने के लिये, शूद्र सेवा के लिये, वैष्य कन्या पषुपालन के लिये और तुम जैसी राज पुत्री युद्ध में लड़कर मरने के लिये पुत्र पैदा करती हैं। वैशम्पयानजी कहते हैं- जनमेजय। श्रीकृष्ण का दोबारा कहा हुआ वह अप्रिय बचन सुनकर गान्धारी चुप हो गयी उसके नेत्र शोक से व्याकुल हो उठे थे। 📜 उस समय धर्मज्ञ राजर्षि धृतराष्ट्र ने अज्ञान से उत्पन्न होने वाले शोक और मोह को रोककर धर्मराज युधिष्ठिर से पूछा- पाण्डुनन्दन। तुम जीवित सैनिकों की संख्या के जानकार तो हो ही। यदि मरे हुओं की संख्या जानते हो तो मुझे बताओ। युधिष्ठिर बोले- राजन। इस युद्ध में एक अरब छाछठ करोड़, बीस हजार योद्धा मारे गये हैं। 📜 राजेन्द्र। इनके अतिरिक्त चैबीस हजार एक सौ पैंसठ सैनिक लापता हैं। धृतराष्ट्र ने पूछा- पुरुषप्रवर। महाबाहू युधिष्ठिर। तुम तो मुझे सर्वज्ञ जान पड़ते हो; अतः यह तो बताओ कि वे मरे हुए सैनिक किस गति को प्राप्त हुए हैं। युधिष्ठिर ने कहा- जिन लोगों ने इस महा समर में वड़े हर्ष और उत्साह के साथ अपने शरीर की आहुति दी है, वे सत्य पराक्रमी वीर देवराज इन्द्र के समान लोकों में गये हैं। 📜 भारत। जो अप्रसन्न मन से मरने का निश्चय करके रणक्षेत्र में जूझते हुए मारे गये हैं, वे गन्धर्वों के साथ जा मिले हैं। जो संग्राम भूमि में खड़े हो प्राणों की भीख मांगते हुए युद्ध से विमुख हो गये थे; उनमें से जो लोग शस्त्र द्वारा मारे गये हैं, वे गुहकलोकों में गये हैं। 📜 जिन महामनस्वी पुरुषों को शत्रुओं ने गिरा दिया था, जिनके पास युद्ध करने को कोई साधन नहीं रह गया था, जो शस्त्रहीन हो गये थे और उस अवस्था में भी लज्जाशील होने के कारण जो रणभूमि निरन्तर शत्रुओं का सामना करते हुए ही तीखे अस्त्र-षस्त्रों से कट गये, वे क्षत्रीय धर्मपरायण पुरुष ब्रम्हलोक में गये हैं, इस विषय में मेरा कोई दूसरा बिचार नहीं है। 📜 राजन। इनके सिबा, जो लोग इस युद्ध की सीमा के भीतर रहकर जिस किसी भी प्रकार से मारे डाले गये हैं, वे उत्तर कुरूदेष में जन्म धारण करेंगे। धृतराष्ट्र ने पूछा- बेटा। किस ज्ञान वल से तुम इस तरह सिद्व पुरुषों के समान सब कुछ प्रत्यक्ष देख रहे हो। महाबाहो। यदि मेरे सुनने योग्य हो तो बताओ। ©N S Yadav GoldMine #Love श्री भगवान बोले- गान्धारी। उठो, शोक में मन को न डुबाओ पढ़िए महाभारत !! 🌅🌅 महाभारत: स्त्री पर्व षड़र्विंष अध्याय: श्लोक 1-18 {Bolo
Amar Anand
-परम सत्य योगपथ- ऋषि, मुनि, साधु और सन्यासी में अंतर - नीचे कैप्शन में... ऋषि, मुनि, साधु और संन्यासी में अंतर :------ भारत में प्राचीन काल से ही ऋषि मुनियों का बहुत महत्त्व रहा है। ऋषि मुनि समाज के पथ प्रदर्शक म