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K L MAHOBIA
मेरी महकती सांसों में तुझको बसा लूंगा। कितना भी बचो खुद से मैं अपना बना लूंगा। मुझसे छुपा ओ कितना मैं तुझको चुरा लूंगा। तेरी महक उड़ती नभ में अपना खुदा लूंगा। देखो तड़प मेरी सपनों में आ मिलो खुद ही तेरी कसम से मैं खुद से सपना भुना लूंगा। तोड़ेंगे कसम फिर वो हम आके मिले दिल से मेरी धडकनों में फिर मैं तुझको सज़ा लूंगा। मौके की नजाकत को तुम समझो अभी जाने तेरी महक खुशबू को इक सपना बना लूंगा। वैसे सबक देना तुमको चढ़ता नशा दिन का मेरे सनम तुमको दिल से अपना दुआ लूंगा। तेरी चमक होगी महफ़िल में फिर नज़ारे की तेरी महक को दिल में ले नगमा सज़ा लूंगा। के एल महोबिया ©K L MAHOBIA #आशिकी :- के एल महोबिया
K L MAHOBIA
झाड़ू पोंछा कर रहे , पुरुष घरों में बंद। आफिस में पत्नी गई , पढ़िए मीठे छंद। पढ़ा -लिखा खुद आदमी, करता वह तैयार। पति को भूली शान में , छोड़ दिया मझधार।। कैद हुआ पति घर में , पत्नी का आनंद। रोना धोना बैठ के , खो गया गुल कंद।। के एल महोबिया ✍️ ©K L MAHOBIA #बेचारी के एल महोबिया
K L MAHOBIA
Black मेरी आंखों में मेरे हमदम का साया है। मेरे जीवन में चमकीला बन के छाया है। सांसों ख्यालों ख्बाबों में प्रीती जागे सारी देखो रातों में जुगनू से रौशन पाया है। के एल महोबिया ©K L MAHOBIA #मुक्तक :- के एल महोबिया
K L MAHOBIA
White लगी आग घर में उसे तो बुझा दो। बुझा दीप घर का उसे तो जला दो। कहां से चले थे कहां आ गए हम जगे तम कहर की खबर को छुपा दो। जहां में भले की करो बात हर-दिन इसी से जहां से , बुरे को मिटा दो। खुशी है जहां में न शिकवा शिकायत भली ज़िन्दगी है जहां फिर निभा दो। सज़ा क्या लिखा है उसे तुम मुझे भी लिखी तो नहीं है किसी को वफ़ा दो। मिटा जिंदगी इश्क में आदमी है। उसी आदमी का मुझे तुम पता दो। दवा से बड़ी चीज हमको मिली है। मिटे रोग उसका कि ऐसी दवा दो। ✍️ के एल महोबिया ©K L MAHOBIA #ग़ज़ल - के एल महोबिया
K L MAHOBIA
बढे चलो सफर में तुम मुकम्मल जहां मिल जाएगा। लड़े चलो समर में तुम विजय हर यहां मिल जाएगा। चला नहीं सफर में फिर उसे मंजिल कहां से मिलेगी खिला नहीं सका गुलों यूं कली से जुदा मिल जाएगा के एल महोबिया ©K L MAHOBIA #जिंदगी_का_सफर - के एल महोबिया
K L MAHOBIA
कहां उमर थी उसकी , घर चलाने की। किसे खबर थी उसकी, फिर बसाने की। बच्चा है पर सयानों की तरह निरन्तर। लगा हुआ है फिर से , बस कमाने की। कहां किसे है कहना , सब जताने की। बिका हुआ है सच भी,कुछ फसाने की। सुना दिया है बुत को, सब जमाने की। मरा ज़मीर है फितरत, मुख छुपाने की। के एल महोबिया ©K L MAHOBIA #वक्त_और_जिन्दगी - के एल महोबिया
K L MAHOBIA
घिस रहा सच है दिवाला हो गया है। झूठ का अब बोल वाला हो गया है। भूख से मरते ग़रीबों की फिकर क्या दूर मुख से अब निवाला हो गया है। भूख से सब जल मरे पहले उसे क्या छीन कर रोटी हवाला हो गया है। भूल से करना नहीं सच को उजागर वह सितमगर और ज्वाला हो गया है। मौत का सौदा किया बनता रहमगर वो निजाम शराबी कलाला हो गया है। छोड़ दो बस वक्त पे यदि हो जगे तुम। हर सितम "केयल"सवाला हो गया है। लौट के आओ यहां पर तुम खुशी से मन मेरा मंदिर शिवाला हो गया है। के एल महोबिया ©K L MAHOBIA #mahashivaratri के एल महोबिया