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Kiran Chaudhary
सुबह की हलकी धूप कुछ याद दिलाती है, हर महकती खुशबू एक जादू जगाती है, कितनी भी व्यस्त क्यों ना हो यह ज़िन्दगी, सुबह-सुबह अपनों की याद आ ही जाती है। ©Kiran Chaudhary सुबह की हलकी धूप कुछ याद दिलाती है..
gaTTubaba
किसी को कभी भी हलके में मत लेना क्या पता हलकी चीज कहां-कहां से ताल्लुक रखती हो ? पत्थर वजन के घमंड से डूब गए कितने और लकड़ियां सारा समंदर तैरके आयी हो ..... ©gaTTubaba #MountainPeak किसी को कभी भी हलके में मत लेना क्या पता हलकी चीज कहां-कहां से ताल्लुक रखती हो ? पत्थर वजन के घमंड से डूब गए कितने और लकड़ि
Prerana Jalgaonkar
कोकणातली गंमत...(लेख👇)— % & दहावीची परीक्षा संपल्यावर मी माझ्या कुटुंबासोबत आजोबांच्या गावी कोकणात म्हणजेच अंजनवेलला गेले होते.मामांनी नवीन घर बांधलं होतं त्याची पूजा ह
Prerana Jalgaonkar
कोकणातली गंमत...(लेख👇)— % & दहावीची परीक्षा संपल्यावर मी माझ्या कुटुंबासोबत आजोबांच्या गावी कोकणात म्हणजेच अंजनवेलला गेले होते.मामांनी नवीन घर बांधलं होतं त्याची पूजा ह
Suchita Pandey
इन गहरी अँधेरी रातो में, सुनसान अनजान गलियों में, एक चाँद ही हमसफर है मेरा दूसरा और कोई नहीं। जहाँ भी चलते है मेरे कदम साथ वो भी चाँद चलता है, अपनी रौशनी से मेरे गलियों को रोशन करता है। मेरे तन्हाइयों को आबाद करता है, मेरे दर्द को कमजोर करता है, जब भी अपनी राह से भटकु ये न भटकने देता है। हर पग साथ ये चलता है, जब भी देखु मैं उसको, एक-टक मुझे ही निहारता है। हलकी सी मुस्कान उसकी, मेरे दिल में रोशनी भर देती है। है चाँद हमसफर मेरा, मेरे गलियों को रोशन करता है। #चाँदमेराहमसफ़र #yqquotes #suchitapandey #सुचितापाण्डेय #yqdidi #yqhindi #चाँद #yqyourquoteandmine इन गहरी अँधेरी रातो में, सुनसान अनजान
Prof. RUPENDRA SAHU "रूप"
मैं एक नया संवाद लिखता हूँ कैसी हुई मेरी बादलो से बात लिखता हूँ । आये मेरे शहर नभ की डगर कैसे हुई झमझम "बरसात" लिखता हूँ ... (कैप्शन) " बरसात " मैं एक नया संवाद लिखता हूँ कैसी हुई मेरी बादलो से बात लिखता हूँ । आये मेरे शहर नभ की डगर कैसे हुई झमझम "बरसात" लिखता हूँ ।।
Gumnaam
सोचता हूं कभी...सबसे पहले... किसने कहा होगा...?? या शुरुआत... कहा से हुई होगी...? कि... ""अच्छा सुनो...ये.... बाल... यु ही खुले रहने दो, रेशमी और बिखरे अच्छे लगते है! जुल्फो को.. यु चेहरे पर उतरने दो, इन्हें संवरना अच्छा लगता है! नजरे...यु ही उठी रहने दो, इनमे निहारना बड़ा सुकून देता है! बिंदिया..हलकी छोटी गाढ़ी वाली, इसी चेहरे पर खूब जचा करती है! मेहंदी...हाथो पर मेहरुनी वाली, मेरे नाम के तर्ज पर निखरती है ! साथ...तुम्हारे कुछ दूर तक चलना, एक यही वक़्त तेजी से गुजरता है"" आखिर कहा दर्ज होंगे कई सवाल...?? वेदो या पुराणो पर... पन्नो या दीवारो पर.... खतो या इंतजारो पर ... आखिर.. किनसे कहा होगा.... ?? कि..... Better view सोचता हूं कभी...सबसे पहले... किसने कहा होगा...?? या शुरुआत... कहा से हुई होगी...? कि... ""अच्छा सुनो...ये....
विष्णुप्रिया
क्षितिज पर है सूर्य एकाकी, रात्रि में है चंद्र, ढलते तरुओ से पर्ण एकाकी, और नयन से अश्रुकण, फिर तुम किसकी बाँट जोहते, हे मानव के प्राण हंस, चलो अकेले ध्येय को अपने, मापो धरती ओ.... गगन अनन्त । जीवन के इतने अनुभवो में मैंने बस इतना ही जाना है, कि.... अक्सर विकट परिस्थितियों में, जीव स्वयं को अकेला ही पाता है.... हाँ देखने में आस पास
Mukesh!!!
कहीं खो गया था मैं दिलों की दरिया में डूबों गया था मैं न जाने क्यूँ ख़ुद को रोक न सका मैं समीप जाने से उसके ये कैसी दिल्लगी थी मेरी अपसरा के भांति उनकी हर अदा मुझे भाती जा रही थी यूं दिल में समाती जा रही थी एक हलकी आहट ने झकझोर दिया मुझे स्वप्न से हक़ीक़त में ला दिया मुझे !! ©Mukesh!!! उसके हाथ मेरे हाथ पर थे और कहीं खो गया था मैं दिलों की दरिया में डूबों गया था मैं न जाने क्यूँ ख़ुद को रोक न सका मैं समीप जाने से उसके ये