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Parasram Arora
Unsplash मेरी बिगड़ेल चाहतो से मुझे राहत मिलेगी कब? मेरे शरारती स्वार्थी तत्व आखिर कब समझ पायगे जीवन का यथार्थ? मेरा मौन चिल्लाना चाहता है युगो से आखिर उनकी आवाज़ मै सुन पाऊंगा कब? ©Parasram Arora कब?
कब?
read moreUrmeela Raikwar (parihar)
White रोशनी भी कम होने लगी, पर देख अब आस और बड़ने लगी, ये रोशनी फिर आएगी, तुम भी लौट आओगे ना? wrote by Urmee ki Diary ©Urmeela Raikwar (parihar) #sad_quotes लौट आओगे ना?
#sad_quotes लौट आओगे ना?
read moreM.K Meet
मिटा सको तो मिटा दो मेरी हस्ती निकाल फेंको मुझे अपने घर से बाहर मगर कैसे जी सकोगे अपने दिल के बिना यार उसी घर में तो ,मै अपना घर बनाया हूं!!! . ©M.K Meet #घर
Shiv Narayan Saxena
White घर - घर में होने लगे, नारी का सम्मान। जग अपना लगने लगे, सभी सुखों की खान।। नवरातों के बाद जो, मान करै ना कोय। अपने हाथ विनाश को, निकट बुलावै सोय।। 'शौक' शौक में देखिये, सुमिरन ना छुट जाय। हरि साथै जो खेलिये, जन्म-मरण छुट जाय।। कण-कण उनका वास है, सब सांसों में वोहि। छण-छण उनका नाम ले, मनगति थिर तब होहि।। घर - घर में होने लगे , जगराते हरि बोल। हृदपट भी खुलनें लगें , जै मां जै मां बोल।। ©Shiv Narayan Saxena #good_night घर-घर में होने लगे.....
#good_night घर-घर में होने लगे.....
read moreRakesh frnds4ever
White कहना सुनना आखिर कब तक !!??!! सहना सहना आखिर कब तक!!??!! क्रूरताओं और अत्याचारों के बीच में चीखती मेरी खामोशियां,, आखिर कब तक!!??!! प्रताड़नाओं की मार के आगे दबती सुबकती मेरी सिसकियां,,,, आखिर कब तक!!??!! कहना सुनना आखिर कब तक !?! रोना धोना आखिर कब तक!?! सहना सहना आखिर कब तक!?! जीवन संघर्ष का युद्ध कब तक?!? प्राणों का ये ताना बाना कब तक?!? कब तक आखिर कब तक मैं ही क्यों आखिर कब तक!!???!!!!?? ©Rakesh frnds4ever #कहना_सुनना आखिर कब तक #सहना सहना आखिर कब तक,,,,,, #क्रूरताओं और #अत्याचारों के बीच में चीखती मेरी #खामोशियाँ आखिर कब तक, प्रताड़नाओं
#कहना_सुनना आखिर कब तक #सहना सहना आखिर कब तक,,,,,, #क्रूरताओं और #अत्याचारों के बीच में चीखती मेरी #खामोशियाँ आखिर कब तक, प्रताड़नाओं
read moreShashi Bhushan Mishra
ख़्वाहिश कब लेती मंज़ूरी, रहती मन की बात अधूरी, भाग्य साथ देता तो होती, मनोकामनाएं सब पूरी, दीदावर मिल जाए सच्चा, नर्गिस कभी न हो बेनूरी, लोग मुकर जाते वादे से, रहती होगी कुछ मज़बूरी, मनचाहा मिल जाए कैसे, क़िस्मत के हाथों में छूरी, हरपा हुआ नहीं फल देता, छल प्रपंच से रखना दूरी, जीवन सफ़ल बना देता है, 'गुंजन' श्रद्धा और सबूरी, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ०प्र० ©Shashi Bhushan Mishra #ख़्वाहिश कब लेती मंजूरी#
#ख़्वाहिश कब लेती मंजूरी#
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