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Neelam Modanwal
🙏 मेंरी छंद की अवधारणा 🙏 फूल में जैसे बसी है गंध की अवधारणा.. गीत में वैसे रही लय छंद की अवधारणा.. एक तितली चुम्बनों ही चुम्बनों में ले गयी. फूल से फल तक मधुर मकरंद की अवधारणा.. जीव ईश्वर का अनाविल नित्य चेतन अंश है. द्वन्द से होती प्रगट निर्द्वन्द की अवधारणा.. एक रचनाकार तो स्थितप्रज्ञ होता है उसे आँसुओं में भी मिली आनंद की अवधारणा.. प्यार से ही स्पष्ट होती है, अघोषित अनलिखे और अनहस्ताक्षरित अनुबंध की अवधारणा.. प्रेम में सात्विक समर्पण के सहज सुख से पृथक. अन्य कुछ होती न ब्रम्हानंद की अवधारणा.. मुक्तिका मेरी पढ़ी हो तो निवेदन है लिखें क्या बनी सामान्य पाठक वृन्द की अवधारणा.........✍️ प्लीज़....... 🙏🙏 ©Neelam Modanwal 🙏मेंरी छंद की अवधारणा🙏 फूल में जैसे बसी है गंध की अवधारणा. गीत में वैसे रही लय छंद की अवधारणा.. एक तितली चुम्बनों ही चुम्बनों में ले गयी.
Ankur tiwari
White आओ ना एक नई शुरुआत करते हैं दो चार पल बर्बाद एक साथ करते हैं इंस्टा, FB पर तो बहुत कर लिया मिलो कभी रूबरू बात करते हैं इतने दिनों में कुछ जाना तो होगा कौन हैं कैसा है पहचाना तो होगा यूं ही तो नही कर लेते हो सहज बातें तुमने भी कुछ जांचा पहचाना तो होगा सबके साथ खुलकर नही होती हैं बातें जब जज़्बात मिलते हैं तो होती है बातें यूं दिनभर बिज़ी रहने की जरूरत है क्या जब मन हो तभी तो की जाती है बातें सब बातें तो करते है पर दर्द सुनता कौन है बेवजह किसी के सपने खुद बुनता कौन है स्वार्थ से वशीभूत इस दुनियां में अंजान कद्र शरीफों की सराफत का करता कौन है पर इतने समय में जो भी देखा सुना और जाना है अपने अनुभवों से तुमको ही अंदाजा लगाना हैं बार बार जो प्रेम है प्रेम हैं की बात करते हो तुम गर कह दूं प्रेम हैं तो क्या ये रिश्ता निभ पाना है हैं तुमको भी पता ये जमाने की बंदिशें और रीत हां अच्छे बन सकते है हम एक दूजे के मनमीत पर अपने स्वार्थ में परिवारों को जलाना उचित है क्या जिन्होंने आज तलक हमे संभाला उन्हें रुलाना उचित हैं क्या @mr_master__sab ©Ankur tiwari #love_shayari आओ ना एक नई शुरुआत करते हैं दो चार पल बर्बाद एक साथ करते हैं इंस्टा, FB पर तो बहुत कर लिया मिलो कभी रूबरू बात करते हैं इत
AYUSH SINGH
White सुख का दिन डूबे डूब जाए। तुमसे न सहज मन ऊब जाए। खुल जाए न मिली गाँठ मन की, लुट जाए न उठी राशि धन की, धुल जाए न आन शुभानन की, सारा जग रूठे रूठ जाए। उलटी गति सीधी हो न भले, प्रति जन की दाल गले न गले, टाले न बान यह कभी टले, यह जान जाए तो ख़ूब जाए। ©AYUSH Kumar सुख का दिन डूबे डूब जाए। तुमसे न सहज मन ऊब जाए। खुल जाए न मिली गाँठ मन की, लुट जाए न उठी राशि धन की, धुल जाए न आन शुभानन की, सारा जग र
Shaarang Deepak
Vikrant Rajliwal Show
Vikrant Rajliwal Show
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