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Ek villain
विधाता की सृष्टि संरचना बड़े विधि विधान से की गई है इसमें 8400000 प्रकार के जीवो का अवतरण होता है जिनमें से मनुष्य को भी दूसरे जीवो की ही भांति एक शरीर देखकर जगत व्यवहार करने का अधिकार दिया जाता है यही शरीर दस इंद्रियों का एक स्थूल स्वरूप है जिसमें मन नामक एक चेतन इंडिया में अवस्थित है और यही अन्य इंद्रियों के द्वारा ग्रहण किए गए विषयों को चेतन आत्मा तक पहुंचाती है मन के अतिरिक्त अन्य जो दस इंद्रियां हैं उनमें से चाहा तो 4 नेत्र नासिका मुख्य है क्योंकि प्रत्येक यही शब्द स्पर्श रूप रस और गंदे विषयों को ग्रहण करती है वैसे तो कहा गया है कि प्रत्येक इंद्रियों को अपने लिए निर्धारित एक ही विषय ग्रहण करने का समर्थन प्राप्त है परंतु जी हां ही एकमात्र ऐसी इंद्रियां है जिसकी शब्द और रस के रूप में दो विषय ग्रहण करने की क्षमता मिली है जी हां यदि बिना विचार किए शब्द का प्रयोग करते हैं तो व्यक्ति के जीवन में ना केवल छोटे-मोटे विरोधी खड़े हो जाते हैं आपूर्ति महाभारत जैसे युग परिवर्तन युद्ध तक छोड़ जाते हैं जिनमें पूरे के पूरे परिवार का विनाश हो जाता है यहां जी हां का ही असहयम है कि जिसे मांसाहारी की स्वाभाविक अवस्था नहीं लेकिन वह आशा एवं बिहार के स्वाद के लिए प्रतिदिन हजारों हजार मेरे जीवो की हत्या का निर्माता बनता है बहुत से ऐसे लोग भी हैं जो अपनी जीवा के स्वाद के लिए फेर में फंस कर अनेक प्रकार के अनुचित और मादक पदार्थ का सेवन करते हुए ना केवल अपना जीवन संकट में डालते हैं आपूर्ति अपने परिवार के लिए भी मुसीबतों को निमंत्रण दे बैठते हैं इसलिए हमें यह विचार करना चाहिए कि हम अन्य सभी जीवो से इसलिए श्रेष्ठ है क्योंकि हमें बुद्धि और विवेक का ऐसा प्रसाद मिला है जो मनुष्य से भी न किसी भी जीव को नहीं मिला इसलिए हम सहमत होकर मनुष्य जीवन को सार्थक कर सकते हैं ©Ek villain #जीभ का संयम #Love
( prahlad Singh )( feeling writer)
( रिस्तो में संयम का साथ जरूरी होता है अक्सर गुस्से में लोग फैसला गलत ही कर देते है ) ©( prahlad Singh )( feeling writer) संयम साथ का#Likho
Ek villain
जीवन में किसी भी महत्वपूर्ण लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मन को संयमित करना अत्यंत आवश्यक है किंतु यह मूल आवश्यक बिंदु जानते समझते हुए भी हम अपने चंचल मन को नियंत्रित नहीं रख पाते वास्तव में मन को काबू करना आसान नहीं है योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण ने इसका एक मार्ग सुझाया गीता के छठे अध्याय में मधुसुधन कहते हैं कि अष्टांग योग का पालन कर कर मन को नियमित किया जा सकता है परंतु आज के समय में अस्तांग योग को साधन भी आसान नहीं है ऐसी स्थिति में निराशा होने की आवश्यकता नहीं हम नियमित इंद्रिय संयम के द्वारा कुछ हद तक मन को संयमित कर सकते हैं हम सोचना चाहिए कि हमारे विचार कहानी राधा को रहे हैं हमारा समय कहां व्यस्त हो रहा है या फिर इंद्रिय सुख की चाह में हम कहां भटक तो नहीं रहे यदि हम इस तरह मंथन करें तो मन की चंचलता को नियंत्रित कर सकते हैं भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि मन ही हमारा सबसे श्रेष्ठ मित्र है और मन भी हमारा सबसे बड़ा शत्रु है मन ही वे दरवाजा है जिससे गुजर हम आनंदमय जीवन व्यतीत कर सकते हैं और यदि हम अपने विवेक होकर उसके पीछे भागे तो यही हो दरवाजा है जो हम अपने लक्ष्य से भटक आ सकता है समझ रहे कि जो भी स्थिर होकर भूमि में आंचल हो जाते हैं मैं कुछ दिनों के बाद बनते हैं और इसके विपरीत जो भी हवा के साथ उड़ जाते हैं वह नहीं बन पाते ©Ek villain #मन का संयम जीवन में #ValentineDay
Pradeep Kumar Mishra
विपरीत परिस्थितियों में खुद पर संयम रखना और धैर्य न खोना ही विनम्रता और संतुलित व्यक्तित्व है....🙏 ©Pradeep Kumar Mishra #संयम
गौरव उपाध्याय 'एक तलाश'
मानव जीवन को मानवता की तरह अगर जीना है। संयम, नियम, धीरज और अनुशासन से चलना है।। मानवीय मूल्यों को समाज में बचाए रखना है। संयम के साथ उन मूल्यों का पालन करना है।। संयम के साथ जो सबसे प्रेम से नहीं मिलता है। मानवीय नहीं अपितु पशुवत व्यवहार करता है।। संयम से ही मानव नैतिक मूल्यों का सर्जन करता है। संयमहीन होने से नैतिक मूल्यों का क्षय कर देता है।। संयम से ही मानव में साहस, विवेक का विकास होता है। संयम के ह्रास से ही मानव निर्बल, अविवेकी हो जाता है।। संयम से ही विषम परिस्थितियों में लड़ने के मार्ग की एक तलाश करता है। संयमहीन होने से साधारण परिस्थिति में भी कमजोर नजर आने लगता है।। © गौरव उपाध्याय 'एक तलाश' #संयम