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Ghumnam Gautam
White नेकी कर के भी नेकी न कर पाया मैं डूबते शख़्स को मैंने तिनका दिया हर किसी ने दिया दर्द मुझको मगर ये न पूछो कि अपनों ने कितना दिया मुर्गी थी ही नहीं,मुर्गे ही मुर्गे थे सोचिए दरबे में किसने अंडा दिया ©Ghumnam Gautam #ghumnamgautam #मुरगी #अंडा #किसने
#ghumnamgautam #मुरगी #अंडा #किसने #शायरी
read morePyari si Aahat
White चलो मान लिया, मुझे मोहब्बत करनी नहीं आती, लेकिन जरा ये तो बताओ, तुम्हे दिल तोडना किसने सिखाया ©Pyari si Aahat #दिल तोडना किसने सिखाया
#दिल तोडना किसने सिखाया
read moreAnuj Ray
White सच ही लिखा है किताबों में, सच ही लिखा है किताबों में कि, प्यार होने के बाद, एक दूसरे के बिना कोई रह नहीं पाता। बातों में सचाई सी झलकती है, घर काटने को दौड़ता है, दर्द ए जुदाई कोई सह नहीं पाता। कमी महसूस तो होती है हर घड़ी, हर किसी से मगर दिल की बात,कोई कह नहीं पता। ©Anuj Ray # सच ही लिखा है किताबों में"
# सच ही लिखा है किताबों में" #लव
read moreperson
पेपर मंगाया कलम मंगाई भाषा और शब्दों और विचारों से मैंने एक शब्द बनाए जिंदगी का हर एक पन्ना है एक इम्तिहान सा है जीना तो मैं प्रारंभ किया था मरना है अंतिम निर्णय सा है ©person किताबों पर लिखा हुआ बात
किताबों पर लिखा हुआ बात #Life
read morePyari si Aahat
White चलो मान लिया, मुझे मोहब्बत करनी नहीं आती, लेकिन जरा ये तो बताओ, तुम्हे दिल तोडना किसने सिखाया ©सत्यमेव जयते दिल तोडना किसने सिखाया
दिल तोडना किसने सिखाया #Shayari
read morebhim ka लाडला official
उसने कहा ब्राह्मण पूजनीय हैं यह शास्त्रों में लिखा है, मैंने कहा शास्त्रों को किसने लिखा वह अब तक चुप है.. #विचार
read moreDev Rishi
Village Life वो लिखा ही नहीं..... खुली खेतों की पगडंडी पर मस्ती से चलना धान गेहूं मक्का के शीश को तोड़ फिर वही फेक देना हमने वह भी किया जामुन के पेड़ों पर दिन भर लटकना पर कौन लिखें, ..? वो दिन ....वह बचपना के मस्ती भरी बातें जिक्र अब कर लेते हैं, हां शब्दों में रख लेते हैं पर हम किसी से ये नहीं कह पाते हैं कि...... उन दिनों की याद शहरों में रोज आतें हैं.... जब एक कमरे में दिन की सूय बल्ब हो... गांव छोड़ शहर के किसी मकान में जब घर हो हां ये सच है कि उस कमरे को रूम ही कहते हैं, घर की रौनक वहां कहां, , क्योकि अपना घर तो गांव में होते हैं हमने वो लिखा ही नहीं, जब से शहर ए जाम हाला पीएं है गांव की भूख लगते ही शहर छोड़ गांव की ओर भागे है बहुत छुपाना पड़ता है अपने आप को ...... कुछ झूठी कहानी बतानी पड़ती है अपनों को.... हां इतना बड़े हो जाते हैं कि सब ख़ुद ही देख लेते हैं घर से फ़ोन जब भी आएं सब ठीक है यही सब बतलाते हैं भले दिन औ रात यूं खुले आंखों में बीतें हो सपना और सफ़र कुछ नहीं समझ में आतें हो शब्दों की गाढ़े भी मन को मजबूत न कर पाते हो तब ख़ुद शब्द बन कुछ कहने, लिखने को आतुर हुए है.... फिर भी वह लिखा ही नहीं...... वही जो दर्द ए ताज बनी है.... ©Dev Rishi #villagelife #वो लिखा ही नहीं
#villagelife वो लिखा ही नहीं #Poetry
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