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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

कुण्डलिया :- करते हैं पाखंड जो , लेके हरि का नाम । उन्हें बताये कौन अब , माया हरि का नाम ।। माया हरि का नाम , वही है पालन हारे । भक्तों को #कविता

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कुण्डलिया :-

करते हैं पाखंड जो , लेके हरि का नाम ।
उन्हें बताये कौन अब , माया हरि का नाम ।।
माया हरि का नाम , वही है पालन हारे ।
भक्तों को भव पार , सदा वे पार उतारे ।।
चक्षु हृदय के खोल , शरण तुम उनकी तरते ।
छोडो ये पाखंड ,  क्षमा वह अवगुण करते ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR कुण्डलिया :-

करते हैं पाखंड जो , लेके हरि का नाम ।
उन्हें बताये कौन अब , माया हरि का नाम ।।
माया हरि का नाम , वही है पालन हारे ।
भक्तों को

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

कुण्डलिया :- आशा करना व्यर्थ है , इस जग में इंसान । करते अपने घात है , मिलते अवसर जान ।। मिलते अवसर जान , नही देखे मजबूरी । करे नहीं परवाह , #कविता

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कुण्डलिया :-
आशा करना व्यर्थ है , इस जग में इंसान ।
करते अपने घात है , मिलते अवसर जान ।।
मिलते अवसर जान , नही देखे मजबूरी ।
करे नहीं परवाह , बने रिश्तों में दूरी ।।
मान प्रखर की बात , न आये हाथ निराशा ।
करना है बेकार , सुनो जीवन में आशा ।।१

मतलब से अब फोन हो , मतलब से हो बात ।
मतलब जाते देख लो, बदलें हैं जज्बात ।।
बदलें हैं जज्बात , यही इंसानी फितरत ।
फिर भी कहतें लोग , तुम्हीं से है बस चाहत ।।
उन्हें बताये कौन , यही कहते हैं अब सब ।
आती है तब याद , पड़े जो कोई मतलब ।।२

   -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR कुण्डलिया :-
आशा करना व्यर्थ है , इस जग में इंसान ।
करते अपने घात है , मिलते अवसर जान ।।
मिलते अवसर जान , नही देखे मजबूरी ।
करे नहीं परवाह ,

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

कुण्डलिया :- आशा करना व्यर्थ है , इस जग में इंसान । करते अपने घात है , मिलते अवसर जान ।। मिलते अवसर जान , नही देखे मजबूरी । करे नहीं परवाह #शायरी

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White कुण्डलिया :-

आशा करना व्यर्थ है , इस जग में इंसान ।
करते अपने घात है , मिलते अवसर जान ।।
मिलते अवसर जान , नही देखे मजबूरी ।
करे नहीं परवाह , बने रिश्तों में दूरी ।।
मान प्रखर की बात , न आये हाथ निराशा ।
करना है बेकार , सुनो जीवन में आशा ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR कुण्डलिया :-

आशा करना व्यर्थ है , इस जग में इंसान ।
करते अपने घात है , मिलते अवसर जान ।।
मिलते अवसर जान , नही देखे मजबूरी ।
करे नहीं परवाह

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

गर्मी  :- कुण्डलिया  नोटो की गर्मी दिखी , इंसानों में आज । पतन हो गया प्रेम का , निष्ठुर हुआ समाज ।। निष्ठुर हुआ समाज , नही मानव पहचाने । इस #कविता

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गर्मी  :- कुण्डलिया 
नोटो की गर्मी दिखी , इंसानों में आज ।
पतन हो गया प्रेम का , निष्ठुर हुआ समाज ।।
निष्ठुर हुआ समाज , नही मानव पहचाने ।
इस युग का सब आज , इसे दानव ही जाने ।।
फिर भी अर्पण पुष्प , करें सबं उनकी फोटो ।
जिनके घर में ढेर , लगे है देखो नोटों ।।

गर्मी दिन-दिन बढ़ रही , रहे सभी अब झेल ।
जीव-जन्तु बेहाल , प्रकृति रही है खेल ।।
प्रकृति रही है खेल  , सभी से अब के बी सी ।
कूलर पंखा फेल , लगाओ घर-घर ऐ सी ।।
कितने दिन हो पार , नही बातों में नर्मी ।
किया दुष्ट व्यवहार , बढ़ेगी निशिदिन गर्मी ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गर्मी  :- कुण्डलिया 
नोटो की गर्मी दिखी , इंसानों में आज ।
पतन हो गया प्रेम का , निष्ठुर हुआ समाज ।।
निष्ठुर हुआ समाज , नही मानव पहचाने ।
इस

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

कुण्डलिया :- जीवन पथ की नित सुगम , राह दिखाते संत । इनकी सेवा से सदा,  खुश होते भगवंत ।। खुश होते भगवंत , अमंगल कभी न करते । #कविता

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कुण्डलिया :-
जीवन पथ की नित सुगम , राह दिखाते संत ।
इनकी सेवा से सदा,  खुश होते भगवंत ।।
खुश होते भगवंत , अमंगल कभी न करते ।
जो करते हैं पाप , वही नित इनसे डरते ।।
महके ये घर द्वार , और महके यह उपवन ।
कर लो अच्छे कर्म , यही कहता है जीवन ।।

      महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR कुण्डलिया :-


जीवन पथ की नित सुगम , राह दिखाते संत ।

इनकी सेवा से सदा,  खुश होते भगवंत ।।

खुश होते भगवंत , अमंगल कभी न करते ।

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

दोहा :- जन्मदिवस गुरुदेव का , बन आया त्यौहार । महादेव वरदान दे , ख्याति बढ़े संसार ।। गुरुवर ही भगवान है , समझा मैं नादान । #कविता

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दोहा :-
जन्मदिवस गुरुदेव का , बन आया त्यौहार ।
महादेव वरदान दे , ख्याति बढ़े संसार ।।

गुरुवर ही भगवान है , समझा मैं नादान ।
पाया दिक्षा ज्ञान की , आज बना इंसान ।।

लालायित मैं था बहुत , हूँ गुरुवर सानिध्य ।
तम जीवन का जो हरे , आप वही आदित्य ।। 


कुण्डलिया :-
सीखे हमने छन्द के , जिनसे चन्द विधान ।
चलो करें गुरुदेव का , छन्दों से सम्मान ।।
छन्दों से सम्मान ,  बढ़ाए मिलकर गौरव ।
इतने हम हैं शिष्य , नही थे उतने कौरव ।।
मीठे प्यारे बोल , नहीं वे होते तीखे ।
मन की कहना बात , उन्हीं गुरुवर से सीखे ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा :-

जन्मदिवस गुरुदेव का , बन आया त्यौहार ।

महादेव वरदान दे , ख्याति बढ़े संसार ।।


गुरुवर ही भगवान है , समझा मैं नादान ।

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

चित्र-चिंतन :- कुण्डलिया ताला मुँह पर मैं लगा , बैठा अब तक यार । सोचा था अनमोल है , प्रेम जगत व्यहवार ।। प्रेम जगत व्यहवार , इसी में जीव #कविता

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चित्र-चिंतन :- कुण्डलिया
ताला मुँह पर मैं लगा , बैठा अब तक यार ।
सोचा था अनमोल है , प्रेम जगत व्यहवार ।।
प्रेम जगत व्यहवार , इसी में जीवन फलता ।
लेकिन पग-पग आज , हमारा जीवन जलता ।।
त्याग छोड़ व्यहवार , समय कहता है लाला ।
बुजदिल समझें लोग , देखकर मुँह पर ताला ।।


१२/०४/२०२४     -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR चित्र-चिंतन :- कुण्डलिया


ताला मुँह पर मैं लगा , बैठा अब तक यार ।

सोचा था अनमोल है , प्रेम जगत व्यहवार ।।

प्रेम जगत व्यहवार , इसी में जीव

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

कुण्डलिया :-  नवदुर्गा माता के नव रूप का , दर्शन का सौभाग्य । पाया जो वागीश ये , लिखने बैठा काव्य ।। लिखने बैठा काव्य , जगत जननी की गाथा । #कविता

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कुण्डलिया :-  नवदुर्गा

माता के नव रूप का , दर्शन का सौभाग्य ।
पाया जो वागीश ये , लिखने बैठा काव्य ।।
लिखने बैठा काव्य , जगत जननी की गाथा ।
देख शारदे मातु , झुका चरणों में माथा ।।
माँ अम्बें की आज , आरती जन-जन गाता ।
होकर खुश वरदान , दिए भक्तों को माता ।।
१२/०४/२०२४    -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR कुण्डलिया :-  नवदुर्गा

माता के नव रूप का , दर्शन का सौभाग्य ।
पाया जो वागीश ये , लिखने बैठा काव्य ।।
लिखने बैठा काव्य , जगत जननी की गाथा ।

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

कुण्डलिया :- रखना खुद को है सुखी , हर जन की यह चाह । भटक रहा फिर भी मगर , कहीं न पाये राह ।। कहीं न पाये राह , वेदना यूँ ही बढ़ता मंदिर मस्जि #कविता

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कुण्डलिया :-
रखना खुद को है सुखी , हर जन की यह चाह ।
भटक रहा फिर भी मगर , कहीं न पाये राह ।।
कहीं न पाये राह , वेदना यूँ ही बढ़ता
मंदिर मस्जिद देख , दुवाएं में है झुकता ।।
दीन-हीन को कष्ट , दिलाने आगे बढ़ना ।
चाहे फिर भी आज , स्वयं को सुख में रखना ।।

०५/०४/२०२३    -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR कुण्डलिया :-
रखना खुद को है सुखी , हर जन की यह चाह ।
भटक रहा फिर भी मगर , कहीं न पाये राह ।।
कहीं न पाये राह , वेदना यूँ ही बढ़ता
मंदिर मस्जि
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