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कलम की दुनिया
हाँ मैं वही बेटा हूँ जो किसी बाप का बुढापे का सहारा हूँ हाँ मैं वही बेटा हूँ जो किसी माँ का आंखों का तारा हूँ हाँ मैं वही बेटा हूँ... हाँ मैं वही बेटा हूँ जिसके लिए कितनी बेटियों का बली चढाया गया जन्म से पहले ही पापी मैं बनाया गया हाँ मैं वही बेटा हूँ जो पाप लेकर पैदा हुआ हूँ हाँ मैं वही बेटा हूँ... हाँ मैं वही बेटा हूँ जो बेटियों का हक छीन लेता हूँ हाँ मैं वही बेटा हूँ जो माँ की ममता छीन लेता हूँ हाँ मैं वही बेटा हूँ जो पिता की साया हूँ हाँ मैं वही बेटा हूँ... हाँ मैं वही बेटा हूँ जो अपनी माँ की दूख हरने आया हूँ हाँ मैं वही बेटा हूँ जो अपने पिता का बोझ कम करने आया हूँ हाँ मैं वही बेटा हूँ जो अपने कूल का मान बढाने आया हूँ हाँ मैं वही बेटा हूँ जो अपने कूल का नाम जीवित रखने आया हूँ हाँ मैं वही बेटा हूँ... हाँ मैं वही बेटा हूँ जो अपनी माँ की आंखों का तारा हूँ जो अपने पिता का सहारा हूँ जो अपने बहनों का भाई दूलारा हूँ जो अपने दादी का पोता राजदूलारा हूँ जो अपने दादा का खानदान का नाम रौशन करने का सहारा हूँ हाँ मैं वही बेटा हूँ.... हाँ मैं वही बेटा हूँ जो हर रूप में एक स्त्री का सहारा हूँ हाँ मैं वही बेटा हूँ जो हर बार तिरस्कार का प्याला पीकर भी मदहोश होकर न्यारा हूँ हाँ मैं वही बेटा हूँ... हाँ मैं वही बेटा हूँ जो अपनी सोलह की उम्र में ही बडे़ भाई से पिता का फर्ज निभाता हूँ हाँ मैं वही बेटा हूँ जिसकी कलाई सुनी रह जाने पर अपनी आँखों को सुना रखने के बजाय अपनी बहन की सुरक्षा का कामना करता हूँ हाँ मैं वही बेटा हूँ... हाँ मैं वही बेटा हूँ जिसे हरबार स्त्री दोष लगाती है जिसे हरबार स्त्री पाने की कामना में स्त्री को मार डालती है हाँ मैं वही बेटा हूँ जो एक स्त्री की कोख से जन्म लेकर स्त्री की रक्षा का वचन देता हूँ हाँ मैं वही बेटा हूँ.... ©कलम की दुनिया #बेटा
Gurudeen Verma
White शीर्षक- इस ठग को क्या नाम दे --------------------------------------------------------- बड़े नम्बरी होते हैं वो आदमी, जो करते हैं शोषण छोटे आदमी का, और छीन लेते हैं उधारी चुकाने के नाम पर, गरीब आदमी की जमीन और आजादी। लेते हैं काम छोटे आदमी को, कोल्हू के बैल की तरह दिनरात, एक वर्ष की मजदूरी बीस हजार देकर, जबकि होते हैं खर्च पाँच हजार एक माह में। लेता है ब्याज बहुत वो आदमी, छोटे आदमी को देकर उधार रुपये, बड़े ही ठाठ होते हैं इन आदमियों के, जिनके होते हैं मकां महलनुमा। होती है उनकी जिंदगी राजा सी, जिनके एक ही आदेश पर, हो जाते हैं सारे काम, और हाजिर नौकर चाकरी में। कमाता होगा इतने रुपये वह आदमी, मेहनत की कमाई से कभी भी नहीं, बनाता है वह अपनी इतनी सम्पत्ति, भ्रष्टाचार और दो नम्बर की कमाई से। लेकिन एक ऐसा आदमी भी है, जो लेता है बड़े आदमी से भी ज्यादा दाम, करता नहीं रहम वो अपने भाई पर भी, और कोसता है वह बड़े आदमी, इस ठग को क्या नाम दे।। शिक्षक एवं साहित्यकार गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान) ©Gurudeen Verma #कविता
Shiv gopal awasthi
ऐसा पढ़ना भी क्या पढ़ना,मन की पुस्तक पढ़ न पाए, भले चढ़े हों रोज हिमालय,घर की सीढ़ी चढ़ न पाए। पता चला है बढ़े बहुत हैं,शोहरत भी है खूब कमाई, लेकिन दिशा गलत थी उनकी,सही दिशा में बढ़ न पाए। बाँट रहे थे मृदु मुस्कानें,मेरे हिस्से डाँट लिखी थी, सोच रहा था उनसे लड़ना ,प्रेम विवश हम लड़ न पाए। उनका ये सौभाग्य कहूँ या,अपना ही दुर्भाग्य कहूँ मैं, दोष सभी थे उनके लेकिन,उनके मत्थे मढ़ न पाए। थे शर्मीले हम स्वभाव से,प्रेम पत्र तक लिखे न हमने। चंद्र रश्मियाँ चुगीं हमेशा,सपनें भी हम गढ़ न पाए। कवि-शिव गोपाल अवस्थी ©Shiv gopal awasthi कविता