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Jyoti
Unsplash जब आप प्रकृति🌿🍃से सच्चा करते हैं, तो आप को दुनिया की हर जगह खुबसूरत लगेगी। ©Jyoti #leafbook # प्रकृति🌿🍃
#leafbook # प्रकृति🌿🍃
read moreseema patidar
Unsplash प्रेम होने में नहीं प्रेम को समझने में वक्त लगता है मैं और तुम से हम होने में वक्त लगता है ©seema patidar वक्त तो लगता है ......
वक्त तो लगता है ......
read moreneelu
White हम क्या सिखते हैं यह तो हमारी सीखने की प्रकृति पर निर्भर करता है पर लोग हमें सिखाने ही आते हैं.... ©neelu #love_shayari हम #क्या #सिखते हैं यह तो हमारी #सीखने की #प्रकृति पर #निर्भर करता है पर #लोग हमें #सिखाने ही आते हैं....
neelu
White इतना पहरा है तो फिर सुरक्षित कौन है और इतने असुरक्षित है तो पहरा क्यों है ©neelu #sad_quotes #इतना #पहरा है तो फिर #सुरक्षित कौन है और इतने #असुरक्षित है तो #पहरा क्यों है
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read moreनवनीत ठाकुर
White दरख्त काट के हमने शहर बसाए, अब हर सांस को तरसने का वक्त बना रखा है। दरिया रो रहे हैं, पहाड़ टूट रहे हैं, हमने तरक्की के नाम पर ज़हर बना रखा है। जंगल जलाकर हमने इमारतें खड़ी कीं, फिर भी छांव को तरसने का दौर बना रखा है। हवा, पानी, धरती का हाल पूछो ज़रा, हमने कुदरत को अपने बाप की जागीर बना रखा है। ©नवनीत ठाकुर #प्रकृति
Matangi Upadhyay( चिंका )
प्रेम क्या है..? मन की व्यथा जब कहनी ना पड़े, तन की पीड़ा जब बतानी ना पड़े, आँसू गिरे तो किसी की हथेली नर्म कर दे, निगाहें उठे तो गुस्सा शांत कर दे, मन जब उस मुकाम पर किसी के कंधे पर सर रख कर मुस्कुराए और आँखें भीग जाए, वो एहसास वो मुकाम प्रेम है..! ©Matangi Upadhyay( चिंका ) प्रेम क्या है?? #matangiupadhyay #Nojoto
प्रेम क्या है?? #matangiupadhyay
read moreKUMARI USHA AMBEDKAR
White जलना है तो दीपक की तरह जलो जो स्वयं जलकर दूसरों को रोशनी दे ©KUMARI USHA AMBEDKAR जलना है तो
जलना है तो
read moreGhanshyam Ratre
White आसमां में चांद और चमकते सितारों की खूबसूरत नजारे हैं। धरती पर पेड़-पौधों झाड़ीयों का हरा भरा छाया हरियाली हैं।। प्रकृति का सौंदर्य रूप देखकर मन में हर्षोल्लास होते हैं। कहीं-कहीं नदियां,पहाड़ पर्वत बाग -बगीचे दृश्य मन को मोह लेते हैं।। ©Ghanshyam Ratre प्रकृति की सुंदरता
प्रकृति की सुंदरता
read moreनवनीत ठाकुर
जमीन पर आधिपत्य इंसान का, पशुओं को आसपास से दूर भगाए। हर जीव पर उसने डाला है बंधन, ये कैसी है जिद्द, ये किसका अधिकार है।। जहां पेड़ों की छांव थी कभी, अब ऊँची इमारतें वहाँ बसी। मिट्टी की जड़ों में जीवन दबा दिया, ये कैसी रचना का निर्माण है।। नदियों की धाराएं मोड़ दीं उसने, पर्वतों को काटा, जला कर जंगलों को कर दिया साफ है। प्रकृति रह गई अब दोहन की वस्तु मात्र, बस खुद की चाहत का संसार है। क्या सच में यही मानव का आविष्कार है? फैक्ट्रियों से उठता धुएं का गुबार है, सांसें घुटती दूसरे की, इसकी अब किसे परवाह है। बस खुद की उन्नति में सब कुर्बान है, उर्वरक और कीटनाशक से किया धरती पर कैसा अत्याचार है। हरियाली से दूर अब सबका घर-आँगन परिवार है, किसी से नहीं अब रह गया कोई सरोकार है, इंसान के मन पर छाया ये कैसा अंधकार है।। हरियाली छूटी, जीवन रूठा, सुख की खोज में सब कुछ छूटा। जो संतुलन से भरी थी कभी, बेजान सी प्रकृति पर किया कैसा पलटवार है।। बारूद के ढेर पर खड़ी है दुनिया, विकसित हथियारों का लगा बहुत बड़ा अंबार है। हो रहा ताकत का विस्तार है,खरीदने में लगी है होड़ यहां, ये कैसा सपना, कैसा ये कारोबार है? ये किसका विचार है, ये कैसा विचार है? क्या यही मानवता का सच्चा आकार है? ©नवनीत ठाकुर #प्रकृति का विलाप कविता
#प्रकृति का विलाप कविता
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