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ज्योत प्रकाश शर्मा
किसी के दिल में रहने की आदत छोड़ ये आशिक। तेरा अपना घर छोटा पड़ा है क्या? #बिना रस के कवि
ज्योत प्रकाश शर्मा
तुम मिनरल बोतल की वॉटर हो, हम गंगा का रसधार प्रिय। तुम पिज्जा बर्गर सी लगती हो, हमे सतुआ से है प्यार प्रिय।। #बिना रस के कवि
ज्योत प्रकाश शर्मा
मैं agree with you का नारा हूँ। तुम अभी कट्टा की ही छाड़ा हो। तेरे साथ ही खड़ा रहा और तेरे साथ ही खड़ा रहूँगा। चाहे इसका जितना महंगा भाड़ा हो। #बिना रस के कवि
ज्योत प्रकाश शर्मा
न जमानत लेंगे न बेल माँगेगे। मुझे बस अपनी बाँहो में गिरफ्तार कर लो न। जिंदगी के अंतिम पड़ाव पे हूँ, अब तो प्यार कर लो न।। #बिना रस के कवि।
ज्योत प्रकाश शर्मा
बरसात के दिनों में फुस की छत है टिपटिपाय। फिर भी भगवान से मनाए की थोड़ा और बरसाए, थोड़ा और बरसाए। क्योंकि सुख रहें हैं धान। हाँ हूँ मैं किसान।। #बिना रस के कवि।
ज्योत प्रकाश शर्मा
तेरे दबे होठ मुस्कुराना। इशारो में ही बहुत कुछ कह जाना। तेरी हर वो बातें भाती है, अब तो रात में नींद भी नही आती है।। #बिना रस के कवि
ज्योत प्रकाश शर्मा
Happy Janmashtami हे कृष्णा मैं सुदामा बनु या न बनु, भगवान करे तू कृष्ण बन। तेरी बुलंदियों को देखकर, रहूँगा मन मस्त मग्न। भगवान करे तू कृष्ण बन।। #बिना रस के कवि।
ज्योत प्रकाश शर्मा
जो मुझे मेरे हालत पे उसी तरह छोड़ दे, दिखावे की दोस्ती क्यों न उससे तोड़ लें? उसे समझाने,मनाने पर क्यों अपना जोड़ दें? जो मेरे और न देखें क्यों न उससे मुँह मोड़ लें? #बिना रस के कवि।