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Riya Soni
दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान | तुलसी दया न छांड़िए ,जब लग घट में प्राण || अर्थ: गोस्वामी तुलसीदासजी कहते हैं कि मनुष्य को दया कभी नहीं छोड़नी चाहिए क्योंकि दया ही धर्म का मूल है और इसके विपरीत अहंकार समस्त पापों की जड़ होता है | ©Riya Soni दया धर्म का मूल हे #SuperBloodMoon
डॉ.अजय कुमार मिश्र
तन निरोग हो,मन प्रसन्न हो,ना राग,ना द्वेष हो। सम्पूर्ण जीव-जगत में कुटुम्बकम का भाव हो। प्रकृति से हो रही ऋतुओं की मधुमास हो। सभी प्राणियों में आपसी सद्भाव हो। प्रसन्नता का मूल!
Praveen Jain "पल्लव"
पल्लव की डायरी पर्वत पहाड़ काट दिये टूरिज्म पैदा करके अवस्था हमारी शोर गुल पैदा कर रही है तप और शांति के वातावरण में जहर घोल रही है चेतन मन की आवाज अवसाद में गुम हो रही है भगवत इच्छाये लुप्पत लीलाये भोग विलास की हो रही है देवालय देव भूमि व्यवसाय के अधीन चमत्कारों के बल पर तीर्थो पर उगाही चल रही है नर से नारायण बनने की सम्भावनाये इस कलिकाल में भर्मित हो रही है दुराचार दुव्यसन भगवा चोले पहनकर मूल धर्म की अवहेलना हो रही है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #NightRoad मूल धर्म की अवहेलना हो रही है #nojotohindi
Praveen Jain "पल्लव"
पल्लव की डायरी पर्वत पहाड़ काट दिये टूरिज्म पैदा करके अवस्था हमारी शोर गुल पैदा कर रही है तप और शांति के वातावरण में जहर घोल रही है चेतन मन की आवाज अवसाद में गुम हो रही है भगवत इच्छाये लुप्पत लीलाये भोग विलास की हो रही है देवालय देव भूमि व्यवसाय के अधीन चमत्कारों के बल पर तीर्थो पर उगाही चल रही है नर से नारायण बनने की सम्भावनाये इस कलिकाल में भर्मित हो रही है दुराचार दुव्यसन भगवा चोले पहनकर मूल धर्म की अवहेलना हो रही है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #NightRoad मूल धर्म की अवहेलना हो रही है #nojotohindi
अजय_यादव
सफलता जिन्दगी में हार और जीत तो हमारी सोच पर निर्भर है! जो मान लेता है वो हार जाता है; और जो ठान लेता है वो जीत जाता है।। ~सफलता का मूल मंत्र सफलता का मूल मंत्र
Dr. Bhagwan Sahay Meena
दोहा चूल्हा चौका छोड़ कर, चली कमाने नार। पड़ा सड़क पर देखिए, पी दारू भरतार। डॉ. भगवान सहाय मीना बाड़ा पदमपुरा जयपुर राजस्थान। ©Dr. Bhagwan Sahay Rajasthani #नशा नाश का मूल
Parasram Arora
मेरे दुखो का मेरी पीड़ाओं का मूल स्त्रोत ये मेरा मन ही हैँ क्योंकि इसके केंद्र पर अहंकार का तत्व हैँ और परिद्धी पर वासनासो का जाल हैँ दुख सृजित करने केलिएइस मन को बड़े आयोजन करने पड़ते हैँ दैत्याकार मंसूबो के पहाड़ो पर चढ़ना पड़ता हैँ वासना की अँधेरी गलियों से होकर गुजरना पड़ता हैँ क्रोध और प्रलोभनो की कर्कश ध्वनियो को आत्मसात करना पड़ता हैँ i दुखो का मूल स्त्रोत........