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अनिल कसेर "उजाला"
मौसम बदल रहा है सम्हल के चल, दिल से दिल मिल रहा है सम्हल के चल। तूफां तो बहुत आयेंगे जिंदगी में तेरे, वक़्त भी निकल रहा है सम्हल के चल। ©अनिल कसेर "उजाला" सम्हल के चल
सम्हल के चल
read moreGhanshyam Ratre
शीत लहरें कोहरे का ठंडा का महिना है । गरम वाले सुती ऊनी वस्त्र लगते सुहाने हैं।। बहुत ठंडा लगता है ठंड से शरीर कांपते हैं। ठंडा में गर्मागर्म खाने के चीजें अच्छे लगते हैं।। ©Ghanshyam Ratre ठंडा के महिने
ठंडा के महिने
read morePraveen Jain "पल्लव"
पल्लव की डायरी योजनाओं की धुंध से ओझल जनमानस उनकी नीतियां जीवन कपकपाती है सर्द और सुन्न हो गये मन मस्तिष्क ओले राशन पानी पर गिराकर महंगाई का कहर रसोई पर बरसाती है मानक सफ़लता के सरकारों के पास है गफलत में हम, दम तोड़े जाते है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #sadak मानक सफलता के सरकारों के पास है
#sadak मानक सफलता के सरकारों के पास है
read moreAnuj Ray
White सुप्रीम कोर्ट के कानून और संविधान की बात मानकर चलने वाले कुछ लोग स्वयं को हिंदू प्रमाण करते हैं जिनको अपना सही दिए नहीं पता नहीं होता बड़ी-बड़ी सभा में बहुत तेज तकरार बहस भी करते हैं। मेरा एक प्रश्न है सुप्रीम कोर्ट कहता है एक विवाहित महिला विवाह के बाद छह मित्रों के साथ संपर्क बनाकर के शान से अपने परिवार में रह सकती है कितने हिंदू सनातनी इस बात से सहमत है। ©Anuj Ray # समाज के ठेकेदार"
# समाज के ठेकेदार"
read moreअपनी कलम से
रंग (Colours) किसी पे चढ़ गया रंग प्रेम का, तो कोई बैरागी बनकर घूमता, कोई खो गया दुनिया के रंगीनियों में, तो देखो, कोई सत्यवादी बनकर घूमता... कभी लाल, कभी नीला, कभी गुलाबी, कभी पीला, कभी बैंगनी, कभी भूरा, कभी नारंगी, कभी हरा, कभी खाकी, कभी धूसर, कभी स्यान, कभी सैलमन... ये रंग न जाने किस-किस को रंगीन करती, ये रंग न जाने कितनों को रंगहीन करती... कभी भाती है आँखों को, कभी मन इसे ओझल है करती... मानों सत्य से ऊपर है ये सभी, हमें ख़ुद में मिला जाती है... हमें सिखाती है तरसना अक्सर, ऐसे हीं खुद में घुला जाती है... ........... ©अपनी कलम से #Color #Rang #colours #Colour #Colors Arshad Siddiqui कवि और अभिनेता हरिश्चन्द्र राय "हरि" BIKASH SINGH vineetapanchal pinky masrani h
अपनी कलम से
रंग (Colours) किसी पे चढ़ गया रंग प्रेम का, तो कोई बैरागी बनकर घूमता, कोई खो गया दुनिया के रंगीनियों में, तो देखो, कोई सत्यवादी बनकर घूमता... कभी लाल, कभी नीला, कभी गुलाबी, कभी पीला, कभी बैंगनी, कभी भूरा, कभी नारंगी, कभी हरा, कभी खाकी, कभी धूसर, कभी स्यान, कभी सैलमन... ये रंग न जाने किस-किस को रंगीन करती, ये रंग न जाने कितनों को रंगहीन करती... कभी भाती है आँखों को, कभी मन इसे ओझल है करती... मानों सत्य से ऊपर है ये सभी, हमें ख़ुद में मिला जाती है... हमें सिखाती है तरसना अक्सर, ऐसे हीं खुद में घुला जाती है... ........... ©अपनी कलम से #Color #Rang #colours #Colour #Colors Arshad Siddiqui कवि और अभिनेता हरिश्चन्द्र राय "हरि" BIKASH SINGH vineetapanchal pinky masrani h