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Stories related to poetic devices used in the poem childhood

Schizology

Reflection in the mirror poem✍🧡🧡💛

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Reflection in the mirror

When I'm looking at you
I won't see anything
But looking through you
I will see everything

All of your desires
All of your hidden lies
All of the secrets
Beyond your eyes

It's just a slice
Of a bigger pie
The real dessert
Is to see you cry

Inside of you head
Is where I will go
Pictures of your mind
Even if you say no

I'll experience your dreams
I will occupy your fantasy
Realize your nightmare
That is where I will be

©Schizology Reflection in the mirror

#poem✍🧡🧡💛

Schizology

In- #in poem✍🧡🧡💛

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In-

Insecure, they are
Inhospitable, by far
Inadequate, quite bad
Insignificant, so clear
Uninteresting, I hear
Unwell, I can tell
Uneducated, brain dead
Unprepared, no cares
Interrupts, not fair
Inconsiderate, so long
Inexcusable, take hold
Infractions, good bye

©Schizology In- 

#in #poem✍🧡🧡💛

Schizology

In- #in poem✍🧡🧡💛

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In-

Insecure, they are
Inhospitable, by far
Inadequate, quite bad
Insignificant, so clear
Uninteresting, I hear
Unwell, I can tell
Uneducated, brain dead
Unprepared, no cares
Interrupts, not fair
Inconsiderate, so long
Inexcusable, take hold
Infractions, good by

©Schizology In-

#in #poem✍🧡🧡💛

Writer Mamta Ambedkar

#Childhood

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गद्दारों के शहर में

दिल की बात कहे भी तो,
किससे कहे, यहां सब गद्दार हैं।
चेहरे पर मुस्कान, दिल में खंजर,
हर कोई छल-कपट का साकार है।

बातों में मलहम, हाथों में नमक,
दिखावटी अपनापन हर ओर है।
दर्द पूछते हैं, सहला के,
फिर घावों को चीरने का जोर है।

यहां सच की आवाज़ दबा दी जाती,
झूठ के सिक्के खनकते हैं।
अपनों के बीच भी परायापन,
दिलों में फासले पलते हैं।

तो किससे कहें ये दिल की बात,
कौन सुनेगा हमारी पुकार?
इस अंधेरे में ढूंढ़ रहे रोशनी,
जहां हर रिश्ता एक व्यापार।








पर दिल है कि उम्मीद नहीं छोड़ता,
शायद कहीं कोई अपना भी हो।
जो मलहम भी लगाए, सहलाए,
और नमक के घावों से बचाए।

©Writer Mamta Ambedkar #Childhood

Avinash Jha

#Childhood

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वात्सल्य का स्पर्श

जब मुस्काए किलकारी बन,
भर दे घर आंगन की चहल-पहल।
छोटे हाथों की छुअन से,
झूम उठे सारा घर-आलय।

नन्हें कदमों की वो आहट,
जैसे सुबह का पहला किरण।
माँ के आंचल में छुप जाए,
पिता के कंधों पर वो सुमिरण।

उनकी हँसी का संगीत सुन,
दीवारें भी गुनगुनाने लगतीं।
खिलौनों की मीठी बातें,
हर कोना दर्पण बन जातीं।

नटखट शैतानी में छिपा,
जीवन का अनमोल ज्ञान।
हर बिखरी चीज़ में झलकता,
स्नेह का अनुपम सम्मान।

माँ के हाथों से खाए निवाले,
स्वाद बन जाते हैं अमृत।
पिता की उँगली पकड़कर चले,
हर सफर लगता है सरल।

वो छोटे-छोटे सवाल,
जैसे गूंजें नदियों के सुर।
उनकी जिज्ञासा से सीखें,
हर पल का अद्भुत मर्म।

इस वात्सल्य की सुगंध से,
महक उठे हर आशियाना।
एक बच्चे की मासूमियत से,
सजता है सारा जमाना।

©Avinash Jha #Childhood
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