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sandy
🎄जगण्यातली मजा वाढवण्याचे उपाय 🎄 🌹पटलं तर असे वागा 🌹 1)जिथे राहता त्या कॉलनीत चार तरी कुटुंब जोडा अहंकार जर असेल तर खरंच लवकर सोडा 2)जाणं
somnath gawade
भारतीय 'पंगत' पद्धत इतकी गोड आहे की, मिठाला सुद्धा साखर म्हणण्याची प्रथा येथे रूढ आहे. #पंगत
siddharth vaidya
वरदंत की पंगत कुंद कली , अधराधर पल्लव खोलन की। चपला चमके घन बीच जगे , छवि मोतिन माल ,अमोलन की।
sandy
या दिव्यांच्या झगमगाटात... मिठाईचा घमघमाट... फटाक्याची बरसात... रांगोळ्यांची पंगत ... फराळांची रंगत.... आली रे आली दिवाळी आली.. पहील्या अंघ
Er.Shivampandit
पंगत का भोजन #पंगत_का_भोजन 🍝 शादी विवाह के (buffet) खाने में वो आनंद नहीं...जो उनदिनों पंगत में आता था जैसे...... फटाफट पहले जगह लेना.. बिना फटे पत्तल
Neha Mittal
CalmKazi
मौत से मुखातिब, जो हुई मेरी रूह पंगत बैठी की आगे क्या होगा ? जवाब नहीं थे बस कहने को यही था, "मुझे या तो फिर मत भेजना वापस ! या फिर बुत किसी मंदिर में रख देना । जो देखने और सुनने का है तालमेल शायद समझ जाऊँगा । खुदा का नज़रिया क्या है, वो सीख जाऊँगा" हँस पड़ा वो दूत उधर ही "नहीं सुनी ऐसी पैरवी कभी ! जो तुझे नजरिया ही देना होता, तो आज तेरे सामने मैं नहीं वो ख़ुदा ही खड़ा होता ।" Part 1 of #MautAurMain #GOD #CalmKaziWrites #YQDidi #YQBaba #death topic given by Oindrila Majumdar मुलाक़ात
MANJEET SINGH THAKRAL
पहले पंगत फिर संगत को अनिवार्य करने वाले सिख पंथ के तीसरे गुरूदेव साहिब श्री गुरू अमरदास साहिब जी महाराज के प्रकाश पर्व की हार्दिक शुभकामनाए
Vikas Sharma Shivaaya'
✒️📙जीवन की पाठशाला 📖🖋️ 🙏 मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 जीवन चक्र ने मुझे सिखाया की आजकल सभी जगह शादी-पार्टियों में खड़े होकर भोजन करने का रिवाज चल पडा है लेकिन हमारे शास्त्र कहते हैं कि हमें नीचे बैठकर ही भोजन करना चाहिए । खड़े होकर भोजन करने से हानियाँ तथा पंगत में बैठकर भोजन करने से जो लाभ हैं वे निम्नानुसार है:- (1) यह आदत असुरों की है । इसलिए इसे ‘राक्षसी भोजन पद्धति’ कहा जाता है । (2) इसमें पेट, पैर व आँतों पर तनाव पड़ता है, जिससे गैस, कब्ज, मंदाग्नि, अपचन जैसे अनेक उदर-विकार व घुटनों का दर्द, कमरदर्द आदि उत्पन्न होते हैं । कब्ज अधिकतर बीमारियों का मूल है । (3) इससे जठराग्नि मंद हो जाती है, जिससे अन्न का सम्यक् पाचन न होकर अजीर्णजन्य कई रोग उत्पन्न होते हैं । (4) इससे हृदय पर अतिरिक्त भार पड़ता है, जिससे हृदयरोगों की सम्भावनाएँ बढ़ती हैं । (5) पैरों में जूते-चप्पल होने से पैर गरम रहते हैं । इससे शरीर की पूरी गर्मी जठराग्नि को प्रदीप्त करने में नहीं लग पाती । (6) बार-बार कतार में लगने से बचने के लिए थाली में अधिक भोजन भर लिया जाता है, फिर या तो उसे जबरदस्ती ठूँस-ठूँसकर खाया जाता है जो अनेक रोगों का कारण बन जाता है अथवा अन्न का अपमान करते हुए फेंक दिया जाता है । (7) जिस पात्र में भोजन रखा जाता है, वह सदैव पवित्र होना चाहिए लेकिन इस परम्परा में जूठे हाथों के लगने से अन्न के पात्र अपवित्र हो जाते हैं । इससे खिलानेवाले के पुण्य नाश होते हैं और खानेवालों का मन भी खिन्न-उद्विग्न रहता है (8) हो-हल्ले के वातावरण में खड़े होकर भोजन करने से बाद में थकान और उबान महसूस होती है । मन में भी वैसे ही शोर-शराबे के संस्कार भर जाते हैं । जीवन चक्र ने मुझे सिखाया की बैठ कर (या पंगत में) भोजन करने से लाभ:- (1) इसे ‘दैवी भोजन पद्धति’ कहा जाता है । (2) इसमें पैर, पेट व आँतों की उचित स्थिति होने से उन पर तनाव नहीं पड़ता । (3) इससे जठराग्नि प्रदीप्त होती है, अन्न का पाचन सुलभता से होता है । (4) हृदय पर भार नहीं पड़ता । (5) आयुर्वेद के अनुसार भोजन करते समय पैर ठंडे रहने चाहिए । इससे जठराग्नि प्रदीप्त होने में मदद मिलती है । इसीलिए हमारे देश में भोजन करने से पहले हाथ-पैर धोने की परम्परा है । (6) पंगत में एक परोसनेवाला होता है, जिससे व्यक्ति अपनी जरूरत के अनुसार भोजन लेता है । उचित मात्रा में भोजन लेने से व्यक्ति स्वस्थ रहता है व भोजन का भी अपमान नहीं होता । (7) भोजन परोसनेवाले अलग होते हैं, जिससे भोजनपात्रों को जूठे हाथ नहीं लगते । भोजन तो पवित्र रहता ही है, साथ ही खाने-खिलानेवाले दोनों का मन आनंदित रहता है ॥ (8) शांतिपूर्वक पंगत में बैठकर भोजन करने से मन में शांति बनी रहती है, थकान-उबान भी महसूस नहीं होती । बाकी कल ,खतरा अभी टला नहीं है ,दो गज की दूरी और मास्क 😷 है जरूरी ....सावधान रहिये -सतर्क रहिये -निस्वार्थ नेक कर्म कीजिये -अपने इष्ट -सतगुरु को अपने आप को समर्पित कर दीजिये ....! 🙏सुप्रभात 🌹 आपका दिन शुभ हो विकास शर्मा'"शिवाया" 🔱जयपुर -राजस्थान 🔱 ©Vikas Sharma Shivaaya' ✒️📙जीवन की पाठशाला 📖🖋️ 🙏 मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 जीवन चक्र ने मुझे सिखाया की आजकल सभी जगह शादी-पार्टियों में खड़े
मुखौटा A HIDDEN FEELINGS * अंकूर *
एक अभागन कविता हूं मैं। रसिक हृदय की जली त्रिवेणी संगम सी ही पविता हूँ मैं।। नेह स्पर्श से हुई कलंकित एक अभागन कविता हूँ मैं।। गौरव गीत नही वीरों का गर्वित होकर जिसको गाओ वंचित भक्ति भाव से कथनी ईश्वर को जिस से हर्षाओ आहत हिय क्रंदन से उपजी क्षुब्ध कलम की द्रविता हूँ मैं। एक अभागन कविता हूँ मैं।। खड़ी अलंकृत धूमिल काया श्रेष्ठ ज्ञानियों की पंगत में गंध नही करुणामय किंचित सर्पों सा मलयज संगत में भटके प्रेम पथिक की दुर्बल अभिव्यक्ति की भविता हूँ मैं। एक अभागन कविता हूँ मैं।। घोर तिमिर का ले अवगुंठन डूब रही दुख के सागर में तानों का अम्बार सँजोती रिक्त भाग्य की हठ गागर में भोर प्रतिक्षा में वर्षों से परित्यक्ता सी सविता हूँ मैं। एक अभागन कविता हूँ मैं।। ©Ankur Raaz देशभक्ति या भक्ति भाव पर लिखी रचनाओं को बड़े सम्मान से देखा जाता है। कुछ कवियों के लिए तो प्रेम पर लिखना भी पाप है उनके लिए हैं यह कलंकित कवि