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Abdhesh prajapati
White एक पल नहीं लगता इस दुनिया से बिदा होने में फिर भी कितना गुरूर है आदमी को आदमी होने में..? ©Abdhesh prajapati आदमी को आदमी होने में
आदमी को आदमी होने में
read moreMSA RAMZANI
White माना कि मुसीबत में आदमी अकेला हो जाता है, पर मुसीबत आने पर ही, अकेला आदमी मजबूत होना सीख जाता है। 711/15 ©MSA RAMZANI माना कि मुसीबत में आदमी अकेला हो जाता है, पर मुसीबत आने पर ही, अकेला आदमी मजबूत होना सीख जाता है। Anupriya Tushar Yadav Aditya kumar pras
माना कि मुसीबत में आदमी अकेला हो जाता है, पर मुसीबत आने पर ही, अकेला आदमी मजबूत होना सीख जाता है। Anupriya Tushar Yadav Aditya kumar pras
read moreअनिल कसेर "उजाला"
White ज़िंदगी में अगर प्यार मिल जाएगा, दर्द-ए-गम खुशी में बदल जाएगा। आदमी आदमी को समझ जाए तो, पत्थरों में भी फूल खिल जाएगा। ©अनिल कसेर "उजाला" आदमी
आदमी
read moreपूर्वार्थ
White शादीशुदा पुरुष का संघर्ष शादीशुदा स्त्री की पीड़ा पर,सैकड़ों कविताएं गढ़ी गईं, कहानियों में बसी उसकी वेदना,हर बार सम्मान से पढ़ी गईं। पर शादीशुदा पुरुष का क्या?क्या उसके दुख कोई सुनता है? जो हंसता है सबके सामने,क्या भीतर से कभी खिलता है? वो घर का स्तंभ है, छत है, दीवार है,उसके कांधों पर हर जिम्मेदारी का भार है। सुबह से रात तक भागता दौड़ता,सपनों से पहले, अपनों का ख्याल करता। हर सुबह उठकर वो काम पर जाता,दबाव के पहाड़ तले, खुद को छिपाता। दफ्तर की राजनीति, बॉस की फटकार,सब सहकर भी लाता है घर का त्योहार। घर में जो रोटी की खुशबू आती है,वो उसके पसीने की गंध से मिलती है। बच्चों की मुस्कान, पत्नी की खुशी,उसकी दुनिया बस इन्हीं में सिमटती है। पर क्या कभी किसी ने देखा है,उसकी आंखों में छिपा दर्द? उसके सपने, उसकी ख्वाहिशें,कहीं धुंधले पड़ गए हर कदम। वो भी थकता है, पर कह नहीं पाता,दर्द से जूझता है, पर रो नहीं पाता। उसकी मेहनत को ना कोई समझता,उसके संघर्ष को बस समाज अनदेखा करता। जब पत्नी थकती है, दुनिया उसे सहलाती,जब पति थकता है, चुप्पी उसे खा जाती। कहां है वो कंधा, जिस पर वो सिर टिकाए?कहां है वो सुकून, जो उसका मन बहलाए? कभी-कभी अपमान की आंधियां आती हैं,घर के भीतर भी ताने सुनाई जाती हैं। "तुम तो बस कमाने की मशीन हो,क्या और कोई संवेदना तुम्हारे पास नहीं हो?" आरोप, अपेक्षा और तुलना के बाण,हर दिन उसकी आत्मा पर चलते हैं तीर समान। कभी खुद को समझा नहीं पाता,कभी सबकी उम्मीदों का भार सह जाता। पर ये समाज उसे हीरो नहीं मानता,ना उसकी तकलीफ पर कोई गीत गाता। जो देता है सबको सपनों का सहारा,वो खुद अकेला क्यों रह जाता है बेचारा? वो भी इंसान है, पत्थर नहीं,उसके भी अरमान हैं, कोई समझ नहीं। उसकी चुप्पी में एक गहरा समंदर है,उसका हर दिन, एक नया संघर्ष है। तो चलो, अब उसकी भी कहानी लिखी जाए,उसकी वेदना को भी स्वर दिए जाएं। शादीशुदा पुरुष को भी सम्मान मिले,उसकी मेहनत और संघर्ष को सराहा जाए। वो भी जीता है, वो भी सहता है,उसकी भी कहानी अब कही जाए। क्योंकि वो भी समाज का आधार है,उसके बिना हर परिवार अधूरा संसार है। ©पूर्वार्थ #आदमी
Sr Amar Babu
a-person-standing-on-a-beach-at-sunset वो तस्वीर दिखा कर समांझती है अपने बेटे को, बेरोजगार आदमी किसी काम का नही. ©Sr Amar Babu #SunSet वो तस्वीर दिखा कर सीमांतीकृत है अपने बेटे को, बेरोजगार आदमी किसी काम का नही. शायरी 'दर्द भरी शायरी' शायरी दर्द
#SunSet वो तस्वीर दिखा कर सीमांतीकृत है अपने बेटे को, बेरोजगार आदमी किसी काम का नही. शायरी 'दर्द भरी शायरी' शायरी दर्द
read morevksrivastav
Unsplash जश्न अच्छा है आदमी के लिए पर कोई ठोस वजह हो तो ज़्यादा अच्छा हो। ©Vk srivastav जश्न अच्छा है आदमी के लिए #Quotes #SAD #Trending #Love #vksrivastav
जश्न अच्छा है आदमी के लिए Quotes SAD Trending Love vksrivastav
read moreअदनासा-
Parasram Arora
White हर आदमी ताउम्र शिद्दत से जीने की पूरी कोशिश करता है ये आदमी की मजबूरी है कि इसके बावजूद उसे मरना पड़ता है ता उम्र आदमी की हथेली मे पुरानी लकीरे मिटती रहती है और नई लकीरे बनती रहती है लेकिंन एक दिन हथेली मे एकभी लकीर बचती नहीं और हथेली को सपाट होना ही पड़ता है ©Parasram Arora आदमी की मजबूरी
आदमी की मजबूरी
read moreAvinash Jha
White आदमी है आदमी है, बस नाम का, भीतर से खाली, दिखावे का। मिट्टी से बना, माटी का तन, फिर भी अहंकार, जैसे अमर धन। हाथ में है चाँद पकड़ने का हुनर, पर भूल गया दिल के सागर। दुनिया सजाई, सपने बुने, पर रिश्तों के पुल, कहीं छूटे। आदमी है, पर इंसान कहां? जुड़ा है धरती से, पर आसमान कहां? स्वार्थ की जंजीर, उसे जकड़े, परम सत्य की राह, कैसे पकड़े? फिर भी उम्मीद है, दीप जलेगा, भीतर का इंसान कभी तो जागेगा। प्रेम, करुणा, और सत्य का दीप, आदमी को इंसान बनाएगा। ©Avinash Jha #आदमी
Vinod Mishra