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vishnu prabhakar singh
"धर्म" हमें इस ग्रह पर रहने का मार्ग है।। हमलोग तकलीफ से कितना डरते हैं सबसे ज्यादा मरने से ये जो मानव मस्तिष्क है ना,जहर है वेदानुसार अच्छे कर्म मानव योनि का मार्ग है मैं तो कहूँगा सबसे पापी के लिए यह योनि तो जरा सोचिए किस तरह का पाप गाय यह कहती हुई कि, दे दो भैया दूध का कर्ज भैंस जुगाली करता हुआ मनोरंजन कर माँगे ऐसे पापियों का मानव योनि में जन्म होता है ऐसे पापी पुण्य से डरते हैं तो,तकलीफ से डरना अनिवार्य! वेद भौगोलिक स्थिति का ढाँढस है।। #विप्रणु #yqdidi #yqbaba #philosophy #miscellaneous #modi
Pnkj Dixit
मन सम्बन्ध - १० 🌷 अच्छा ! तो वह तुम थे ; जो इन स्नेहसिक्त समर्पित आँखों से विछोह की अग्नि में जलते मन को ढ़ाँढ़स बँधाते हुए हृदय की दरारों को सुलगाते रात भर बूँद - बूँद रिसते रहे । १०/०२/२०२० 🌷👰💓💝 ...✍ कमल शर्मा'बेधड़क' ©Pnkj Dixit मन सम्बन्ध - १० 🌷 अच्छा ! तो वह तुम थे ; जो इन स्नेहसिक्त समर्पित आँखों से विछोह की अग्नि में जलते मन को ढाँढस बँधाते हुए
@nil J@in R@J
साँसों की सीडियों से उतर आई जिंदगी बुझते हुए दिए की तरह, जल रहे हैं हम उम्रों की धुप, जिस्म का दरिया सुखा गयी हैं हम भी आफताब, मगर ढल रहे हैं हम #NojotoQuote ज़िन्दगी एक सूखी नदी बन गयी प्रीत के स्रोत सारे कहीं खो गये । वो मचलती , उमड़ती , उमंगों भरी चाल भूली , कदम दर्द से सो गये।। आज किसको पुकार
Author Munesh sharma 'Nirjhara'
कही-अनकही बातों का सफ़र ताउम्र चलता ही रहेगा कुछ मैंने कहा,उसने ना सुना कुछ उसने ना कहा,मैंने सुन लिया यह दिल बहलाने का रिवाज़ मुसलसल बना ही रहेगा वो पूछे मैं कहूँ वो कह दे,मैं सुन सकूँ धड़कनों की यह फड़फड़ाहट यूँ ही बनी रहेगी बिना प्रेम के प्रेमी पंछी आसमान में ठिकाना ढूँढते रहेंगे वो जो अनायास होती है एक बिना कारण की मन में खुशी जिसका कोई सिर-पैर नहीं होता वो यूँ ही अपनी धाक जमाती रहेगी भ्रम में डालती रहेगी वो याद कर रहा है मुझे तभी हिचकी चरम पर है आज दिल को ढाँढस बँधाना छोड़ जो हुआ सो हुआ आगे बढ़.... और फिर चार क़दम पीछे हो जाना मन की बेचैनी,उसके आने की आस बनी ही रहेगी मैं वो नहीं,वो भी वो नहीं जो चलें साथ-साथ फिर भी परछाई साथ बनी ही रहेगी जागते सपनों में मुलाक़ात होती ही रहेगी!🌹 कही-अनकही बातों का सफ़र ताउम्र चलता ही रहेगा कुछ मैंने कहा,उसने ना सुना कुछ उसने ना कहा,मैंने सुन लिया यह दिल बहलाने का रिवाज़ मुसलसल बना ही र
vishnu prabhakar singh
'दावत' जब से, लोगों को खिलाना-पिलाना नियम बन गया, तब से, दावत के माध्यम से ख़ुशी को दूना करना कम हो गया।जीवन के आपाधापी में दावतें आलिशान हो कर भी कंगाल होती गई, और तो और उपहार के पल्ले चढ़ गई।धनवान की दावत कतारबद्ध हो चुकी।इस परिवेश से सिमित रूप से अनछुये गांव में, आज तिलक का दावत है।गांव के अपने प्रपंच हैं! दो होनहार युवा भाई का संयुक्त तिलक का दावत। (कृपया, शेष कहानी अनुशीर्षक में पढ़ें) तिलक के दावत की प्रेसित पर पूर्णत मौखिक व्यवहार वाली सर्वमान्य निविदा प्राप्त कर लोग, सकारात्मक रूप से अच्छे दावत की अपेक्षा में ही रहेंगे।औ