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Jitendra Kumar Som
नौवीं पुतली मधुमालती की कथा राजा भोज हर दिन नई पुतली से राजा विक्रमादित्य की महानता और त्याग के किस्से सुनकर परशान हो चुके थे। लेकिन वे सिंहासन पर बैठने का मोह भी नहीं रोक पा रहे थे। दूसर तरफ उज्जयिनी की जनता अपने पूर्व राजा विक्रमादित्य के त्याग की कहानियां सिंहासन की पुतलियों से सुनने को बड़ी संख्या में हर दिन एकत्र होने लगी। नौवे दिन जैसे ही राजा भोज सिंहासन की तरफ बढ़ने लगे मधुमालती नामक पुतली जाग्रत हो उठीं और बोली, ठहरो राजन, क्या तुम राजा विक्रम की तरह प्रजा के लिए अपने प्राणों का भी त्याग कर सकते हो, अगर नहीं तो सुनो राजा विक्रमादित्य की कहानी- एक बार राजा विक्रमादित्य ने राज्य और प्रजा की सुख-समृद्धि के लिए एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया। कई दिनों तक यज्ञ चलता रहा। एक दिन राजा मंत्र-पाठ कर रहे, तभी एक ॠषि वहां पधारे। राजा ने उन्हें देखा, पर यज्ञ छोड़कर उठना असम्भव था। उन्होंने मन ही मन ॠषि का अभिवादन किया तथा उन्हें प्रणाम किया। ॠषि ने भी राज्य का अभिप्राय समझकर उन्हें आशीर्वाद दिया। जब राजा यज्ञ से उठे, तो उन्होंने ॠषि से आने का प्रयोजन पूछा। राजा को मालूम था कि नगर से बाहर कुछ ही दूर पर वन में ॠषि एक गुरुकुल चलाते हैं जहां बच्चे विद्या प्राप्त करने जाते हैं। ॠषि ने जवाब दिया कि यज्ञ के पुनीत अवसर पर वे राजा को कोई असुविधा नहीं देते, अगर आठ से बारह साल तक के छ: बच्चों के जीवन का प्रश्न नहीं होता। राजा ने उनसे सब कुछ विस्तार से बताने को कहा। इस पर ॠषि ने बताया कि कुछ बच्चे आश्रम के लिए सूखी लकड़ियां बीनने वन में इधर-उधर घूम रहे थे। तभी दो राक्षस आए और उन्हें पकड़कर ऊंची पहाड़ी पर ले गए। ॠषि को जब वे उपस्थित नहीं मिले तो उनकी तलाश में वे वन में बेचैनी से भटकने लगे। तभी पहाड़ी के ऊपर से गर्जना जैसी आवाज सुनाई पड़ी जो निश्चित ही उनमें से एक राक्षस की थी। राक्षस ने कहा कि उन बच्चों की जान के बदले उन्हें एक पुरुष की आवश्यकता है जिसकी वे मां काली के सामने बलि देंगे। जब ॠषि ने बलि के हेतु अपने-आपको उनके हवाले करना चाहा तो उन्होंने असहमति जताई। उन्होंने कहा कि ॠषि बूढे हैं और काली मां ऐसे कमज़ोर बूढ़े की बलि से प्रसन्न नहीं होगी। काली मां की बलि के लिए अत्यंत स्वस्थ क्षत्रिय की आवश्यकता है। राक्षसों ने कहा है कि अगर कोई छल या बल से उन बच्चों को स्वतंत्र कराने की चेष्टा करेगा, तो उन बच्चों को पहाड़ी से लुढ़का कर मार दिया जाएगा। राजा विक्रमादित्य से ॠषि की परेशानी नहीं देखी जा रही थी। वे तुरन्त तैयार हुए और ॠषि से बोले- 'आप मुझे उस पहाड़ी तक ले चले। मैं अपने आपको काली के सम्मुख बलि के लिए प्रस्तुत करूंगा। मैं स्वस्थ हूं और क्षत्रिय भी। राक्षसों को कोई आपत्ति नहीं होगी।' ॠषि ने सुना तो हतप्रभ रह गाए। उन्होंने लाख मनाना चाहा, पर विक्रम ने अपना फैसला नहीं बदला। उन्होंने कहा अगर राजा के जीवित रहते उसके राज्य की प्रजा पर कोई विपत्ति आती है तो राजा को अपने प्राण देकर भी उस विपत्ति को दूर करना चाहिए। राजा ॠषि को साथ लेकर उस पहाड़ी तक पहुंचे। पहाड़ी के नीचे उन्होंने अपना घोड़ा छोड़ दिया तथा पैदल ही पहाड़ पर चढ़ने लगे। पहाड़ीवाला रास्ता बहुत ही कठिन था, पर उन्होंने कठिनाई की परवाह नहीं की। वे चलते-चलते पहाड़ की चोटी पर पहुंचे। उनके पहुंचते ही राक्षस बोला कि उन्हें बच्चों की रिहाई की शर्त मालूम है या नहीं। राजा ने कहा कि वे सब कुछ जानने के बाद ही यहां आए हैं। उन्होंने राक्षसों से बच्चों को छोड़ देने को कहा। एक राक्षस बच्चों को अपनी बांहों में लेकर उड़ा और नीचे उन्हें सुरक्षित पहुंचा आया। दूसरा राक्षस उन्हें लेकर उस जगह आया जहां मां काली की प्रतिमा थी और बलिवेदी बनी हुई थी विक्रमादित्य ने बलिवेदी पर अपना सर बलि हेतु झुका दिया। वे जरा भी विचलित नहीं हुए। उन्होंने मन ही मन अंतिम समय समझ कर भगवान का स्मरण किया। वह राक्षस खड्ग लेकर उनका सर धर से अलग करने को तैयार हुआ। अचानक उस राक्षस ने खड्ग फैंक दिया और विक्रम को गले लगा लिया। वह जगह एकाएक अद्भुत रोशनी तथा खुशबू से भर गया। विक्रम ने देखा कि दोनों राक्षसों की जगह इन्द्र तथा पवन देवता खड़े थे। उन दोनों ने राजा विक्रमादित्य की परीक्षा लेने के लिए यह सब किया था। वे देखना चाहते थे कि विक्रम सिर्फ सांसारिक चीज़ों का दान ही कर सकता है या प्राणोत्सर्ग करने की भी क्षमता रखता है। उन्होंने राजा से कहा कि उन्हें यज्ञ करता देख ही उनके मन में इस परीक्षा का भाव जन्मा था। उन्होंने विक्रम को यशस्वी होने का आशीर्वाद दिया तथा कहा कि उनकी कीर्ति सदियों तक चारों ओर फैलेगी। इतना कहकर मधुमालती चुप हो गई। अगले दिन राजा भोज का रास्ता रोका पुतली प्रभावती ने। ©Jitendra Kumar Som #Oscar नौवीं पुतली मधुमालती की कथा
B.P. Godara
Neerav Nishani
मेरा उसे देखने का मन था, सोचा आरज़ू पूरी कर लूं। पहली बार गया वो नहीं दिखी दूसरी बार में भी नहीं मिली, तीसरी बार में जरा दिखी, चौथी बार में कोई साथ पांचवीं बार में वो दिखी पहली बार में हेलो बोला दूसरी बार में कैसे हो, तीसरी बार में और बताओ, चौथी बार में टौफी थी पांचवीं बार में खामोशी, छठवीं बार में क्या चल रहा है सातवीं बार में बहस हुई, आठवीं बार में झड़क, नौवीं बार में बात खत्म ©Neerav Nishani मेरा उसे देखने का मन था, सोचा आरज़ू पूरी कर लूं। पहली बार गया वो नहीं दिखी दूसरी बार में भी नहीं मिली, तीसरी बार में जरा दिखी, चौथी बार में
Saurav life
womens.... read in caption. ©Saurav life #women siya pandey Monika Rathee Tanya Sharma (लम्हा) एक राज्य-सरकार ने आदेश दिया है कि अगर महिला सरपंच की जगह मीटिंग में उसका पति पहुंचत
Satya Prakash Upadhyay
भक्ति के रास्ते मे 3 शत्रु या बाधा हैं। दूसरा: बगुला या बकासुर ,दम्भ का प्रतीक एक पैर पर खड़ा लगेगा तप कर रहा है,जनसामान्य में" बगुला भगत" कहते हैं ढोंगी लोगों को ,पाखंड का प्रतीक है यह। अभी साल दो साल बीता , और दम्भ के कारण आगे का रास्ता नही चलते,अपने आप को बहुत बड़े ज्ञानी और सिद्ध समझ प्रवचन करना और दुसरों से श्रेष्ठ समझना शुरू कर देते हैं। जहाँ बनावट ,दिखावट है वहां गिरावट है। शबरी माता को नवधा भक्ति का उपदेश करते हुए श्रीरामजी कहते हैं, नवम सरल सब सन छलहीना। मम भरोस हियँ हरष न दीना।। अर्थात,नौवीं भक्ति है छल कपट का मार्ग छोड़ दूर रहना और किसी भी अवस्था में हर्ष और विषाद का न होना। आज के युग की विडंबना है कि सरलता मिलना मुश्किल हो गया है। मैंने उसे बुद्धु बना दिया,ऐसे बात कही कि उसे समझ न आया और मूर्ख बना कर अपना काम निकाल लिया,इसमे लोग अपनी बड़ाई मानते हैं। अगर कोई चाहे कि सबको वश में कर लें, तो सरल हो जाइए, हमारी जटिलता हीं हमें सबसे अलग करती है, जैसे भीतर से हो वैसे हीं बाहर से हो जाए, या जैसे बाहर से हैं वैसे भीतर से हो जाएं। ॥जय श्री हरि॥ (part2,भाग२) satyprabha💕 दूसरा बगुला या बकासुर ,दम्भ का प्रतीक एक पैर पर खड़ा लगेगा तप कर रहा है,जनसामान्य में" बगुला भगत" कहते हैं ढोंगी लोगों को ,पाखंड का प्रतीक ह
Satya Prakash Upadhyay
हिंदी दिवस मेरी मातृभाषा हिंदी नहीं, हाँ सरकारी दफ्तरों के फॉर्म में लिखना पड़ता है, ये बस एक मजबूरी से ज्यादा कुछ भी नहीं। हमारी मातृभाषा को कानूनी दर्ज़ा प्राप्त नही,जबकि इसे बोलने वाले करोडों में हैं,विदेशों में इसे राष्ट्रीय भाषा का दर्ज़ा प्राप्त है ,पर इसके गंगोत्री में हीं इसे अस्वीकार किया जा रहा है।फ़िल्म ग़दर में सनी देओल का एक फेमस डॉयलोग है, एक... seee more in caption मेरी मातृभाषा हिंदी नहीं, हाँ सरकारी दफ्तरों के फॉर्म में लिखना पड़ता है, ये बस एक मजबूरी से ज्यादा कुछ भी नहीं। हमारी मातृभाषा को कानूनी दर्
नेहा उदय भान गुप्ता😍🏹
जो जीवन का सार हैं, जिसको जानता हैं जग सारा। आज उदय दुलारी नेह बताएगी, संविधान की गाथा। बहुत पुरानी बात हैं, आजादी का जब बजा बिगुल था। चारों तरफ खुशी का माहौल, पर कुछ तो कमी था। कौन कैसे कहां से शुरुवात करें, था यें प्रश्न गंभीर। तब आएं बाबा भीमराव, बनकर भारत का वीर। 58 देशों का भ्रमण किया, किया वहां की बातों का अध्यन। करके एक सभा गठित, होने लगा फ़िर संविधान पर मंथन। 2 वर्ष 11 माह 18 दिन का समय, बन तैयार हुआ हमारा संविधान। 299 लोगों ने लिखा इसे, स्थाई अध्यक्ष बनें राजेन्द्र प्रसाद। 26 जनवरी 1950 को, लागु हुआ हमारे संविधान का विधान। तबसे हर वर्ष 26 जनवरी को मनाया जाता संविधान दिवस। सबसे बड़ा लिखित संविधान ये, सब कुछ का इसमें विधान। बाबा भीमराव ने हर वर्ग के लिए इसमें किया है प्रावधान। है इसमें एक उद्देशिका सम्मिलित, 448 हैं इसमें अनुच्छेद। 12 अनुसूची सम्मलित इसमें, संविधान में हैं 25 भाग।। 5 अनुलग्नक इसमें समलित, 125 हुए अभी तक संशोधन। धर्म निरपेक्ष शब्द जोड़ा गया, करके अलग संशोधन। एकता अखंडता का प्रतीक, मूल कर्तव्यों का हैं समावेश। सभी वर्णों का मूल अधिकार इसमें, इसमें नहीं कोई द्वेष। नीति निदेशक तत्व की, बात हैं सबसे प्यारी। बच्चों से लेकर बूढों तक, रक्षा करती ये हमारी। 26 जनवरी का दिन हैं इतना प्यारा, कैसे करूं मैं इसकी बखान। इसी दिन दिए जाते हैं, भारत रत्न, पद्म भूषण आदि सम्मान। कविता - जो जीवन का सार हैं, जिसको जानता हैं जग सारा। आज उदय दुलारी नेह बताएगी, संविधान की गाथा। बहुत पुरानी बात हैं, आजादी का जब बजा बिगुल
नेहा उदय भान गुप्ता
जो जीवन का सार हैं, जिसको जानता हैं जग सारा। आज उदय दुलारी नेह बताएगी, संविधान की गाथा। बहुत पुरानी बात हैं, आजादी का जब बजा बिगुल था। चारों तरफ खुशी का माहौल, पर कुछ तो कमी था। कौन कैसे कहां से शुरुवात करें, था यें प्रश्न गंभीर। तब आएं बाबा भीमराव, बनकर भारत का वीर। 58 देशों का भ्रमण किया, किया वहां की बातों का अध्यन। करके एक सभा गठित, होने लगा फ़िर संविधान पर मंथन। 2 वर्ष 11 माह 18 दिन का समय, बन तैयार हुआ हमारा संविधान। 299 लोगों ने लिखा इसे, स्थाई अध्यक्ष बनें राजेन्द्र प्रसाद। 26 जनवरी 1950 को, लागु हुआ हमारे संविधान का विधान। तबसे हर वर्ष 26 जनवरी को मनाया जाता संविधान दिवस। सबसे बड़ा लिखित संविधान ये, सब कुछ का इसमें विधान। बाबा भीमराव ने हर वर्ग के लिए इसमें किया है प्रावधान। है इसमें एक उद्देशिका सम्मिलित, 448 हैं इसमें अनुच्छेद। 12 अनुसूची सम्मलित इसमें, संविधान में हैं 25 भाग।। 5 अनुलग्नक इसमें समलित, 125 हुए अभी तक संशोधन। धर्म निरपेक्ष शब्द जोड़ा गया, करके अलग संशोधन। एकता अखंडता का प्रतीक, मूल कर्तव्यों का हैं समावेश। सभी वर्णों का मूल अधिकार इसमें, इसमें नहीं कोई द्वेष। नीति निदेशक तत्व की, बात हैं सबसे प्यारी। बच्चों से लेकर बूढों तक, रक्षा करती ये हमारी। 26 जनवरी का दिन हैं इतना प्यारा, कैसे करूं मैं इसकी बखान। इसी दिन दिए जाते हैं, भारत रत्न, पद्म भूषण आदि सम्मान। कविता - जो जीवन का सार हैं, जिसको जानता हैं जग सारा। आज उदय दुलारी नेह बताएगी, संविधान की गाथा। बहुत पुरानी बात हैं, आजादी का जब बजा बिगुल
AB
...... स्कूल के दिनों में पेपर आधा हिंदी आधा अंग्रेजी में देकर आती थी मैं, मालूम होने के बावजूद के पेपर पूरी क्लास के सामने चेक होगा और एक एक
Vikas Sharma Shivaaya'
नमस्कार मित्रों , मैं कश्मीर और कश्मीरी पंडितों के ऊपर एक पुस्तक लिख रहा हूँ ,आप -आपके परिचित जो भी कश्मीर से तालुकात रखते हों ,कृपया मुझे व्यक्तिगत मैसेज करें ,आगामी वार्तालाप हेतु ... 🚩🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️ 🙌🚩🔱 मां जगदम्बे🔱हमेशा हमारा आपका मार्गदर्शन करती रहे..., 📖✒️जीवन की पाठशाला 📙 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 हिंदू धर्म में मान्यता है कि चैत्र माह की शुक्ल पक्ष के नवमी तिथि को भगवान विष्णु ने प्रभु श्री राम के रूप में धरती पर अपना सातवां अवतार लिया था- तब से इस तिथि को भगवान राम के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है..., कबीर साहेब जी आदि राम की परिभाषा बताते है की आदि राम वह अविनाशी परमात्मा है जो सब का सृजनहार व पालनहार है- जिसके एक इशारे पर धरती और आकाश काम करते हैं जिसकी स्तुति में तैंतीस कोटि देवी-देवता नतमस्तक रहते हैं। जो पूर्ण मोक्षदायक व स्वयंभू है..., "एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घट घट में बैठा, एक राम का सकल उजियारा, एक राम जगत से न्यारा"।। नवरात्र के दिन मां दुर्गा का स्वरूप:मां सिद्धिदात्री माँ दुर्गाजी की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री हैं- ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं..., कमल पर विराजमान चार भुजाओं वाली मां सिद्धिदात्री लाल साड़ी में विराजित हैं- इनके चारों हाथों में सुदर्शन चक्र, शंख, गदा और कमल रहता है,सिर पर ऊंचा सा मुकूट और चेहरे पर मंद मुस्कान ही मां सिद्धिदात्री की पहचान है.. , मंत्र:'ॐ सिद्धिदात्र्यै नम:।' भगवान शिव ने मां सिद्धिदात्री की कृपा से ही 8 सिद्धियों को प्राप्त किया था-इन सिद्धियों में अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व शामिल हैं- इन्हीं माता की वजह से भगवान शिव को अर्द्धनारीश्वर नाम मिला, क्योंकि सिद्धिदात्री के कारण ही शिव जी का आधा शरीर देवी का बना-हिमाचल का नंदा पर्वत इनका प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है- मान्यता है कि जिस प्रकार इस देवी की कृपा से भगवान शिव को आठ सिद्धियों की प्राप्ति हुई ठीक उसी तरह इनकी उपासना करने से अष्ट सिद्धि और नव निधि, बुद्धि और विवेक की प्राप्ति होती है.. , श्लोक: सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमसुरैरपि | सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी || Affirmations: 91-मै अपने अतीत को आसानी से छोड देता हूं और जीवन की प्रक्रिया पर विश्वास करता हूं... 92-मैं ठीक हूँ और बहुत अच्छा अनुभव कर रहा हूँ... 93-मैं प्रेम से प्रेरित हूँ ... 94-मेरे पास परिवर्तन करने की शक्ति है ... 95-मैं अपने अतीत के कड़वेपन को मुक्त कर देता हूँ और स्वयं को क्षमा करता हूँ ... बाकी कल ,खतरा अभी टला नहीं है ,दो गज की दूरी और मास्क 😷 है जरूरी ....सावधान रहिये -सतर्क रहिये -निस्वार्थ नेक कर्म कीजिये -अपने इष्ट -सतगुरु को अपने आप को समर्पित कर दीजिये ....! 🙏सुप्रभात 🌹 आपका दिन शुभ हो विकास शर्मा'"शिवाया" 🔱जयपुर -राजस्थान 🔱 ©Vikas Sharma Shivaaya' नमस्कार मित्रों , मैं कश्मीर और कश्मीरी पंडितों के ऊपर एक पुस्तक लिख रहा हूँ ,आप -आपके परिचित जो भी कश्मीर से तालुकात रखते हों ,कृपया मुझे