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श्यामजी शयमजी
White कुत्ते का पिल्ला बैठा नीम की शाम में आज बारिश होगी आपकी भी गांव में ©श्यामजी शयमजी #cg_forest कविता कविता
#cg_forest कविता कविता
read morepraveen dubey
White शिव बैठे है खुले आकाश मे, सारा जगत सजदे में शिर झुकाएं बैठा है। महल बालों को झूठा ही अभिमान है,की लोग हमारे दर में सजदा ही नही करते।। ©praveen dubey #कविता
कविता
read morePenman
White एक बचपन हमने जिया जिसमें सब कुछ था, गुस्सा था, प्यार था, लड़ाई थी, झगड़ा था, रूठना था मानना था, हर किसी के जख्म पर मरहम लगाना था, खेल थे सब सच्चे थे, कब्बडी, छुपम छुपाई, भागम भाग, मिट्टी लकड़ी के खिलौने थे, कहते तो साहब सब बेहतर था, आज के दौर में सब कुछ खत्म हो चला, कोई नही खेलता पुराने खेल, क्योंकि आधुनिक यंत्रों ने मिटाकर रख दिया सब कुछ, खोखला और खालीपन रह गया , सच कहूं तो एक छोटे से फोन में सब कुछ हो गया। ©Penman #कविता
Jaymala Bharkade
White झाडे लावुनी जागवूया आपली माती उष्णतेच्या लाटेचे उभे थैमान माथी वर्षानुवर्ष खितपत पडली आपली माती तुटका पाऊस नि दुष्काळ हाती निवारण यावरी एकच आता झाडे लावूनी जगवूया आपली माती ज्या गावात नि शिवारावर झाडे हिरवी गाव आनंदाने ते सदा बहरे करा निश्चय मनात एकच आता नि उतरू द्या आपल्या कृतीत झाड लावुनी जगवूया आपली माती नाही तो दिवस लांब आता कृत्रिम हवा पाणी येईल बाजारी तव महाग होईल जीवनाची स्पंदने का ? संकट ओढवून घेता आपल्या हाताने झाड लावुनी चला जगवूया माती नको उशीर पुन्हा आता तू तू मै मै का करता ? ठरेल प्राणघाती हे आपणा उठा जन सहकार्याने शाश्वत जीवनासाठी झाड लावुनी चला जगवूया आपली माती ©Jaymala Bharkade #झाडे लावा झाडे जगवा
#झाडे लावा झाडे जगवा #मराठीकविता
read moreGurudeen Verma
White शीर्षक- इस ठग को क्या नाम दे --------------------------------------------------------- बड़े नम्बरी होते हैं वो आदमी, जो करते हैं शोषण छोटे आदमी का, और छीन लेते हैं उधारी चुकाने के नाम पर, गरीब आदमी की जमीन और आजादी। लेते हैं काम छोटे आदमी को, कोल्हू के बैल की तरह दिनरात, एक वर्ष की मजदूरी बीस हजार देकर, जबकि होते हैं खर्च पाँच हजार एक माह में। लेता है ब्याज बहुत वो आदमी, छोटे आदमी को देकर उधार रुपये, बड़े ही ठाठ होते हैं इन आदमियों के, जिनके होते हैं मकां महलनुमा। होती है उनकी जिंदगी राजा सी, जिनके एक ही आदेश पर, हो जाते हैं सारे काम, और हाजिर नौकर चाकरी में। कमाता होगा इतने रुपये वह आदमी, मेहनत की कमाई से कभी भी नहीं, बनाता है वह अपनी इतनी सम्पत्ति, भ्रष्टाचार और दो नम्बर की कमाई से। लेकिन एक ऐसा आदमी भी है, जो लेता है बड़े आदमी से भी ज्यादा दाम, करता नहीं रहम वो अपने भाई पर भी, और कोसता है वह बड़े आदमी, इस ठग को क्या नाम दे।। शिक्षक एवं साहित्यकार गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान) ©Gurudeen Verma #कविता
कविता
read moreShiv gopal awasthi
ऐसा पढ़ना भी क्या पढ़ना,मन की पुस्तक पढ़ न पाए, भले चढ़े हों रोज हिमालय,घर की सीढ़ी चढ़ न पाए। पता चला है बढ़े बहुत हैं,शोहरत भी है खूब कमाई, लेकिन दिशा गलत थी उनकी,सही दिशा में बढ़ न पाए। बाँट रहे थे मृदु मुस्कानें,मेरे हिस्से डाँट लिखी थी, सोच रहा था उनसे लड़ना ,प्रेम विवश हम लड़ न पाए। उनका ये सौभाग्य कहूँ या,अपना ही दुर्भाग्य कहूँ मैं, दोष सभी थे उनके लेकिन,उनके मत्थे मढ़ न पाए। थे शर्मीले हम स्वभाव से,प्रेम पत्र तक लिखे न हमने। चंद्र रश्मियाँ चुगीं हमेशा,सपनें भी हम गढ़ न पाए। कवि-शिव गोपाल अवस्थी ©Shiv gopal awasthi कविता
कविता #शायरी
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