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Stories related to डिसकस थे प्राइमरी डाटा

Mubarak

#GoodNightहलातों ने खो दी है चेहरे की मुस्कान वर्णना जहां बैठते थे वहां रौंनक लादिया करते थे

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White हलातो ने खो दी है चेहरे की मुशकान वरना जहां बैठते थे वहां रोंनक लादिया करते थे
💞

©Mubarak #GoodNightहलातों ने खो दी है चेहरे की मुस्कान वर्णना जहां बैठते थे वहां रौंनक लादिया करते थे

‌Abdhesh prajapati

अच्छे लगते थे

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White सर मैं बुरा बना दिया है,
वरना
एक समय हम भी 
 सबको अच्छे लगते थे

©‌Abdhesh prajapati अच्छे लगते थे

शान-ए-शब

#good_night सब मेरे ख़्वाब थे 🙏🏻

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White हम तो उनके लिए खास थे !
हाय.......कैसे ये वहम भरे, मेरे ख़्वाब थे !

©शान-ए-शब #good_night सब मेरे ख़्वाब थे 🙏🏻

Shiv Narayan Saxena

#GoodNight अकेले थे . . . . poetry in hindi

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White अकेले थे तो 
अकेले होने के सिवा 
ग़म नहीं थे 
ख़ुश तो 
   उसके साथ भी नहीं रहे 'शौक' 
उसके जाने के बाद 
अकेले तो फिर हुए 
उसकी यादों के ग़म 
कम नहीं थे.

©Shiv Narayan Saxena #GoodNight अकेले थे . . . .  poetry in hindi

अनिल कसेर "उजाला"

अड़े थे

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Parasram Arora

भी क्या दिन थे

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White वे भी क्या दिन थे 
ज़ब मै ठहाके मार कर 
हँसा करता था
 
बिना शिकायत के 
जिंदगी बसर करता था
 
छोटे छोटे खबाब देख 
कर जिंदगी के दिन 
काट लिया करता था
 
रफ्ता रफरता वक़्त गुजरता गया 
और बचपन पीछे छुटता गया 
 और मै जवान होता गया

©Parasram Arora भी क्या दिन थे

Praveen Jain "पल्लव"

#chaandsifarish सभ्यताओं के कपड़े पहनाये थे

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पल्लव की डायरी
घुटन कियो लिबासों में हो रही है
फेशनो के नाम पर 
नंगेपन की नुबायस हो रही है
सादगी अंगों की बनी रहे
सभ्यताओं के कपड़े पहनाये थे
लगता है बाजारू रुख
असभ्यताओ को निमंत्रण दे रहा है
फले फूले बाजार,कट लिबास कर
अंगप्रदर्शन को तज्जबो दे रहा है
                                              प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव" #chaandsifarish सभ्यताओं के कपड़े पहनाये थे

Narender Kumar

दुर थे तो शांत थे पास आए तो शोर हुआ।

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unique writer

गुण नहीं थे

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Shashi Bhushan Mishra

#आस्तीन के सांप बहुत थे#

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आस्तीन के साँप बहुत थे फुर्सत में जब छाँट के देखा,
झूठ के पैरोकार बहुत थे आसपास जब झाँक के देखा,

बाँट रही खैरात सियासत मेहनतकश की झोली खाली, 
नफ़रत की दीवार खड़ी थी अल्फ़ाज़ों को हाँक के देखा,

जादू-टोना,  ओझा मंतर,  पूजा-पाठ   सभी   कर   डाले,
मिलती नहीं सफलता यूँही धूल सड़क की फाँक के देखा,

धरती से आकाश तलक की यात्रा सरल कहाँ होती है,
बड़ी-बड़ी  मीनारों  से  भी करके सीना चाक के देखा,

कदम-कदम चलता है राही दिल में रख हौसला मिलन का, 
मंज़िल धुँधला दिखा हमेशा सीध में जब भी नाक के देखा,

चलना बहुत ज़रूरी 'गुंजन' इतनी बात समझ में आई, 
हार-जीत के पैमाने पर ख़ुद को जब भी आँक के देखा, 
    ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'

©Shashi Bhushan Mishra #आस्तीन के सांप बहुत थे#
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