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Pragati Dutt

#निर्धनता का सुख!

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निर्धनता का सुख!
कितनी भली थी वो निर्धनता , जहाँ नहीं थी कोई  कुटिलता।
जबसे ये धन , पास में आया।
इसने सबको , दूर भगाया।
निर्धन थे तब ,कितने ठाट।
मिलजुल कर ,खाते थे भात।
ऐसे धन से ,भी क्या लाभ। 
तितर बितर, सारा परिवार।
जिसने भी इस ,धन को पाया।
उसने मन का चैन गँवाया ।
जगह जगह ताले ठुकवाते,

फिर भी सुख से , ना सो पाते।
निर्धन नमक से ,रोटी खाता।
सुख की नींद , वही ले पाता।
बनवाते शाही मकान ,
खोकर अपना ही ईमान।
इससे तो झोंपड़ी अच्छी,
जिसकी दुनियाँ  होती सच्ची।
मूर्ख छोड़ दे धन का लोभ ,
निर्धनता का भी सुख भोग।
धन के फेर में पड़ जायेगा,
तृप्त कभी ना हो पायेगा।
सारे जीवन भर रो रो कर ,
इसको पाते सब कुछ खोकर। 
निर्धन हो चाहे  सम्राठ,
जाना सबको खाली हाथ।
फिर क्यूँ सब बनते धनवान,
व्यर्थ दिखाते झूठी शान। 
बड़े बड़े साधू सन्यासी,
वो भी बस धन के अभिलाषी।
करते सारे भोग विलास,
निर्धनता को देते त्याग।
निर्धनता का ये गुणगान,
समझ ना पायेगा धनवान।
बन जायेगा गर धनवान,
पा ना पायेगा आराम।
इससे तो निर्धन बन जाऊँ,
सुख के दिन और रात बिताऊँ।
ईश्वर दे बस इतना ही धन,
जिससे कलुषित हो ना ये मन। #निर्धनता का सुख!

सुसि ग़ाफ़िल

गैर ज़रूरी होने लगी हो तुम अब निर्धनता का बोझ मेरे कन्धों पर आ रहा है।

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गैर ज़रूरी 
होने लगी हो 
तुम अब 
निर्धनता का बोझ 
मेरे कन्धों पर आ रहा है। गैर ज़रूरी 
होने लगी हो 
तुम अब 
निर्धनता का बोझ 
मेरे कन्धों पर आ रहा है।

KRanti Yuva

#Love दर्द से भरे जज़्बात भी सूख जाते हैं हदस के ......😷😷😷😷😬😬😬😬😬😨😨😔😔😔😔😔😔😔 मजबूर सूख जाने को हमेशा हमेशा के लिए ..... जब गरीबों की गरीबी और अ

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कोई भूख से मर रहा हैं ,कोई तड़प के मर रहा , 
कोई झगड़ के ,कोई इश्क़ की फनाई में ,कोई जलन में मर रहा 
और कोई जी जी कर भी हर पल जिन्दा बहके कदमो के पछतावो में मर रहा 
कोई शायरी करके कविता में मर रहा 
कोई प्रियतम से वियोग की अमिट छाप में मर रहा लेकिन इन सबके बाद भी मरने का कहर कुछ यू बरपा कि पूरी दुनिया एक साथ महामारी से मरने के कगार पे खड़ी कुछ दहशत में कुछ नहीं बहोत मजबूर हैं वास्तविक रूप में मरने को गरीबी की लाचारी में एक और फैली भूख की महामारी में यही था तड़प के दर्दनाक सबसे भयावह मरना -क्रांति युवा #Love दर्द से भरे जज़्बात भी सूख जाते हैं हदस के ......😷😷😷😷😬😬😬😬😬😨😨😔😔😔😔😔😔😔
मजबूर सूख जाने को हमेशा हमेशा के लिए  .....
जब गरीबों की गरीबी और अ

kumar suraj dwivedi

कोई रूप नहीं बदलेगा सत्ता के सिंहासन का कोई अर्थ नहीं निकलेगा बार-बार निर्वाचन का एक बड़ा ख़ूनी परिवर्तन होना बहुत जरुरी है अब तो भूखे पे #Poetry

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कोई रूप नहीं बदलेगा सत्ता के सिंहासन का
 कोई अर्थ नहीं निकलेगा बार-बार निर्वाचन का
 एक बड़ा ख़ूनी परिवर्तन होना बहुत जरुरी है
 अब तो भूखे पे

DANVEER SINGH 'DUNIYA'

निर्धनता #कविता

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मैं पहला व्यक्ति हूं, 
जिसने नाम के पीछे 
गांव का नाम जोड़ा ।
गरीबों के लिये अपना 
खाना पीना तक छोड़ा। 1

इस जहां में कौन किसकी 
परवाह करता है, जनाब
मैंने तो इनके लिए अपना 
ऐश आराम तक छोड़ा।2

मैंने देखा है स्टैंड और स्टेशनों पर 
प्यास और भूख से तड़पते मासूम से 
नैत्र जल भरे चेहरों को। 
मैं व्याकुल सा हो गया था 
जैसे देखा झूठे गिलास पत्तरो को 
ऐसे पी चाट रहे थे वे 
जैसे 56 प्रकार के व्यंजनों को 
अरदास कर रहे थे भगवान से 
हाथ फैला कर मांग रहे थे इंसान से 
कुछ न मिला हाथ तक जोड़ा।3 

फिर देखा उन सफेद मच्छरों को 
उन बेबस और लाचारो के ऊपर चिल्लाते थे 
धमकी देकर भी खून चूस ले जाते थे 
गरीब लोगों को भूख से भिखारी बना दिया 
जब से इन मच्छरों पर दवा छिड़कना बंद किया 
इन्होंने प्लेट क्या गिराई हमारी 
हमें प्लेट से गिरा दिया 
कहते थे साथ लेकर चलेंगे 
ऐसे ले गए अधभर तक छोड़ा।4 

मैंने फिर कहा एक बार पढ़ कर देखो 
वहां खाना भी मिलेगा एक बार सोचो 
जिंदगी बदल जाएगी ऐसा काम करो 
पहले मेहनत कर लो फिर आराम करो 
जितने पहले सोच में जीरो लग रही हैं 
जो इतनी मेहनत के बाद लग जाएंगी
मेहनत करने से सदा खुशियां बहार आएंगी 
सागर का नाम लेना आ जाऊंगा वही 
तुम्हें छोड़ कर जाऊंगा ना कहीं 
तुम्हारे लिए काम काज तक छोड़ा।5

मैंने सोचा शिक्षा का एक संस्थान खोलू 
उसे प्यार से सागर शक्ति शिक्षा सेंटर बोलूं 
नि:शुल्क हो फीस उसमें 
मेहनत लगी हो प्रत्येक की जिसमें 
गुरु की प्रेरणा से भविष्य उज्जवल होगा 
उसमें बच्चा प्रत्येक जाति धर्म मजहब का होगा 
दया मानवता सामाजिकता कण कण में बहती है 
जब ही तो मेरी शक्ति हर जुल्म को सह लेती है 
अब बताओ मैंने कहां तक मोड़ा।6 निर्धनता

Parasram Arora

धन. निर्धनता #Happiness #विचार

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जिसे तुमने  धन समझा है
वह धन नही है
वह तो भीतर  की
निर्धनता को भुलाने का उपाय है

ओशो

©Parasram Arora धन. निर्धनता 

#Happiness

Shreya Mishra

#संपन्नता और निर्धनता की तृष्णा

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संपन्नता और निर्धनता की तृष्णा

संपन्नता व्यक्ति को और संपन्न बनने की लालसा की ओर अग्रेसर करती हैं,और निर्धनता व्यक्ति को एक अच्छे दिन के आस की लिप्सा की ओर...

^श्रेया मिश्रा_

 #संपन्नता और निर्धनता की तृष्णा

Pankaj

मुफलिसी =निर्धनता (पर यहां प्रेम की निर्धनता) #haq #Love #waiting #Friend for ever #विचार

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गर मुफलिसी में, दिन गुजारने थे
तो पास, आये ही क्यूं
जब तन्हा ही छोड़ जाना था
 तो हमको बेइंतहा, चाहे ही क्यूं
चलो मानते हैं,किस्मत में,
हमारा मिलना, लिखा ही न था
पर दोस्त तो रह सकते थे
क्या तुम पे हमारा, 
इतना भी हक ना था मुफलिसी =निर्धनता (पर यहां प्रेम की निर्धनता)
#Nojoto
#haq
#love
#waiting
#friend for ever

kavi manish mann


अच्छे दिन की आस लगाकर बैठे हैं।
बेकारी में  फिर  झुंझला कर बैठे हैं।

वही प्रशंसक जिन्हे मिला कुछ सत्ता से,
जो वंचित हैं गाल फुलाकर बैठे हैं।

नेता जी का हर  बंजर पर कब्जा है,
दीन दुःखी का कौन भला कर बैठे हैं।

सत्ता के अभिमान में इतना चूर हुए,
सही गलत हर बात भुलाकर बैठे हैं।

खून चूसती महंगाई में क्लांत कृषक,
अस्थि  पंजर  देह  जला कर बैठे हैं। #मौर्यवंशी_मनीष_मन #गीतिका_मन  #ग़ज़ल_मन #सत्ता #किसान #निर्धनता

Nafasmeer-नफ़स'मीर

मुफलिसी - गरीबी, निर्धनता #Shayari#gazal#Poetry#muflisi

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 मुफलिसी - गरीबी, निर्धनता
#shayari#gazal#poetry#muflisi
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