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Bharat Bhushan pathak
मकड़ जाल जीवन सखे, कितने इसमें जाल। फँस-फँस इसमें हो रहा,मनुज यहाँ बदहाल।। मनुज यहाँ बदहाल,ढूँढ रहा यहाँ रस्ता। मुश्किल ढोना हुआ,संघर्षी अभी बस्ता।। शिक्षक जीवन वही,सब हल करता सवाल। निकलें हम खुद यहाँ,गहरा भले मकड़ जाल।। ©Bharat Bhushan pathak poetry lovers poetry in hindi hindi poetry on life hindi poetry poetry मकड़ जाल जीवन सखे,इसमें कितने जाल। फँस-फँस इसमें हो रहा,मनुज यहाँ बद
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read moreF M POETRY
Unsplash मुद्दतें हो गयीं जब हाथ मिलाया तुझसे.. अब भी आती है मेरे हाथ से खुश्बू तेरी.. यूसुफ़ आर खान... ©F M POETRY #मुद्दतें हो गयीं...
#मुद्दतें हो गयीं...
read morePRIYA SINHA
White 🫂"बस तुम हो" 🫂 जीवन के गीत में ; हार या जीत में ; बस तुम हो ! सूनेपन की भीत में ; प्रहार या प्रीत में ; बस तुम हो ! समर्पण के रीत में ; बेकार या कृत में ; बस तुम हो ! प्रिया सिन्हा 𝟑𝟎. नवंबर 𝟐𝟎𝟐𝟒. (शनिवार). ©PRIYA SINHA #बस #तुम #हो
Vinod Mishra
Vinod Mishra
नवनीत ठाकुर
पहाड़ों से निकली एक धारा खास, सपनों से भरी, एक नई तलाश। पत्थरों से टकराई, राह बनाई, हर दर्द को हँसी में समेट लाई।। हर ठोकर को उसने गले लगाया, रुकना उसकी किस्मत में नहीं था। दर्द से उसने अपना राग बनाया, सच में, वो कभी थमा नहीं था।। जब सागर से मिली, वो हर्षित हुई, उसकी लहरों में हर पीड़ा समा गई।। सागर ने उसे अपनी बाहों में समेटा, उसकी हर बूंद में जीवन का सन्देश देखा। नदी ने कहा, "मैं खुद को समर्पित करती हूँ, पर हर बूंद से तुझे अमर कर देती हूँ।। फ़ना होकर भी, वो अमर हो गई, सागर के आँचल में हर याद बस गई। ©नवनीत ठाकुर फना हो कर भी अमर हो गए
फना हो कर भी अमर हो गए
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