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राजेश गुप्ता'बादल'
टकटकी लगा देखते, खिचड़ी में पकवान। स्वांसे जैसे रुक गई,कौन बने धनवान।। ई वी एम ढाल बनी,जब जाएंगे हार। आरोपों की बाड़ है, संविधान बीमार।। टकटकी लगा देखते, खिचड़ी में पकवान। स्वांसे जैसे रुक गई,कौन बने धनवान।। ई वी एम ढाल बनी,जब जाएंगे हार। आरोपों की बाड़ है, संविधान बीमार।।
Kulbhushan Arora
मन में अदालत लगी है आरोपों की झड़ी है.... मन में अदालत लगी है, आरोपों की झड़ी है... आरोप बेवजह नहीं हैं, मुझमें ढेरों ढेर कमी है, झूठी मुस्कानों के पीछे, अश्कों की ही नमी है, सबके द
Rabiya Nizam
एक अधूरा ख्वाब (In Caption) उम्र आठ की थी उसकी पर आदतें चार की।। गुस्सा होने पर डरती थी उसे ख्वाहिश थी बस प्यार की।। घरौंदा बनाया था उसने उसे अपना गुड्डा ब्याहना था।।
A NEW DAWN
एक अधूरा ख्वाब (In Caption) उम्र आठ की थी उसकी पर आदतें चार की।। गुस्सा होने पर डरती थी उसे ख्वाहिश थी बस प्यार की।। घरौंदा बनाया था उसने उसे अपना गुड्डा ब्याहना था।।
Satyendra Kumar
लोकनीति:- कुछ बाकी रखता हूं कुछ लिख देता हूं... राजनीति के पकौड़े में_ पानी में ही तल देता हूं, सरकार चाहे जिसकी हो_ जनता की होगी नहीं, बेईमानी के इस बाज़ार को में _ईमानदारी से कह देता हूं, कुछ बाकी रखता हूं कुछ लिख देता हूं... वहीं पुराने वादो की लिस्ट उठा कर लायेंगे, कुछ नए से अंदाज़ में फिर तुमको दोहराएंगे, आज हाथ जोड़े खड़े है जो _में एक तस्वीर रख लेता हूं, शहर में कल से होंगे ना_ सच में थोड़ा कह देता हूं, कुछ बाकी रखता हूं कुछ में लिख देता हूं... लोकनीति का झांसा देकर_ सिर्फ राजनीति अब होती हैं, सत्ता में आने के बाद सरकारें सब सोती है, अब तक देखा है सरकारों को_ चोर - चोर खुद ही खेला करती हैं, इनके बड़े बड़े घोटालों को_जनता ही झेला करती हैं, कुछ कमी तो हममें भी है जो में कह देता हूं, कुछ बाकी रखता हूं कुछ में लिख देता हूं.... उस संसद के मंदिर में भी मतलब की बात होती हैं, विकास को छोड़कर_ सिर्फ आरोपों की बरसात होती हैं, देख लिया हमने अब तक लालच रिश्वत लेकर भी_ अब भी ना समझे हम_तो कुछ भी ना पाएंगे, फिर से जाकर झूठे वादो पर_ सिर्फ तालिया ही बजाएंगे, सोचो सरकारें तुमको क्या देगी_ये देश तुमसे चलता है, ये मेरे हिंदुस्तान के लोगो_ये देश तुमसे बनता है, जिम्मेदारी ले लो अब तुम देश को बचाने की, धर्म जाति को छोड़कर_ इसे आगे बढ़ाने की, गुस्ताख़ी हो तो क्षमा करना _हाथ जोड़ कह देता हूं, कुछ सच में लिख देता हूं_ कुछ बाकी रहने देता हूं,... कुछ बाकी रखता हूं कुछ में लिख देता हूं..... Satyendra Kumar please read caption लोकनीति:- कुछ बाकी रखता हूं कुछ लिख देता हूं... राजनीति के पकौड़े में_ पानी में ही तल देता हूं, सरकार चाहे जिसकी हो_ जनत
शुभी
लगता है आई फिर चुनाव की घड़ी है (check caption) सड़कों के गड्ढे सरकार भरने चली है, विश्वास नही होता चली ये जादू की छड़ी है. सुना है चोरों की महफ़िल जमी है, लगता है आई फिर चुनाव की घड़ी है
I love my family
गलत आरोपों का मारा हूं मै टूटा बिखरा हुआ सितारा हूं मै मेरी मेहनत के सामने कामयाबी भी घुटने टेक देगी जीत मुझे ठुकरा दे इतना बेसहारा तो नहीं हूं मैं 🤭 #NojotoQuote आरोपों को मारा हूं मै
Rakesh frnds4ever
उलझन इस बात की है कि हमें .......उलझन किस बात की है अपनों से दूरी की या फिर किसी मज़बूरी की खुद की नाकामी की या किसी परेशानी की दुनिया के झमेले की या मन के अकेले की पैसों की तंगी की या जीवन कि बेढंगी की रिश्तों में कटाक्ष की या फिर किसी बकवास की दुनिया की वीरानी की या फिर किसी तनहाई की अपनी व्यर्थता की या ज़िन्दगी की विवशता की खुद के भोलेपन की या फिर लोगो की चालाकी की अपनी खुद की खुशी की या दूसरों की चिंता की खुद की संतुष्टि की या फिर दूसरों से ईर्ष्या की खुद की भलाई की या फिर दूसरों की बुराई की धरती के संरक्षण की या फिर इसके विनाश की मनुष्य की कष्टता की या धरती मां की नष्टता की मानव की मानवता की या फिर इसकी हैवानियत की बच्चो के अपहरण की या बच्चियों के अंग हरण की प्यार की या नफरत की ,,जीने की या मरने कि,,, विश्वाश की या धोखे की,, प्रयास की या मौके की बदले की या परोपकार की,,, अहसान की या उपकार की ,,,,,,ओर ना जाने किन किन सुलझनों या उलझनों या उनके समस्याओं या समाधानों या उनके बीच की स्थिति या अहसासों की हमें उलझन है,,, की हम किस बात की उलझन है..==........... rkysky frnds4ever #उलझन इस बात की है कि,,, हमें ...... उलझन किस बात की है अपनों से दूरी की या फिर किसी #मज़बूरी की खुद की नाकामी की या किसी परेशानी की #दुनि
आलोक कुमार
बस यूँ ही चलते-चलते ......... जरा सोचिए कि आजकल हमलोग खुद को बेहतर बनाने के लिए कौन-कौन से गलत/अभद्र नुस्खें अपनाते जा रहे हैं. ना ही उस नुस्खें के चरित्र, प्रकरण एवं उसके कारण दूसरे मनुष्य, आसपास, समाज, देश व आगामी पीढ़ी पर असर का ख्याल रख रहें हैं, न ही ख़यालों को किसी को समझने का मौक़ा दे रहे हैं. बस अपने ही धुन में उल्टी सीढ़ी के माध्यम से अपने आप को आगे समझते हुए सचमुच में बारम्बार नीचे ही चलते जा रहे है. तो जरा एक बार फिर सोचिए कि उल्टी सीढ़ी उतरने और सीधी सीढ़ी चढ़ने में क्रमशः कितनी ऊर्जा, शक्ति और समय लगती होगी. यह भी पता चलता है कि आज की पीढ़ी की ऊर्जा और शक्ति का किस दिशा में उपयोग हो रहा है और शायद यही कारण है कि आज का "गंगु तेली" तो "राजा भोज" बन गया और "राजा भोज", "गंगु तेली" बन कर सब गुणों से सक्षम रहने के बावज़ूद नारकीय जीवन जीने को मजबूर है. यही हकीकत है हम अधिकतर भारतवासियों का...... आगे का पता नहीं क्या होगा. शायद भगवान को एक नए रूप में अवतरित होना होगा. आज की पीढ़ी की सच्चरित्र की हक़ीक़त