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Brajesh kumar
रात थी काली घनेरी मेघ जल बरसा रहे थे। किन्तु नभ में देवतागण गीत मीठे गा रहे थे। जन्म से है मुक्ति का पर्याय जीवनवृत्त जिनका मर्म के ज्ञानी कन्हैया जन्म लेने जा रहे थे।। Happy Janamstmi to all.. full in caption 💅🙏रात थी काली घनेरी मेघ जल बरसा रहे थे। किन्तु नभ में देवतागण गीत मीठे गा रहे थे। जन्म से है मुक्ति का पर्याय जीवनवृत्त जिनका मर्म के ज्ञानी
WORDS OF VIVEK KUMAR SHUKLA
चल ना... वापस घूम आते हैं यादों की गलियों को ..... ढूंढ़ते हैं... दुबक कर बैठे, फ़ूलों के गोद में तितलियों को....., चुनते हैं... जिनका नाम नहीं जानते, क्यारी से, पसंदीदा उन कलियों को। चल ना... वापस घूम आते हैं यादों की गलियों को ..... चखते हैं... बिन छौंके -बघारे , माँ के हाथों के बने सुगंधित दलियों को....., खाते हैं... जले हाथों संग बने, तवें पर ही जले, फूले उन जीवनवृत्तियों को। चल ना... वापस घूम आते हैं यादों की गलियों को ..... झूलते हैं... झूले से लटके, बरगद के मोटी तनों से झूले सोरियों को....., कूदते हैं... घुटनों के समानांतर, जमीन पर मिले, आमों के टहनियों को। चल ना... वापस घूम आते हैं यादों की गलियों को ..... घूमते हैं... खलिहानों से आते, गाँव की ओर, सांपीया घुमावदार पगडंडियों को....., खेलते हैं... वही पुराने खेलों को और, मिलते हैं, बचपन के उन सारे साथियों को। चल ना... वापस घूम आते हैं यादों की गलियों को ..... भरते हैं... औंधे मुह रखे, पनघट से, खाली हुए सुराहीयों को....., सुनते हैं... जीवन को जीने, कि कला सिखाते, दादी-नानी की कहानियों को। चल ना... वापस घूम आते हैं यादों की गलियों को ..... चल ना... वापस घूम आते हैं यादों की गलियों को ..... ✍️विवेक कुमार शुक्ला ✍️ चल ना... वापस घूम आते हैं यादों की गलियों को ..... ढूंढ़ते हैं... दुबक कर बैठे, फ़ूलों के गोद में तितलियों को....., चुनते हैं... जिनका ना