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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

मनहरण घनाक्षरी :- फेसबुक व्हाट्सएप , छोड़ भी दो अब आप , घर माता-पिता अब , सेवा कर लीजिए । दूर हो न रिश्ते नाते , कर लो उनसे बातें , छोड़ के मो #कविता

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मनहरण घनाक्षरी :-
फेसबुक व्हाट्सएप , छोड़ भी दो अब आप ,
घर माता-पिता अब , सेवा कर लीजिए ।
दूर हो न रिश्ते नाते , कर लो उनसे बातें ,
छोड़ के मोबाइल को , समय उन्हें दीजिए ।
व्यर्थ गँवाया समय ,  देख बोलता तनय ,
सोचिए पुनः फिर से ,शांत मन कीजिए ।
छोड नही घर द्वार , तेरा अच्छा  परिवार,
मान मेरी बात कर , नीर अब पीजिए ।।

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कर गणेश वंदना , पूर्ण हो फिर कामना ,
भक्त का रखते वही , सदा नित ध्यान हैं ।
माँ गौरा के लाल वह , भक्त पे निहाल वह ,
देख भक्त की श्रद्धा को , देते वरदान हैं ।
दूब ही अति प्यारी है , मूसक की सवारी है ,
भक्तों के कष्टों का वह , देते समाधान हैं ।
देवों में पूज्य प्रथम , जानते हैं अब हम,
सारे जग में उनकी , करूणा महान है ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR मनहरण घनाक्षरी :-
फेसबुक व्हाट्सएप , छोड़ भी दो अब आप ,
घर माता-पिता अब , सेवा कर लीजिए ।
दूर हो न रिश्ते नाते , कर लो उनसे बातें ,
छोड़ के मो

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

मुक्तक :- करके सुख का त्याग , बना देखो वह सैनिक । थाम तिरंगा हाथ , नहीं वह होता पैनिक । इस जीवन में प्यार , नही होगा दोबारा । लेता है यह कौ #कविता

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मुक्तक :-

करके सुख का त्याग , बना देखो वह सैनिक ।
थाम तिरंगा हाथ , नहीं वह होता पैनिक ।
इस जीवन में प्यार , नही होगा दोबारा ।
लेता है यह कौल , देश का सैनिक दैनिक ।।

ये भी हैं इंसान , हृदय इनके भी होते ।
यह मत सोचों आप , चैन से सैनिक सोते ।
कुछ मत पूछो याद ,उन्हें जब घर की आती-
किसी किनारे बैठ , सिसक कर वह भी रोते ।।

लिए तिरंगा हाथ ,  बढ़े सैनिक जब आगे ।
बढ़े देश की शान , खौफ़ से दुश्मन भागे ।
ऐसे वीर जवान , देश में मेरे अपने-
सुनकर दुश्मन आज, रात भर अपना जागे ।।

मुझ सैनिक के पास , बहन की राखी आयी ।
देख उसे अब आज , याद वैशाखी आयी ।
बहनों का ही प्रेम , जगत में सबसे ऊपर -
यही दिलाने याद , घरों की पाती आयी ।।

अब भी है उम्मीद , बहन राखी का तेरी ।
आ जाये जब याद , भेज दे राखी मेरी ।
तेरा भैय्या आज , दूर सरहद पर बैठा-
क्या है तू मजबूर , हुई जो इतनी देरी ।।

जिनको दिया उधार , कहीं न नजर वो आते ।
जग में ऐसे लोग , तोड़ देते हैं नाते ।
मानो मेरी बात , दूर अब रहना इनसे-
ये है काले नाग , समय पाकर डस जाते ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR मुक्तक :-

करके सुख का त्याग , बना देखो वह सैनिक ।
थाम तिरंगा हाथ , नहीं वह होता पैनिक ।
इस जीवन में प्यार , नही होगा दोबारा ।
लेता है यह कौ

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

गीत :- उलझ रहा है निशिदिन मानव , जिनके नित्य विचारो से । भाषण देते बन अभिनेता , सत्ता के गलियारों से ।। उलझ रहा है निशिदिन मानव .... छोड़ सभ #कविता

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White गीत :-
उलझ रहा है निशिदिन मानव , जिनके नित्य विचारो से ।
भाषण देते बन अभिनेता , सत्ता के गलियारों से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव ....

छोड़ सभी वह रिश्ते-नाते, बैठे ऊँचे आसन पे ।
पहचाने इंसान नही जो , भाषण देते जीवन पे ।।
जिसे खेलना पाप कहा था , मातु-पिता औ गुरुवर ने ।
उसी खेल का मिले प्रलोभन , सुन लो अब सरकारों से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव .....

मातु-पिता बिन कैसा जीवन , हमने पढ़ा किताबों में ।
ये बतलाते आकर हमको , दौलत नही हिसाबों में ।।
इनके जैसा कभी न बनना , ये तो हैं खुद्दारों में ।
दया धर्म की टाँगें टूटी , इन सबके व्यापारो से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव....

नंगा नाच भरे आँगन में, इनके देख घरानों में ।
बेटी बेटा झूम रहे हैं , जाने किस-किस बाहों में ।।
अपने घर को आप सँभाले, आया आज विचारों में ।
झाँक नही तू इनके घर को , पतन हुए संस्कारो से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव.....

दौड़ रहे क्यों भूखे बच्चे , तेरे इन दरबारों में ।
क्या इनको तू मान लिया है , निर्गुण औ लाचारों में ।।
बनकर दास रहे ये तेरा , करे भोग भण्डारों में ।
ऐसी सोच झलक कर आयी , जग के ठेकेदारों से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव ...

बदलो मिलकर चाल सभी यह , प्रकृति बदलने वाली है ।
भूखे प्यासे लोगो की अब , आह निकलने वाली है ।
हमने वह आवाज सुनी है , चीखों और पुकारों से ।
आने वाले हैं हक लेने , देखो वह हथियारों से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव ....

उलझ रहा है निशिदिन मानव , जिनके नित्य विचारो से ।
भाषण देते वे अभिनेता , सत्ता के गलियारों से ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत :-
उलझ रहा है निशिदिन मानव , जिनके नित्य विचारो से ।
भाषण देते बन अभिनेता , सत्ता के गलियारों से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव ....

छोड़ सभ
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