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Chanchal Jaiswal
ना जाने कितनी शालाएँ ना जाने कितने सभागार जाग्रत वाणी थी तूर्य हुई हुई कभी तूणीर बाण हुआ कभी गाण्डीव प्रखर पाञ्चजन्य का नाद शिखर। पुलकित मेधा सौरभ भर-भर फड़कता शौर्य साहसी भुजदल। केशर सा जगमग भाल भानु उत्तुंग हिमालय सा सीना हरियाला हृदय भावभीना कण्ठ-कण्ठ जयघोष विपुल स्पंदन-स्पंदन राष्ट्रवन्दन। गौरवशाली इतिहास प्रवर प्रेरित होते जनगण सुनकर नन्हें-नन्हें से बाल नवल विकसेगा इनमें भारत कल। (शेष कविता caption में...) ना जाने कितनी शालाएँ ना जाने कितने सभागार जाग्रत वाणी वो तूर्य हुई हुई कभी तूणीर बाण हुआ कभी गाण्डीव प्रखर पाञ्चजन्य का नाद शिखर। पुलकित मे
Purohit Nishant
!! जन्मदिन मुबारक !! ©Purohit Nishant कलम को समर्पित फनकारों की याद में... पद्मभूषण सुमित्रानंदन पंत जी हिंदी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक इस युग को
Savita Jha
रचना अनुशीर्षक में पढ़े I 👇👇👇👇👇👇👇 आधुनिक युग में नारी को, मिलने लगा है अब अधिकार, मध्यकाल में हुआ था जो, अब कम होने लगा वो अत्याचार। संविधान में नियम बनाकर, दिया उसे सुगठित
ashutosh anjan
लेखन का महत्व 👇 कैप्शन में पढ़े। ---------------------------------------------------------------- लेखन के महत्व को जानने से पहले हमें ये समझना पड़ेगा कि लेखन क्या है? अपनी भा
savita Jha
रचना अनुशीर्षक में पढ़े I 👇👇👇👇👇👇👇 आधुनिक युग में नारी को, मिलने लगा है अब अधिकार, मध्यकाल में हुआ था जो, अब कम होने लगा वो अत्याचार। संविधान में नियम बनाकर, दिया उसे सुगठित
Anil Siwach