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जगदीश्वर ' तश्नगी'
शशि- चांदनी -------- शशि किरणों में, मधुर गीत की राग,जैसे निर्झरिणी में नीर का अनुराग, अमा में चंद्र का विधान ,कृष्ण पक्ष में कला महान स्वबस बस कर बसु प्रेम जताए ,सुरपुर सी दुनिया बसाए। दुग्ध धवल सा रूप क्षण पाए ,रेशमी विभा में को कोई आए। रका में रजनीश मयुंखे , रजनी वासर जानाती। अवनि पर आकर रजत सी ,राज कन को आभा बनाती। अंबु नवीन सी वह धनी ,सभ्य जीवन जैसे सनी। रैन में चंद्र चांदनी,उजाला की रानी बनी। व्योम में मलयाज सस्मित हुआ , शशि चांदनी में सुधा भरा। चांदनी में जो अभिषेक किया ,सकल रूप शशि अमृत पिया। चारों तरफ़ आभा की लाली ,कृष्ण वस्तु पर लगे निराली। वह क्षणदा की दीप्ति साधनी ,बनी शशि की चांदनी। - जगदीश्वर कुशवाहा उत्कृष्ट भाषा शैली में "शशि- चांदनी" छायावाद की रचना की तरह with Ritisha Jain