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दिनेश
भाग दौड़ भी जरूरी है साहब पर अपनी सेहत और अपना घर भी जरूरी है, इसके बिना मेरे दोस्त सारी कायनात अधूरी है। इस कदर सारी उम्र भाग - दौड़ में बिताओगे , क्या खोया , क्या पाया इसका हिसाब कब लगाओगे ? ©दिनेश #sunrisesunset भाग-दौड़
Dev Rishi
ऋतु के बाद फलों का रूकना डालों का सड़ना है मोह दिखाना देय वस्तु पर आत्मघात करना है देते तरू इसलिए कि रेशो में मत कीट समायें रहे डालियां स्वस्थ और फिर नये नये फल आयें... ©Dev Rishi #रशमिरथी ,(भाग 4)
Harpinder Kaur
लेकिन वो मर्द नहीं नामर्द होता है...... जिसे माँ- बहन लगती है सिर्फ एक गाली बेहद भद्दी गाली चाहे फिर वो माँ- बहन अपनी हो या दूजे की नामर्द के लिए सिर्फ एक गाली है क्योंकि गाली में छुपाता है वो अपनी कमज़ोरी.......................... ! ©Harpinder Kaur # भाग-3....... ✍️
Harpinder Kaur
लेकिन पुरुष की सोच में वो हिस्सा केवल एक वस्तु है जिसे प्रयोग करता है वो गाली रूप में.... अन्य उसके द्वारा दी गई माँ - बहन की गालियाँ उसे माँ- बहन, औरत का अपमान नहीं लगती उसे लगती है अपने मर्द होने की निशानी जिसे देने के बाद वो फूलाता है अपनी छाती यूँ जैसे कोई महान कार्य को किया गया हो ©Harpinder Kaur # भाग-2...... ✍️
Harpinder Kaur
गाली पुरुष को लगता है कि गाली उसके पुरूष होने का एक पहचान पत्र है उसकी मर्दानगी है एक औरत के नाम पर दी गाली में वो अपना पौरूषार्थ समझता है माँ - बहन की गालियों को वो अपने गुस्से का सुकून समझता है वो देता है......... औरत के उस हिस्से को गाली जिस हिस्से से वो दुनिया में आता है और अपना वंश बढ़ाता है ©Harpinder Kaur # भाग -1 ..... ✍️
Anjali Jain
Village Life श्रीमद रामायण में अभी सीता-हरण प्रसंग चल रहा है स्वर्ण मृग को पाने व लाने के लिए राम व सीता का वार्तालाप, तर्क -वितर्क इस तरह गूंथा गया है कि किसी का भी विचार या तर्क अनुचित या अनावश्यक नहीं लगा। अंततः राम का मृग के पीछे चले जाना, मारीच का बीच -बीच में "लक्ष्मण, सहायता करो" की पुकार के बाद,सीता का राम की चिंता में लक्ष्मण से संवाद, वाद विवाद,इसमें भी कोई असंगत बात नहीं। सीता पहले भी राम को भेजने के लिए आतुर, अब लक्ष्मण को भेजने के लिए व्याकुल व आतुर! हम दर्शकों के मन में भी तरह तरह-तरह के विचार व विकल्प उठते रहते हैं। राम को जब मृग की माया का पता चला तो वो उसे छोड़कर लौट क्यों न पड़े? ©Anjali Jain #villagelife 24.03.24 भाग 01
Zinii Khan
वो दूर होकर भी कभी ज़हन से उतरा ही नही।। फासले बहुत थे दर्मियां पर दूर कभी हम हुए ही नहीं।। जब कभी भी ख़ुद को तन्हा अकेला पाया मैंने।। एक सिवाए उसके दूसरा कोई याद आया ही नहीं।।।। कोई दूसरा याद आया ही नहीं