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Stories related to असहयोग आंदोलन कब शुरू हुआ

Rk

सड़ा हुआ दिल

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White कही ताजी हवा मिले तो भर लूं अपनी सास
एक नाजुक दिल की टूट गई हे आश 
हम कभी उनके फरिश्ते थे 
आज उनके हमारे साथ कोई रिश्ता नहीं.
वेस्टर्न जमाना हे साहेब काम खत्म 
बात खत्म ।

©Rk सड़ा हुआ दिल

F M POETRY

#सफर ख़त्म हुआ न.....

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White सफर ख़त्म हुआ न मंज़िल मिली है..

मेरी जाँन तू इतनी संग दिल मिली है..



यूसुफ़ आर खान...

©F M POETRY #सफर ख़त्म हुआ न.....

# रात कुछ ऐसा हुआ"

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White रात कुछ ऐसा हुआ"

रात कुछ ऐसा हुआ "ज़िन्दगी में कि सुना 
तो था,मगर इस तरह होता है ये पता न था।

उसके छूते ही मेरे रोम रोम में सिहरन सी उठी,
आंखों से कैसे दिल में उतरता है कोई ये पता न था।

अनुज कुमार हेयय क्षेत्रिय

© # रात कुछ ऐसा हुआ"

# रात कुछ ऐसा हुआ"

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White  रात कुछ ऐसा हुआ"

रात कुछ ऐसा हुआ " ज़िन्दगी में कि सुना 
तो था, मगर इस तरह होता है ये पता न था।

उसके छूते ही मेरे रोम रोम में सिहरन सी उठी,
आंखों से कैसे दिल में उतरता है कोई ये पता न था।

अनुज कुमार हेयय क्षत्रिय

© # रात कुछ ऐसा हुआ"

रिपुदमन झा 'पिनाकी'

#कब

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White ज़िन्दगी  पूछती  है  ज़िन्दगी  जियोगे  कब।
स्वाद इस ज़िन्दगी की मौज का चखोगे कब।
ऊम्र अपनी बिता रहे हो फंँस के उलझन में -
आसमाँ  पर  उड़ानें सपनों की  भरोगे  कब।

आप खुद  से बताओ  यार अब  मिलोगे कब।
क़ैद कर रखा है खुद को जो तुम खुलोगे कब।
पालते हो  क्यूँ  दिल में  ग़म  उदास  रहते  हो-
रंग  जीवन में अपने खुशियों की  भरोगे  कब।

जी रहे हो घुटन में खुल के साँस लोगे कब।
दुःख के दुश्मन को हौसलों से मात दोगे कब।
कुछ  नहीं  मिलता  है औरों  के लिए जीने से-
हो चुके  सब  के  बहुत अपने बता  होगे कब।

रिपुदमन झा 'पिनाकी' 
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©रिपुदमन झा 'पिनाकी' #कब

Parasram Arora

एक अरसा हुआ

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green-leaves एक अरसा हुआ
 उनसे मुलाक़ात हुये
 
आज अचानक वे 

सामने हैँ 
लेकिन आवाज़ मेरी 
थरथराई हैँ 
और आँख भी भर आई हैँ

©Parasram Arora एक अरसा हुआ

Shashi Bhushan Mishra

#'गुंजन' हृदय मयूर हुआ#

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a-person-standing-on-a-beach-at-sunset आदत  से   मज़बूर  हुआ,
गिरा तो  चकनाचूर  हुआ,

प्रेम की संकरी गलियों में,
ख़ुद से  कितना  दूर हुआ,

गफ़लत में  फुंसी  समझा,
बढ़ा  तो फ़िर नासूर हुआ,

जिस घर में था अंधियारा,
जला  दीप   पुरनूर  हुआ,

चढ़ा नशा जब भक्ति का,
आठों  याम  सुरूर  हुआ,

मंज़िल मिली मुसाफ़िर से,
ग़म  दिल से क़ाफूर हुआ,

देख  घटाओं   की  शोखी,
'गुंजन' हृदय   मयूर  हुआ,
 -शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
        प्रयागराज उ०प्र०

©Shashi Bhushan Mishra #'गुंजन' हृदय मयूर हुआ#

कौशल ~

#Sad_Status रोता हुआ पुरुष

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White 

कभी जो कोई पुरुष
रोये तुम्हारे आगे
तो भर लेना बांहो में
और संभाल लेना उन्हें। 
क्योंकि... 
ये रोये है तो केवल माँ
के आगे... 
दुसरा उस स्त्री के आगे
जिस पर ये भरोसा था की
वो समझेगी। 
बिना कुछ सवाल किये उन्हें
थपकाते रहना... 
और आंचल से पूंछना 
उनके अश्रु
ये जो बह रहा है वो 
लाचारी नही... 
ये तो दर्द है
सफलता असफलता का, 
तानों का, अकेलेपन का, 
जोर से रोने का,
कई बार...बिखरने का
और अंततः वो रोना चाहते है
दर्द को कहना चाहते है
कि  दर्द हुआ है सीने में। 
जो छुपाए रखा फिजूल में
समाज के भय से
कोई ये न कहे की मर्द को 
दर्द नही होता । 
शायद! ये परिभाषा उसे
कभी ठीक नहीं लगी
क्योंकि वो पत्थर नहीं है
जो महसूस न हो उसे
दर्द की बेहद!!! 
कौशल्या मौसलपुरी जोधपुर

©कौशल ~ #Sad_Status रोता हुआ पुरुष

Parasram Arora

कब?

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Unsplash मेरी बिगड़ेल  चाहतो 
से मुझे राहत मिलेगी कब?

मेरे शरारती स्वार्थी तत्व 
आखिर कब समझ पायगे जीवन का यथार्थ?

मेरा मौन  चिल्लाना चाहता है युगो से 
आखिर उनकी आवाज़ मै सुन पाऊंगा कब?

©Parasram Arora कब?

Anil sahni

लास्ट में क्या हुआ

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