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Praveen Jain "पल्लव"

#election_2024 हरण वोटो का करता है

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White पल्लव की डायरी
चरित्र राजनीत का स्तरहीन
हरण वोटो का करता है
मशीनरी को बस में करके
हेरा फेरी मतदानो में करता है
जहर जातिवाद भाषा और धार्मिकता का
भरकर बीज पृथकता का बोता है
नही सरोकार मूल व्यवस्थाओ से
धनबल से चुनाव जीतता है
अपराधों से भरे पड़े है नेता
सत्ता की आड़ में चुनौती न्यायालय को देता है
लोकतंत्र बस नाटक बनकर रह गया
लूटतंत्र का बोल बाला चलता है
                                             प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव" #election_2024 हरण वोटो का करता है

दक्ष आर्यन

बड़ी ग़फ़लत मे है की तू ज़िंदा है तेरे सीने मे जो साँसे है वो चुनिंदा है तेरी साँसे क़र्ज़दार है इस वक़्त की साँसे छीनने और चुराने का इस वक़्त का

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White बड़ी ग़फ़लत मे है की तू ज़िंदा है 
तेरे सीने मे जो साँसे है वो चुनिंदा है 
तेरी साँसे क़र्ज़दार है इस वक़्त की
साँसे छीनने और चुराने का इस वक़्त का गोरखधंधा है
बड़ी ग़फ़लत मे है की तू ज़िंदा है 

जाने कब ये वक़्त छीन लेगा तुझसे ये साँसे तुम्हारी 
जाने कितना क़र्ज़ है तेरे सर पर
इतिहास गवाह है इस बात का 
चुकाया है ये क़र्ज़ सब ने ही मर कर
इसलिए तो मौत का भाव बड़ा मंदा है 
बड़ी ग़फ़लत मे है की तू ज़िंदा है 
तेरे सीने मे जो साँसे है वो चुनिंदा है

©दक्ष आर्यन बड़ी ग़फ़लत मे है की तू ज़िंदा है 
तेरे सीने मे जो साँसे है वो चुनिंदा है 
तेरी साँसे क़र्ज़दार है इस वक़्त की
साँसे छीनने और चुराने का इस वक़्त का

TARUN KUMAR VIMAL

#GoodMorning #भगवान नाम की कोई #व्यवस्था इस #संसार मे नहीं है. नहीं तो छल-कपट और बेईमाननो को कब का मार देती #tarun_kumar_vimal tarunkumarvi

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White भगवान नाम की कोई व्यवस्था इस संसार मे नहीं है. नहीं तो छल-कपट और बेईमानो को कब का मार देती.

©TARUN KUMAR VIMAL #GoodMorning #भगवान नाम की कोई #व्यवस्था इस #संसार मे नहीं है. नहीं तो छल-कपट और बेईमाननो को कब का मार देती
#tarun_kumar_vimal #tarunkumarvi

रिपुदमन झा 'पिनाकी'

#कब

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White ज़िन्दगी  पूछती  है  ज़िन्दगी  जियोगे  कब।
स्वाद इस ज़िन्दगी की मौज का चखोगे कब।
ऊम्र अपनी बिता रहे हो फंँस के उलझन में -
आसमाँ  पर  उड़ानें सपनों की  भरोगे  कब।

आप खुद  से बताओ  यार अब  मिलोगे कब।
क़ैद कर रखा है खुद को जो तुम खुलोगे कब।
पालते हो  क्यूँ  दिल में  ग़म  उदास  रहते  हो-
रंग  जीवन में अपने खुशियों की  भरोगे  कब।

जी रहे हो घुटन में खुल के साँस लोगे कब।
दुःख के दुश्मन को हौसलों से मात दोगे कब।
कुछ  नहीं  मिलता  है औरों  के लिए जीने से-
हो चुके  सब  के  बहुत अपने बता  होगे कब।

रिपुदमन झा 'पिनाकी' 
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©रिपुदमन झा 'पिनाकी' #कब

RAMLALIT NIRALA

ऐलियन का क्या है राज

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Munna kushwaha

रंगोली का मतलब क्या है

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हम जो करते है वो भगवान का किया धरा है 
और लोग बोलते है साइंस आगे है!

©Munna kushwaha रंगोली का मतलब क्या है

theABHAYSINGH_BIPIN

दुखों का घड़ा सिर पर रख कब तक घूमोगे, जज़्बातों से भरा है दिल तेरा, कब बोलोगे। खुद की बंदिशों में दम अब घुट रहा है मेरा, पड़ी ज़ंजीरों से ख़

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दुखों का घड़ा सिर पर रख कब तक घूमोगे,
जज़्बातों से भरा है दिल तेरा, कब बोलोगे।
खुद की बंदिशों में दम अब घुट रहा है मेरा,
पड़ी ज़ंजीरों से ख़ुद को कब तक बाँधोगे।

वक़्त के साथ बेहिसाब ग़लतियाँ की हैं तुमने,
सलाखों के पीछे ख़ुद को कब तक छुपाओगे?
जो कभी साथ छांव सा था, वह अब छूट गया,
आख़िर खुद से ये जंग कब तक लड़ोगे।

लोग माफ़ी देते हैं एक-दूसरे को अक्सर,
आख़िर तुम खुद को कब तक सताओगे।
रिहाई जुर्म से नहीं मिलती, यह तो मालूम है,
आख़िर ग़लतियों पर कब तक पछताओगे।

प्रकृति में सूखी डालें भी बहार में पनपती हैं,
खुद को सहलाने का वक़्त कब तक टालोगे।
वक्त हर नासूर बने ज़ख्मों को भी भरता है,
आख़िर ज़ख्मों को भरने से कब तक डरोगे।

©theABHAYSINGH_BIPIN दुखों का घड़ा सिर पर रख कब तक घूमोगे,
जज़्बातों से भरा है दिल तेरा, कब बोलोगे।
खुद की बंदिशों में दम अब घुट रहा है मेरा,
पड़ी ज़ंजीरों से ख़

theABHAYSINGH_BIPIN

#love_shayari वक़्त के तराजू पर कब तक तौलते, बुरे वक्त की आहट को कब तक टालते। एहसासों को रखकर हाशिये पर, प्यार से यूँ ही कब तक भागते। हर

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White वक़्त के तराजू पर कब तक तौलते,
बुरे वक्त की आहट को कब तक टालते।
एहसासों को रखकर हाशिये पर,
प्यार से यूँ ही कब तक भागते।

हर दर्द के पीछे कोई बात होती है,
हर खामोशी में एक आवाज़ होती है।
पलकों के साए से कब तक छिपोगे,
दिल की पुकार से कब तक बचोगे।

प्यार बुरा है, ये बहाना कब तक,
खुद से दूरी का फसाना कब तक।
वक्त की इस रेत पर नाम लिखो,
एक बार प्यार से अपनी राह चुनो।

©theABHAYSINGH_BIPIN #love_shayari 

वक़्त के तराजू पर कब तक तौलते,
बुरे वक्त की आहट को कब तक टालते।
एहसासों को रखकर हाशिये पर,
प्यार से यूँ ही कब तक भागते।

हर

Parasram Arora

कब?

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Unsplash मेरी बिगड़ेल  चाहतो 
से मुझे राहत मिलेगी कब?

मेरे शरारती स्वार्थी तत्व 
आखिर कब समझ पायगे जीवन का यथार्थ?

मेरा मौन  चिल्लाना चाहता है युगो से 
आखिर उनकी आवाज़ मै सुन पाऊंगा कब?

©Parasram Arora कब?

अनिल कसेर "उजाला"

वक़्त का होता नहीं ठिकाना है।

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