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Anant Nag Chandan
White बोझ उठाना शौक कहाँ है मजबूरी का सौदा है रहते-रहते स्टेशन पर लोग कुली हो जाते हैं। मुनव्वर राना ©Anant Nag Chandan बोझ उठाना शौक कहाँ है मजबूरी का सौदा है रहते-रहते स्टेशन पर लोग कुली हो जाते हैं। मुनव्वर राना
बोझ उठाना शौक कहाँ है मजबूरी का सौदा है रहते-रहते स्टेशन पर लोग कुली हो जाते हैं। मुनव्वर राना #Shayari
read morePankaj
White कि ओ प्यार करने लगे थे हमसे तो करना पड़ा मुझे ओ दूर जाने लगे थे हमसे तो बदलना पड़ा मुझे की उल्लू ही किया करते हैं एक तरफा प्यार अंधेरे से हम ओ परिंदा है सुबह होते ही संभाल लिया करते हैं ©Pankaj प्यार करने लगे थे हमसे
प्यार करने लगे थे हमसे #शायरी
read morePankaj Pahwa
White याद कर कर के मेरी हर एक बात वो भुला रहे थे, जाने वो कैसे मुझे यूं मिटा रहे थे, जलाने से पहले मेरा हर खत वो पढ़े जा रहे थे, जाने वो कैसे मुझे यूं मिटा रहे थे, तोड़ने से पहले मेरे तोहफों को वो सजा रहे थे, जाने वो कैसे मुझे यूं मिटा रहे थे, भूलने से पहले मेरा नाम वो रटे जा रहे थे, जाने वो कैसे मुझे यूं भुला रहे थे, मेरी हर चीज में तो वो अपनापन जता रहे थे, जाने वो कैसे मुझे यूं भुला रहे थे, ©Pankaj Pahwa #भुला रहे थे
Chandrawati Murlidhar Gaur Sharma
White आज़ मैंने एक बच्चे को बाहर जाते हुए और पीछे मुड़-मुड़ कर देखते हुए देखा, तो मुझे अपने बचपन की बात याद आई। मैंने सोचा, इसे साझा कर दूं, क्योंकि हो सकता है कि आपने भी ऐसा किया हो। जब हम बचपन में अंधेरे से डरते थे, और हमें रात को किसी काम से बाहर भेजा जाता था, या फिर किसी पड़ोसी के घर पर खेलते-खेलते देर हो जाती थी और अंधेरा छा जाने के कारण डर लगने लगता था, लेकिन घर भी तो जाना था। तो हम अपने ताऊजी, मां, काकी, या दादी से कहते थे कि "घर छोड़ कर आ जाओ।" और वे कहते, "हां, चलो छोड़ आते हैं।" जब घर का मोड़ आता तो वे कहते, "अब चल जा," लेकिन डर तो लग रहा होता था। तो हम कहते, "आप यहीं रुकना," और वे बोलते, "मैं यहीं हूँ, तेरा नाम बोलते रहूंगा।" जब तक वे हमारा नाम लेते रहते थे और जब तक हम घर नहीं पहुंच जाते थे, हमें यह विश्वास होता था कि वे हमारे साथ ही हैं, भले ही वे घर लौट चुके होते। लेकिन जब तक हमारा दरवाजा नहीं खुलता था, तब तक डर लगता था कि कोई हमें पीछे से पकड़ न ले। और जैसे ही दरवाज़ा खुलता, हम फटाफट घर के अंदर भाग जाते थे। फिर, जब घर के अंधेरे में चबूतरे से पानी लाने के लिए कहा जाता था, तो हम बच्चों में डर के कारण यह कहते, "नहीं, पहले तू जा, पहले तू जा।" एक-दूसरे को "डरपोक" भी कहते थे, लेकिन सभी डरते थे। पर जाना तो उसी को होता था, जिसे मम्मी-पापा कहते थे। वह डर के मारे कहता, "आप चलो मेरे साथ," और वे कहते, "नहीं, तुम जाओ, तुम तो मेरे बहादुर बच्चे हो। मैं तुम्हारा नाम पुकारूंगा।" और फिर जब वह पानी लेकर आता, तो वे कहते, "देखो, डर नहीं लगा न?" लेकिन सच कहूं तो डर जरूर लगता था। पर यही ट्रिक हम दूसरे पर आजमाते थे। आज देखो, हम और हमारे बच्चे क्या डरेंगे, वे तो डर को ही डरा देंगे! 😂 बातें बहुत ज्यादा हो गई हैं, कुछ को फालतू भी लग सकती हैं, लेकिन हमारे बचपन में हर घर में हर बच्चे के साथ यही होता था। अब आपकी प्रतिक्रिया देने की बारी है। क्या आपके साथ भी यही हुआ ChatGPT can make ©Chandrawati Murlidhar Gaur Sharma कैप्शन में पढ़े 🤳 आज़ मैंने एक बच्चे को बाहर जाते हुए और पीछे मुड़-मुड़ कर देखते हुए देखा, तो मुझे अपने बचपन की बात याद आई। मैंने सोचा, इसे
कैप्शन में पढ़े 🤳 आज़ मैंने एक बच्चे को बाहर जाते हुए और पीछे मुड़-मुड़ कर देखते हुए देखा, तो मुझे अपने बचपन की बात याद आई। मैंने सोचा, इसे #विचार #love_shayari
read moreSnehi Uks
Kuldeep KumarAUE
White गम तो थे कम थे क्या जो और मिल गए ©Kuldeep KumarAUE #weather_today गम तो थे कम थे क्या जो और मिल गए #kuldeepkumaraue #sad #Life
weather_today गम तो थे कम थे क्या जो और मिल गए kuldeepkumaraue sad Life
read moreHARSHIT369
White कभी जब मै बेपरवाह रहा था उस समय ना समय कि चिन्ता ना पैसो कि थी वो दिन भी क्या दिन रहे होंगे.. मै बालक था मस्त मौजी था..! ना भय था ना ही कोई किसी बात का दर, क्या चल है लाईफ में नही थी कुछ खबर वो भी क्या दिन रहे होंगे..!! ©HARSH369 #क्या दिन थे वो