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Usha Yadav
"उचक्का" 1989 के साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित आत्मकथा बिना आत्मदया या किसी किस्म की आत्माशलाघा के हमारे सामाजिक यथार्थ को सामने लाती है। दलित लेखकों की परंपरा कथा से अलग है यह ऐसा आत्मवृत्तांत है जो समाज के छोटे छोटे अपराधों पर परवरिश पाते एक समूह का प्रतिनिधित्व करता है। इस समाज वयवस्था की और जब मैं गौर से देखता हूं तो बेचैन हो जाता है और महसूस करता हूं कि मेरे समाज के सैकड़ों वर्षों से अन्याय होता रहा है। उनके कल्याण के लिए योजनाएं कार्यान्वित नहीं होती है और जो थोड़ी बहुत होती भी है वह उन तक नहीं पहुंच पाती है। मनुष्य के रूप में जीने का अधिकार ही इस व्यवस्था ने छीन लिया है। वास्तव में यह आत्मकथा एक कार्यकर्ता का काफी मुख्य चिंतन है। इस कारण इस आत्मकथा का साहित्यिक मूल्यांकन करने की अपेक्षा समाज शासत्रीय मूल्यांकन हो यह अपेक्षा है ( "उचक्का" लक्षमण गायकवाड़) उचक्का