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Uttam Bajpai

शायरी आंसू अपनी बेचने मैं गया था बाजार

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Ashish

*मैं गया था #सोचकर....* *बातें #बचपन की होगी,* *#दोस्त मुझे अपनी...* *#तरक्की सुनाने लगे...!!!*

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मैं गया था सोचकर
बातें बचपन की होगी,

दोस्त मुझे अपनी
 तरक्की सुनाने लगे...!!!* *मैं गया था #सोचकर....*
*बातें #बचपन की होगी,*


*#दोस्त मुझे अपनी...* 
 *#तरक्की सुनाने लगे...!!!*

Ankit

वो भी किसी कयामत की रात से कम न था। जब आँख उनकी नम थी,और जल मैं गया था। #alone #शायरी

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आज जमाने में कैसी आग लगी।
हमको रुलाने वाली आज खुद रो पड़ीं।

©Ankit वो भी किसी कयामत की रात से कम न था।
जब आँख उनकी नम थी,और जल मैं गया था।
#alone

RA poetry

मैं गया था शहर की शाम देखने शाम को धुआं होते देखा रोशन थे गलियारे जिस नूर से नूर-ए-आफ़ताब को ग़ुलाम होते देखा नज़र थी चारों ओर पर नज़र में कोई न #India #Reality #Truth #Rape #poem #rapevictim #justice #Wakeup #learntofight #justiceformanisha

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मैं गया था शहर की शाम देखने
शाम को धुआं होते देखा
रोशन थे गलियारे जिस नूर से
नूर-ए-आफ़ताब को ग़ुलाम होते देखा
नज़र थी चारों ओर पर नज़र में कोई नहीं
ऐसी गुमनामी का बेनाम सफ़र देखा
सिगरेट के कश में आंखे पिघल रही थी बेहिसाब
मैंने उन आंखों को बच कर निकलते देखा
दोस्त मिले तो थे उस नुक्कड़ पर मुझे
कदम न बढ़ा सका
डर गया था जब हत्यारों से हाथ मिलाते देखा

©RA poetry मैं गया था शहर की शाम देखने
शाम को धुआं होते देखा
रोशन थे गलियारे जिस नूर से
नूर-ए-आफ़ताब को ग़ुलाम होते देखा
नज़र थी चारों ओर पर नज़र में कोई न

24priyanka_Awara_Badal

चरित्रहीन औरत मैं तलाश रहा हूँ एक चरित्रहीन औरत पर मैं हैरान हूँ… !!!! वो मुझे आज तक मिली नहीं.. ऐसा भी नहीं है कि #poem

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चरित्रहीन औरत चरित्रहीन औरत

मैं तलाश रहा हूँ
एक चरित्रहीन औरत
पर मैं हैरान हूँ… !!!!

वो मुझे आज तक मिली नहीं..
ऐसा भी नहीं है कि

Varun Singh Katiyar

आओ तुम्हें संवार दू मैं कुछ देर तो बैठो आगोश में तेरी जुल्फें संवार दू मैं आंखो में कैद करके दिल में उतार लूं मैं आओ तुम्हें संवार दू मैं #कविता

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आओ तुम्हें संवार दू मैं

कुछ देर तो बैठो आगोश में
तेरी जुल्फें संवार दू मैं
आंखो में कैद करके
दिल में उतार लूं मैं
आओ तुम्हें संवार दू मैं आओ तुम्हें संवार दू मैं

कुछ देर तो बैठो आगोश में
तेरी जुल्फें संवार दू मैं
आंखो में कैद करके
दिल में उतार लूं मैं
आओ तुम्हें संवार दू मैं

तेजस

आज फिर मैं गया था उसी झील के किनारे जहाँ बैठ कर तुम डूबते सूरज को देखती थी और मैं डूबा रहता था तुम्हारी झील सी आँखों में उन आँखों के कौतूहल

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आज फिर मैं गया था उसी झील के किनारे
जहाँ बैठ कर तुम डूबते सूरज को देखती थी
और मैं डूबा रहता था तुम्हारी झील सी आँखों में
उन आँखों के कौतूहल में तैरती सूरज की लाली
मदहोश सी कर देती थी मुझे
गंवारा नहीं था तुम्हारा पलकें झपकना भी
के वो खलल डालती थी बेवजह
जब डूब चुका होता था सूरज
अपना तमाम हुस्न बटोर कर
दूर कहीं पहाड़ो के पीछे
अपने पीछे बिखेर कर सारा हुस्न तुम्हारे चेहरे पर
तभी जो आती थी वो परछाईं तैरती हुई तुम्हारी आँखों में
वो हल्की सी लहर उदासी भरे बादल के
शायद तुम्हें अच्छा नहीं लगता था
वो बिछड़ना सूरज का फ़िज़ा से

           (पूरी कविता कैप्शन में पढ़ें) आज फिर मैं गया था उसी झील के किनारे
जहाँ बैठ कर तुम डूबते सूरज को देखती थी
और मैं डूबा रहता था तुम्हारी झील सी आँखों में
उन आँखों के कौतूहल

Aman Yadav

मैं हाट गया था

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Ajish Nair

मैं टूट गया था

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Asad BEDIL

गया था मैं #बहुत दूर

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गया था मै तुझसे दुर बहुत कुछ पाने के लिए ……….पर सिवाए तेरी यादो के कुछ हासिल ना हुआ ,, गया था मैं #बहुत दूर
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