Find the Latest Status about चवला फली from top creators only on Nojoto App. Also find trending photos & videos about, चवला फली.
PRACHI SHARMA
Ravendra
Ravendra
हरीश वर्मा हरी बेचैन
ठंड तो ठंड है! सुरसुरी हवा चली! बादलों से घिरी.. कपकपाते लोग! संग संग सांस चली! हम थे साथ और हमारी थी हमजोली! दिल था जो घबरा के.. दिल दिल से मिली! चांद भी छिप गया.. चांदनी के साथ.. तारों ने पकड़ ली.. अपनी अपनी गली! सूर्य देता कब तक गरमी! ठंड से वह भी गली! कोहरों ने ढक लिया दुनियां! इश्क में प्यार फली फुली!! डर है गर्मी फिर न आ जाए! 🙏🙏🙏🙏🙏🙏✍️ हरीश वर्मा हरी बेचैन 8840812718 ठंड तो ठंड है! सुरसुरी हवा चली! बादलों से घिरी.. कपकपाते लोग! संग संग सांस चली! हम थे साथ और हमारी थी हमजोली! दिल था जो घबरा के..
Anuj Jain
चिड़ियाघर के पास रहने के अपने फायदे थे, जानवरों के साथ साथ अलग अलग तरह के पेड़ पौधे देखने जानने को मिले हमको बचपन से। एक नायाब पेड़ था बाओबाब का इसे हिन्दी में गोरक्षी कहते हैं ये बात हमको बहुत समय बाद पता चली। हम लोग इसको विलायती इमली कहते थे। कारण था इसका फल जो एक बहुत फली होती थी जिसको तोड़ने पर अंदर बहुत सारी सफेद खट्टी इमली नुमा बीज होती थी। बहुत ही विशाल वृक्ष होता है और इसके फल भी बहुत मुश्किल से हासिल होते थे परन्तु हम लोग भी युक्ति लगा कर हासिल कर लेते थे विलायती इमली। चिड़ियाघर के पास रहने के अपने फायदे थे, जानवरों के साथ साथ अलग अलग तरह के पेड़ पौधे देखने जानने को मिले हमको बचपन से। एक नायाब पेड़ था बा
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- बात दिल में हमारे दबी रह गई । प्यास होंठो पे आकर थमी रह गई ।।१ आँख में आँसुओं की नमी रह गई ।। ज़िन्दगी में उसी की कमी रह गई ।।२ देख शैतान फिर से हुआ है खफ़ा । बाग में क्यों कली अधखिली रह गई ।३ ले गया कौन फल तोड़ कर बाग के । डालियों में ये नाजुक फली रह गई ।।४ डोर को छोड़कर जो उड़ी थी पतंग । फिर ज़मीं पर कहीं वो पड़ी रह गई ।।५ आज बरबाद ऐसे हुए हम यहाँ । पूर्वजों की ज़मीं बेचनी रह गई ।।६ कौन करता खुशामद किसी की यहाँ । कोर सबकी यहाँ पर फँसी रह गई ।।७ सो न पाया यहाँ मैं कभी रात में । नींद आँखों में मेरी धरी रह गई ।।८ प्यार जबसे हुआ है सुनो तो प्रखर । दिल हमारे अजब रोशनी रह गई ।।९ ३०/१२/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- बात दिल में हमारे दबी रह गई । प्यास होंठो पे आकर थमी रह गई ।।१
AB
... वैसे तो मैं बहुत खुशमिज़ाज़, आशावादी और एक सकारात्मक प्राणी हूँ परन्तु फिर भी कभी न कभी निराशा, नकारात्मकता, निरसता मुझे घेर ही लेती है. अब 24
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
गीत दिन बचपन के मिल जाएं तो , जाऊँ सब कुछ भूल । लुका छुपी के खेल हमारे , रखते थे मशगूल । आम तोड़ना बैर तोड़ना , गाय़ चराना खूब । सरसो मूली फली तोड़ना , और सताना खूब ।। दादा से पापा की चुगली , करने की वो भूल । दिन बचपन के मिल जाएं तो , जाऊँ सब कुछ भूल ।। पढ़ने में जब मन ना लगता , चाचा देते कूट । दादी आती दौड़ बचाने , मिल जाती थी छूट ।। मैं न जाऊँगा कल पढ़ने को , कल छुट्टी है स्कूल । दिन बचपन के मिल जाएं तो, जाऊँ सब कुछ भूल ।। होम वर्क पूरा ना होता , अलग लगाते स्कूल । वहीं कापियाँ जाँची जाती , झाड़ी थी बनफूल । इतने प्यारे बचपन को हम , कैसे जाएं भूल । दिन बचपन के मिल जाएं तो , जाए सब कुछ भूल ।। कल उम्मीदें थी सपने न थे , खाते पीते मस्त । बोझ उठाके सपनों का अब , हुए सभी हम व्यस्त ।। यादें सुनेहरे बचपन की , लगते सुंदर फूल । दिन बचपन के मिल जाएं तो , जाऊँ सब कुछ भूल ।। ३१/०५/२०२२ महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत दिन बचपन के मिल जाएं तो , जाऊँ सब कुछ भूल । लुका छुपी के खेल हमारे , रखते थे मशगूल । आम तोड़ना बैर तोड़ना , गाय़ चराना खूब । सरसो मूली फल
Divyanshu Pathak
व्यवहारिकता भूल गए सब सहनशक्ति को खो बैठे ! पर्व और अब उत्सव सारे अपने मूल रूप को खो बैठे ! होली के हुड़दंग मिटाकर गीत गोठ सब खो बैठे ! प्यार भरे दिल सूख गए सब और अपनापन खो बैठे ! भाव मनभरे भूल गए सब जीवन रस को खो बैठे ! यंत्र बने फ़िरते दिखते सब मूल चेतना खो बैठे ! 💕☕सुप्रभातम मित्रो💕🙏 : आज से 10 - 12 वर्ष पहले हमारे गाँव में जो होली खेली जाती थी आज मुझे बैसा कुछ नही दिखाई दिया । हाँ मेरी मित्र मण्डली आ
Raj Yadav