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Anil Ray
जब-तक प्रज्ज्वलित नही हो मनमंदिर दीप न ही दीपावली होगी न ही दीपोत्सव होगा। बाहर की रोशनी से भ्रमित मत होना रे मन! ज्ञानचक्षु खोल के देख सिर्फ दिवाला होगा। घर-आंगन की प्रत्येक लक्ष्मी का सम्मान रहे हरबाला की मान-मर्यादा पंखों का मान रहे। मानवता सर्वोपरी रहे, नारी सृष्टि में है महान पूजनीय देवी ध्यान देवों का आगमन होगा। समयाभाव ने घेरा इस पावन पर्व पर दोस्तों इस रचना का फिर फुर्सत में समापन होगा। अभी दिल में धड़कती हर धड़कन कह रही दीपावली मुबारक हो! न कोई बहाना होगा। ©Anil Ray 💞💞✨Happy Deepawali✨💞💞 जब-तक प्रज्ज्वलित नही हो मनमंदिर दीप न ही दीपावली होगी न ही दीपोत्सव होगा। बाहर की रोशनी से भ्रमित मत होना रे मन! ज्ञ
PARBHASH KMUAR
जय सरस्वती माता, मैया जय सरस्वती माता । सदगुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता ॥ जय जय सरस्वती माता…॥ चन्द्रबदनी पद्मासिनि, द्युति मंगलकारी । सोहे शुभ हंस सवारी, अतुल तेजधारी ॥ जय जय सरस्वती माता…॥ बाएं कर में वीणा, दाएं कर माला । शीश मुकुट मणि सोहे, गल मोतियन माला ॥ जय जय सरस्वती माता…॥ देवी शरण जो आए, उनका उद्धार किया । पैठी मंथरा दासी, रावण संहार किया ॥ जय जय सरस्वती माता…॥ विद्या ज्ञान प्रदायिनी, ज्ञान प्रकाश भरो । मोह अज्ञान और तिमिर का, जग से नाश करो ॥ जय जय सरस्वती माता…॥ धूप दीप फल मेवा, मां स्वीकार करो । ज्ञानचक्षु दे माता, जग निस्तार करो ॥ ॥ जय सरस्वती माता…॥ मां सरस्वती की आरती, जो कोई जन गावे । हितकारी सुखकारी, ज्ञान भक्ति पावे ॥ जय जय सरस्वती माता…॥ जय सरस्वती माता, जय जय सरस्वती माता । सदगुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता ॥ ©parbhashrajbcnegmailcomm जय सरस्वती माता, मैया जय सरस्वती माता । सदगुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता ॥ जय जय सरस्वती माता…॥ चन्द्रबदनी पद्मासिनि, द्युति मंगलकारी ।
रजनीश "स्वच्छंद"
शीला लेख।। छेनी हथौड़ी हाथ मे ले, स्मृतियों की वक्षशीला पर, शब्द हूँ मैं कुरेदता।। बन दधीचि अस्थियों का ले तूणीर तरकश में भर, तम हूँ मैं भेदता।। धीर स्थिर अन्तःकरण का, नीर ले आंखों में भर, तार हूँ मैं छेड़ता। मूक बधिर मैं सूरदास, शब्ददृष्टि संग लिए समर पार हूँ मैं देखता।। शिशु, बालक, वयस्क, वृद्ध, सबके मन वास कर, ज्ञानचक्षु मैं फेरता। कोई सबल, निर्बल हो या हो दिनचर या निशाचर, दर्द सबकी टेरता।। पौरुष का हुंकार भी मैं, नारी का गहना मान बन, निज से हूं झेंपता। पवनसुत का बल कभी तो कभी कान्हा समान बन, वस्त्र भी हूँ फेंकता।। शब्द की महत्ता जो समझे, बन स्तंभ अशोक का, ज्ञान हूँ मैं टेकता।। बन शीला लेख मैं, खुशी से परे, बिन शोक का, जन जन को मैं सेवता।। ©रजनीश "स्वछंद" शीला लेख।। छेनी हथौड़ी हाथ मे ले, स्मृतियों की वक्षशीला पर, शब्द हूँ मैं कुरेदता।। बन दधीचि अस्थियों का ले तूणीर तरकश में भर, तम हूँ मैं भेद