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hardik Mahajan
मेरे शब्दों से शब्दों का सार नहीं हो तुम , क्यूंकि मैं शब्द हूं शब्द का और तुम मेरे शब्दों का भार नहीं हो। ©hardik Mahajan 1) जीवन के एक-एक शब्द को सूत्रबद्ध करना और समझना बहुत कठिन है। हर पल शब्दों को खोजना जितना मुश्किल है, हमारे लिखें हुए हर शब्द को शुरू से अं
1) जीवन के एक-एक शब्द को सूत्रबद्ध करना और समझना बहुत कठिन है। हर पल शब्दों को खोजना जितना मुश्किल है, हमारे लिखें हुए हर शब्द को शुरू से अं #Motivational #shabd
read moreMAHENDRA SINGH PRAKHAR
White ग़ज़ल :- हाथ आते नही निवाले हैं । दाने-दाने के अब तो लाले हैं ।।१ आज बाज़ार हो गये मँहगें । रूल सरकार के निराले हैं ।।२ किसलिए आप खोजते इंसा । भेड़िये आप हमने पाले हैं ।।३ आप जिनपे किए यकीं बैठे । लोग दिल के वो कितने काले हैं ।।४ सच के होते नही नुमाये भी। इस लिए सब लगाये ताले हैं ।।५ खामियां पा दहेज में अब वह । पगडिय़ां देख लो उछाले हैं ।।६ राम के नाम से यहाँ सब ही । पा रहे आज सब उजाले हैं ।।७ राम का नाम ही भजो सारे । क्या हुआ जो जुबाँ पे छाले हैं ।।८ चोट खाकर प्रखर वफ़ा में भी । दिल को अपने अभी सँभाले हैं ।।९ महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- हाथ आते नही निवाले हैं । दाने-दाने के अब तो लाले हैं ।।१ आज बाज़ार हो गये मँहगें । रूल सरकार के निराले हैं ।।२ किसलिए आप खोजते इंसा ।
ग़ज़ल :- हाथ आते नही निवाले हैं । दाने-दाने के अब तो लाले हैं ।।१ आज बाज़ार हो गये मँहगें । रूल सरकार के निराले हैं ।।२ किसलिए आप खोजते इंसा । #शायरी
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ग़ज़ल तेरी चाहत का है असर मुझमें । एक सुंदर बसा नगर मुझमें ।। ज़िन्दगी ये हसीन भी होती । पर अभी बाकी कुछ कसर मुझमें ।। जिस तरह चाहता हूँ मैं तुमको उस तरह यार फिर उतर मुझमें ।। खोजते तुम जिसे हमीं में हो । उसका होता नहीं बसर मुझमें ।। व्यर्थ करती है इश्क़ का दावा । वह न आती कहीं नज़र मुझमें ।। दिल चुराया अगर तुम्हारा है । कह दे उससे अभी निकर मुझमें ।। भूलकर भी न दूर जाता है । वो सितमगर छुपा प्रखर मुझमें ।। ०९/०४/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल तेरी चाहत का है असर मुझमें । एक सुंदर बसा नगर मुझमें ।।
ग़ज़ल तेरी चाहत का है असर मुझमें । एक सुंदर बसा नगर मुझमें ।। #शायरी
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ग़ज़ल तेरी चाहत का है असर मुझमें । एक सुंदर बसा नगर मुझमें ।। ज़िन्दगी ये हसीन भी होती । पर अभी बाकी कुछ कसर मुझमें ।। जिस तरह चाहता हूँ मैं तुमको उस तरह यार फिर उतर मुझमें ।। खोजते तुम जिसे हमीं में हो । उसका होता नहीं बसर मुझमें ।। व्यर्थ करती है इश्क़ का दावा । वह न आती कहीं नज़र मुझमें ।। दिल चुराया अगर तुम्हारा है । कह दे उससे अभी निकर मुझमें ।। भूलकर भी न दूर जाता है । वो सितमगर छुपा प्रखर मुझमें ।। ०९/०४/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल तेरी चाहत का है असर मुझमें । एक सुंदर बसा नगर मुझमें ।।
ग़ज़ल तेरी चाहत का है असर मुझमें । एक सुंदर बसा नगर मुझमें ।। #शायरी
read moreVikrant Rajliwal Show
OUT NOW! विधवा पुनर्विवाह: श्राप या वरदान I New Story लेखन और आवाज़ विक्रांत राजलीवाल "ध्यान से सुनिए, वहाँ पर एक कहानी है, जो हमें अपने #ज़िन्दगी #EmpoweredWomen #vikrantrajliwal #CourageousWomen #SurvivorStories #StandAgainstAbuse #JusticePrevails #StrengthOverAdversity
read moreVikrant Rajliwal Show
OUT NOW! विधवा पुनर्विवाह: श्राप या वरदान I New Story लेखन और आवाज़ विक्रांत राजलीवाल "ध्यान से सुनिए, वहाँ पर एक कहानी है, जो हमें अपने #ज़िन्दगी #vikrantrajliwal #CourageousWomen #SurvivorStories
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