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Kanchan Agrahari
White अर्ज़ है.... मेरी ज़िन्दगी पर, तुम एक किताब लिखना मेरे गुज़रने के बाद, तुम मुझे माहताब लिखना गवाह बनाना ख़ुद को, उस हर एक सितम का और सारे दर्द-ओ-ग़म का,तुम हिसाब लिखना ये भी लिखना के मेरी नादानियाँ ही, ले डूबी मुझे मेरी मासूमियत का तुम, सही-सही जवाब लिखना मेरी ज़िन्दगी तो, महज़ चंद लम्हों की दास्तां थी उसपर हुए क्या-क्या सितम, ये बेहिसाब लिखना अंत में, मेरी दास्तान-ए-उल्फ़त को,हसीं चांदनी और ख़ुद को, दिल जलाने वाला आफ़ताब लिखना. ©Kanchan Agrahari #mountain Anshu writer @_सुहाना सफर_@꧁ঔৣMukeshঔৣ꧂RJ09 sushil dwivedi Laxmi Singh Neelam Modanwal
Kanchan Agrahari
White अर्ज़ है.... वो लौट के फिर आएगा मेरा दिल उसे फिर भायेगा मैं मुस्कुराकर करूँगी स्वागत उसका थोड़ा रूठ के, वो फिर मान जाएगा मैं हंस कर गले लगा लूंगी उसे वो एक बार फिर, दिल से खेल जाएगा मैं रोऊंगी, तड़फऊंगी,मनाऊंगी उसे और वो तड़फता छोड़,फिर चला जायेगा..!! ©Kanchan Agrahari #Night Anshu writer sushil dwivedi @_सुहाना सफर_@꧁ঔৣMukeshঔৣ꧂RJ09 Laxmi Singh Munni
Kanchan Agrahari
White मोहब्बत के नाम पर, क्यों रुलाते हैं लोग सब कुछ लूट कर भी, क्यों भुलाते हैं लोग तमाम उम्र जी भर के जलाती है ये दुनिया, फिर भी बाद मरने के, क्यों जलाते हैं लोग न दे सके जीते जी कभी अधपेट भोजन भी, फिर पितरों के नाम पे, क्यों खिलाते हैं लोग ज़रा सी गलत मोड़ करती है दूर मंज़िल से, तो खुद को गलत राहों पे, क्यों घुमाते हैं लोग ये अहम ही तो हर फसादों की जड़ है दोस्त ऐसे दुश्मन को सर पे, क्यों बिठाते हैं लोग ©Kanchan Agrahari #City Anshu writer @_सुहाना सफर_@꧁ঔৣMukeshঔৣ꧂RJ09 Neelam Modanwal Laxmi Singh radhika sushil dwivedi
Kanchan Agrahari
White अर्ज़ है.... बदल ही जाती है हर शय, वक़्त के साथ ग़र हम जो बदले, तो क्या गुनाह किया जो कहते हैं समझते हैं, फरेबी हमें ग़र हम ज़माने के साथ चले, तो क्या गुनाह किया जो लगाते हैं तोहमत हमपर बेवफाई का ग़र हमनें उन्हें दाग़दार कहा, तो क्या गुनाह किया देखकर भी जो फेर लेते हैं नज़रें हमसे ग़र हमनें नज़रअंदाज़ किया, तो क्या गुनाह किया झूठ का आईना, जो हमें अक्सर दिखाते रहे ग़र हमने उनसे पर्दा हटाया, तो क्या गुनाह किया..! ©Kanchan Agrahari #Night Anshu writer Neelam Modanwal sushil dwivedi @_सुहाना सफर_@꧁ঔৣMukeshঔৣ꧂RJ09 Laxmi Singh
Kanchan Agrahari
White सोना चाहते है चीख के रोना चाहते है और हो कोई अपना जिसके गले लग कर कहना चाहते है कि हम बहुत थक गए है इस ज़िन्दगी से अब हमेसा के लिए सोना चाहते है..!! ©Kanchan Agrahari #SunSet Anshu writer Neelam Modanwal sushil dwivedi @_सुहाना सफर_@꧁ঔৣMukeshঔৣ꧂RJ09 Laxmi Singh
Kanchan Agrahari
Black अर्ज़ है.... कभी-कभी कोरे ही रह जाते हैं, ज़िन्दगी के कुछ पन्ने कहने को, लिखने को, बहुत कुछ रहता है, मगर एहसास की स्याही ख़त्म हो जाती है, या यूँ कहें ज़िन्दगी अर्थहीन लगने लगती है रिश्तों की मिठास, उनकी नमी कहीं खो जाती है जिन जज़्बातों की डोर से हम बंधे होते हैं कभी-कभी वो अपने ही हाथों छूट जाती है और रह जाता है, उन पन्नों में तो बस, कुछ यादें, कुछ बातें, एक ख़लिश, एक विरानी, एक बेचैनी और तन्हाई...!! ©Kanchan Agrahari #Thinking Anshu writer sushil dwivedi Neelam Modanwal R... Ojha @hardik Mahajan
Kanchan Agrahari
White वाह रे इंसान.. घर में निकला चूहा, दवा डाल मार गिराया। मंदिर में माटी के चूहे को, अपना दुखड़ा बोल आया। बच्चे मांगे खिलौने, मां बाप ने डांट दिया... मंदिर की पेटी में दिल खोल चंदा डाल दिया। नहाकर गंगा में, सब पाप धो आया। वहीं से धोए पापों का पानी भर लाया। माटी की मूरत से अपनी ज़िंदगी की भीख मांग आया... उसी मूरत के सामने जानवर बेजुबान काट आया। ज़िंदगी भर कौवे को अशुभ मानता आया.. फिर मरे मां बाप को कौआ समझ भोजन करा आया। वाह रे इंसान तेरा तरीका मेरी समझ न आया। ©Kanchan Agrahari #SAD Anshu writer sushil dwivedi Munni हा जी वेलकम है @hardik Mahajan
Ankit verma 'utkarsh'
टूटे जब भी तारे(part 1) सरगम है फिजाओं में,कोई गुनगुना रहा है, बातें गर्त हैं इशारों में,कोई सुन रहा है। दूर तक जाना है गवाहीं में,कोई मासूम रहा है, आराम नहीं इन पलकों में,कोई जाग रहा है। टूटे जब भी तारे,मुझे ही मांगोगे ना? टूटे जब भी तारे,मुझे ही मांगोगे ना? मौसम भी बिगड़ा रुह में,कोई बारिश हो रहा है, सुबह की ओश रेशों में,कोई चहक रहा है। फूल की सुलभ महक में,कोई विभोर हो रहा है, विशाल गंभीर इस आसमान में,कोई अनंत शून्य हो रहा है। टूटे जब भी तारे,मुझे ही मांगोगे ना? टूटे जब भी तारे,मुझे ही मांगोगे ना? ©Ankit verma 'utkarsh' #boatclub Rakesh Nishad Pratibha Dwivedi urf muskan Dr.Majid Ali Majid Official Neha Bhargava (karishma) Sudha Tripathi
Danish M
Kanchan Agrahari
कहीं वैराग का नशा है, तो कहीं मन को मिलती सजा है, ये कैसे काफिले संग सफर है, जिसकी मंजिलें हीं लापता है। जो उड़ानें आसमानों की हैं, तो डोर ये बेवजह है, अब किनारों से तौबा कर आये हैं, तो बहने में हीं मजा है। यूँ तेरा मुझमें मिलना, खुद से रु-ब-रु होने की अदा है, कायनातों को हुई शिकायत है, ऐसे बना तू मेरा खुदा है। * कहीं रात अंधेरों से भारी है, तो कहीं सुबह को रौशनी की रजा है, ओस के नमी की एक कीमत है, सितारों की बेवफाई बेख़ता है। कहीं लम्हों को रोकने की ख़्वाहिश है, तो कहीं ठहरा वक़्त खौफ़जदा है, ये बेमौसम की आशिक़ी है, जो हर मौसम में लिखती वफ़ा है। कहीं बर्फीली वादियां हैं, जहां गूंजती मोहब्बत की सदा है, कुछ रूहों की वापसी तय है, जिनका बिछड़ना कुदरत पर कर्ज बे-अदा है। ©Kanchan Agrahari #raindrops Anshu writer @_सुहाना सफर_@꧁ঔৣMukeshঔৣ꧂RJ09 Munni R Ojha sushil dwivedi