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मुखौटा A HIDDEN FEELINGS * अंकूर *
White हमेशा, वही सब क्यों याद आता है.. जो हमसे छूट जाता है.. फिर चाहे, वह कोई पल हो.. बात हो.. चीज़ें हो.. या फिर कोई शख़्स! हजा़रों की भीड़ में भी, नज़रें क्यों उसी को तलाशती हैं... क्यूं इक जानी पहचानी सी खुशबू, यूं ही गुज़र जाती है मन को छूते हुए.... क्यों कोई पल, ठहर कर भी नहीं ठहर पाता.. जिसे चाहते हैं कि, कैद कर लें हम अपनी मुट्ठी में! क्यों कोई चीज़, हमारे हाथ से अचानक फिसल कर गिर जाती है... और हम पूरी ज़िदगी इस मलाल में काट देते हैं कि, काश थोड़ी सी सावधानी बरती होती! और वह जगह, जहां जाना तो चाहते हैं पर जा नहीं पाते... कभी बंधन; तो, कभी वक्त रोक लेता है हमारे पैरों को... !! शायद यही तो जीवन है आधा अधूरा फिर भी पूरा... और इसी में, आधी अधूरी ख्वाहिशों की पूरी दुनिया..! @ ©मुखौटा A HIDDEN FEELINGS * अंकूर * #Hope हमेशा, वही सब क्यों याद आता है.. जो हमसे छूट जाता है.. फिर चाहे, वह कोई पल हो.. बात हो.. चीज़ें हो.. या फिर कोई शख़्स!
zindagi_ka_safer
मुखौटा A HIDDEN FEELINGS * अंकूर *
उलझे हुए है कब से इसी एक सवाल में..!! आते है हम भी क्या कभी..? तेरे ख्याल में..!! #🤔 ©मुखौटा A HIDDEN FEELINGS * अंकूर * उलझे हुए है कब से इसी एक सवाल में..!! आते है हम भी क्या कभी..? तेरे ख्याल में..!! #तेरे_खयालों_में📙
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
चित्र-चिंतन :- कुण्डलिया ताला मुँह पर मैं लगा , बैठा अब तक यार । सोचा था अनमोल है , प्रेम जगत व्यहवार ।। प्रेम जगत व्यहवार , इसी में जीवन फलता । लेकिन पग-पग आज , हमारा जीवन जलता ।। त्याग छोड़ व्यहवार , समय कहता है लाला । बुजदिल समझें लोग , देखकर मुँह पर ताला ।। १२/०४/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR चित्र-चिंतन :- कुण्डलिया ताला मुँह पर मैं लगा , बैठा अब तक यार । सोचा था अनमोल है , प्रेम जगत व्यहवार ।। प्रेम जगत व्यहवार , इसी में जीव
Ravendra
koko_ki_shayri
ख्वाईश बढ़ती जा रहीं हैं उम्मीदों की छाँव में ढूढ़ रहे है हम भी किनारा इसी चाल में.. ✍️✍️✨️✨️ ©koko_ki_shayri #dhudh रहे hAi इसी चाल में...😍
Rajesh Khanna
पलके झुकाए तो शाम हो जाए पलके खोलेंगे तो सुबह हो जाए तेरे इस दीदार के लिए बैठे हैं ©Rajesh Khanna #relaxation तेरे इसी दीदार
Amit Singhal "Aseemit"
जब पूरा दिन मेहनत करके गुज़र जाए, रात को थकन भरी देह चैन से सो पाए। हमको रहता दूसरों की सेवा का काम है, तभी हम कहें कि जीना इसी का नाम है। ©Amit Singhal "Aseemit" #जीना #इसी #का #नाम
YASHVARDHAN
कहते हैं, इस दुनिया में कुछ भी स्थाई नहीं होता, फिर ये यादें इतनी दिनों तक कैसे बनी रहती हैं, आपको पीत रंग की साड़ी में देखना मेरे यादों के ज़ख्म को हरा कर देता है, "आप साड़ी में इतनी खूबसूरत कैसे लगती हैं" इसे मैं अपने शोध पत्र का विषय बनाना चाहता हूं... ©YASHVARDHAN M ©YASHVARDHAN इसी.